राष्ट्रीय एकता का पर्व है गणेशोत्सव

पुराणों के अनुसार इसी दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था

राष्ट्रीय एकता का पर्व है गणेशोत्सव

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रमेश सर्राफ धमोरा
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गणेश शब्द का अर्थ होता है जो समस्त जीव के ईश अर्थात् स्वामी हो| गणेश जी को विनायक भी कहते हैं| विनायक शब्द का अर्थ है विशिष्ट नायक्| वैदिक मत में सभी कार्य के आरम्भ जिस देवता का पूजन से होता है वही विनायक है| गणेश चतुर्थी के पर्व का आध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्त्व है| मान्यता है कि भगवान गणेश विघ्नो के नाश करने और मंगलमय वातावरण बनाने वाले हैं| गणेश चतुर्थी का त्योहार महाराष्ट्र, गोवा, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु सहित पूरे भारत में काफी जोश के साथ मनाया जाता है| किन्तु महाराष्ट्र में विशेष रूप से गणेशोत्सव को 10 दिनों तक बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है| इस त्योहार को गणेशोत्सव या विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है|

पुराणों के अनुसार इसी दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था| गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेशजी की पूजा की जाती है| कई प्रमुख जगहों पर भगवान गणेश की बड़ी-बड़ी प्रतिमायें स्थापित की जाती है| इन प्रतिमाओं का नो दिन तक पूजन किया जाता है| बड़ी संख्या में लोग गणेश प्रतिमाओं का दर्शन करने पहुंचते है| नो दिन बाद गणेश प्रतिमाओं को समुद्र, नदी, तालाब में विसर्जित किया जाता है| गणेश चतुर्थी मनाने के दौरान लोग भगवान गणेश की पूजा करते है| गणेश हिन्दू धर्म में सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले देवता है| यह उत्सव खासतौर से महाराष्ट्र में मनाया जाता है| हालॉंकि अब ये भारत के लगभग सभी राज्यों में मनाया जाने लगा है| गणेश चतुर्थी पर लोग पूरी भक्ति और श्रद्धा से ज्ञान और समृद्धि के भगवान की पूजा करते है|

भगवान गणेश को बुद्धि का देवता माना जाता है| हिंदू धर्म में किसी भी नए काम को प्रारंभ करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है| माना जाता है कि भगवान गणेश की पूजा करने के बाद प्रारंभ होने वाला कार्य हर हाल में पूरा होगा| भगवान शिव व माता पार्वती के पुत्र गणेश को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है| गणेश चतुर्थी का त्योहार आने से दो-तीन महीने पहले ही कारीगर भगवान गणेश की मिट्टी की मूर्तियां बनाना शुरू कर देते हैं| गणेशोत्सव के दौरान बाजारों में भगवान गणेश की अलग-अलग मुद्रा में बेहद ही सुंदर मूर्तियां मिल जाती है| गणेश चतुर्थी वाले दिन लोग इन मूर्तियों को अपने घर लाते हैं| कई जगहों पर १० दिनों तक पंडाल सजे हुए दिखाई देते हैं जहां गणेश जी की मूर्ति स्थापित होती हैं| प्रत्येक पंडाल में एक पुजारी होता है जो इस दौरान चार विधियों के साथ पूजा करते हैं| सबसे पहले मूर्ति स्थापना करने से पहले प्राणप्रतिष्ठा की जाती है| उन्हें कई तरह की मिठाईयां प्रसाद में चढ़ाई जाती हैं| गणेश जी को मोदक काफी पंसद थे| जिन्हें चावल के आटे, गुड़ और नारियल से बनाया जाता है| इस पूजा में गणपति को लड्डूओं का भोग लगाया जाता है|

इस त्योहार के साथ कई कहानियां भी जुड़ी हुई हैं जिनमें से उनके माता-पिता माता पार्वती और भगवान शिव के साथ जुड़ी कहानी सबसे ज्यादा प्रचलित है| शिवपुराण में रुद्रसंहिता के चतुर्थ खण्ड में वर्णन है कि माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपने मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वारपाल बना दिया था| भगवान शिव ने जब भवन में प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया| इस पर भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर काट दिया| इससे पार्वती नाराज हो उठीं| भयभीत देवताओं ने देवर्षि नारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया| भगवान शिवजी के निर्देश पर विष्णुजी उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए| मृत्युंजय रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया| माता पार्वती ने हर्षातिरेक से उस गजमुख बालक को अपने हृदय से लगा लिया| ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्र पूज्य होने का वरदान दिया|

