फिर वही शिगूफा

क्या पाकिस्तान से बातचीत हुई तो शांति की बयार बहने लगेगी?

फिर वही शिगूफा

एक बार नहीं, अनेक बार बातचीत के दौर चले थे और नतीजा क्या रहा?

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान एक राजनीतिक दल के नेताओं द्वारा पाकिस्तान से बातचीत करने का मुद्दा दोहराया जाना ऐसा शिगूफा है, जिसे देशवासियों को कई वर्ष पहले ही गंभीरता से लेना बंद कर देना चाहिए था। भारत की किस सरकार ने पाकिस्तान से बातचीत नहीं की और उसके बाद देश को क्या मिला था? 

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कुछ नेता तो अपनी राजनीति चमकाने के लिए 'पाकिस्तान से बातचीत' का राग छेड़ते रहते हैं, लेकिन कई बुद्धिजीवी भी बड़ी मासूमियत से यह कहते दिखाई दे जाते हैं कि पाकिस्तान से बातचीत करने से ही मसलों का हल निकलेगा! आजकल बहुत लोग यूट्यूब पर चैनल बनाकर पाकिस्तान से बातचीत की पैरवी कर खुद को 'बुद्धिजीवी' के तौर पर स्थापित करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। उन्हें पाकिस्तानी मीडिया हाथोंहाथ लेता है। बहुत जल्द वे पाकिस्तानी चैनलों पर गंभीर चर्चा करते दिखाई पड़ते हैं। 

जो लोग पाकिस्तान से बातचीत की पुरजोर पैरवी कर रहे हैं, उन्हें यह भी बताना चाहिए कि पिछली बातचीत का क्या नतीजा निकला था? एक बार नहीं, अनेक बार बातचीत के दौर चले थे और नतीजा क्या रहा? जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ, आतंकी हमले, देश में कई जगहों पर बम धमाके, हजारों नागरिकों की मौत! 

क्या पाकिस्तान से नए सिरे से बातचीत की शुरुआत हुई तो उसके नतीजे में शांति की बयार बहने लगेगी? हमारे कई नेता और बुद्धिजीवी पाकिस्तान को समझने में गलती कर जाते हैं। उन्हें लगता है कि पाक इतना सीधा और नादान है कि