महान क्रांतिकारी बंकिम चंद्र चटर्जी ने 1882 मे वन्देमातरम नामक एक गीत लिखा था| जिस पर भी अंग्रेजों ने प्रतिबंध लगा कर गीत गाने वालों को जेल मे डालने का फरमान जारी कर दिया था| इन दोनों बातों से लोगों में अंग्रेजों के प्रति बहुत नाराजगी व्याप्त हो गयी थी| लोगों में अंग्रेजों के प्रति भय को खत्म करने और इस कानून का विरोध करने के लिए महान स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक ने गणपति उत्सव की स्थापना की और सबसे पहले पुणे के शनिवारवाड़ा मे गणपति उत्सव का आयोजन किया गया| देश की आजादी के आन्दोलन में गणेश उत्सव ने बहुत महत्वपूण भूमिका निभायी थी| १८९४ मे अंग्रेजो ने भारत मे एक कानून बना दिया था जिसे धारा १४४ कहते हैं जो आजादी के इतने वर्षों बाद आज भी लागू है| इस कानून मे किसी भी स्थान पर 5 से अधिक व्यक्ति इकट्ठे नहीं हो सकते थे| और ना ही समूह बनाकर कहीं प्रदर्शन कर सकते थे|

1894 से पहले लोग अपने अपने घरो मे गणपति उत्सव मनाते थे| लेकिन 1894 के बाद इसे सामूहिक तौर पर मनाने लगे| पुणे के शनिवारवडा के गणपति उत्सव मे हजारो लोगो की भीड़ उमड़ी| लोकमान्य तिलक ने अंग्रेजो को चेतावनी दी कि हम गणपति उत्सव मनाएगे अंग्रेज पुलिस उन्हे गिरफ्तार करके दिखाये| कानून के मुताबिक अंग्रेज पुलिस किसी राजनीतिक कार्यक्रम मे एकत्रित भीड़ को ही गिरफ्तार कर सकती थी| लेकिन किसी धार्मिक समारोह मे उमड़ी भीड़ को नहीं|

20 अक्तूबर 1894 से 30 अक्तूबर 1894 तक पहली बार 10 दिनों तक पुणे के शनिवारवाड़ा मे गणपति उत्सव मनाया गया| लोक मान्य तिलक वहां भाषण के लिए हर दिन किसी बड़े नेता को आमंत्रित करते| 1895 मे पुणे के शनिवारवाड़ा मे ११ गणपति स्थापित किए गए| उसके अगले साल ३१ और अगले साल ये संख्या 100 को पार कर गई| फिर धीरे-धीरे महाराष्ट्र के अन्य बड़े शहरो अहमदनगर, मुंबई, नागपुर, थाणे तक गणपति उत्सव फैलता गया| गणपति उत्सव में हर वर्ष हजारो लोग एकत्रित होते और बड़े नेता उसको राष्ट्रीयता का रंग देने का कार्य करते थे| इस तरह लोगो का गणपति उत्सव के प्रति उत्साह बढ़ता गया और राष्ट्र के प्रति चेतना बढ़ती गई|

1904 में लोकमान्य तिलक ने लोगो से कहा कि गणपति उत्सव का मुख्य उद्देश्य स्वराज्य हासिल करना है| आजादी हासिल करना है और अंग्रेजो को भारत से भगाना है| आजादी के बिना गणेश उत्सव का कोई महत्व नहीं रहेगा| तब पहली बार लोगो ने लोकमान्य तिलक के इस उद्देश्य को बहुत गंभीरता से समझा| आजादी के आन्दोलन में लोकमान्य तिलक द्धारा गणेश उत्सव को लोकोत्सव बनाने के पीछे सामाजिक क्रान्ति का उद्देश्य था| लोकमान्य तिलक ने ब्राह्मणों और गैर ब्राह्मणों की दूरी समाप्त करने के लिए यह पर्व प्रारम्भ किया था जो आगे चलकर एकता की मिसाल बना|

भगवान गणेश ने बिना रुके दस दिनों तक महाभारत लिखी| इस दौरान एक ही स्थान पर लगातार लेखन करने के कारण गणेश जी के शरीर पर धूल और मिट्टी जम गई थी| दसवें दिन गणेश जी ने सरस्वती नदी में स्नान करके शरीर पर जमी धूल और मिट्टी को साफ किया| तभी से गणेश उत्सव के दसवें दिन गणेश जी की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है|

लोकमान्य तिलक ने जिस उद्देश्य को लेकर गणेश उत्सव को प्रारम्भ करवाया था वो उद्देश्य आज कितने सार्थक हो रहें हैं| आज के समय में पूरे देश में पहले से कहीं अधिक धूमधाम के साथ गणेशोत्सव मनाये जाते हैं| मगर आज गणेशोत्सव में दिखावा अधिक नजर आता है| आपसी सदभाव व भाईचारे का अभाव दिखता है| आज गणेश उत्सव के पण्डाल एक दूसरे के प्रतिस्पर्धात्मक हो चले हैं| गणेशोत्सव में प्रेरणाएं कोसों दूर होती जा रही हैं और इनको मनाने वालों में एकता नाम मात्र की रह गयी है| इस बार हमें एक बार फिर से संगठित होकर गणेशोत्सव को इतनी ख़ुशी व धूमधाम से मनाना चाहिए जिससे समाज मे एकता व भाईचारा बढ़ सकें| सही मायने में तभी हमारी पूजा सार्थक हो सकेगी|

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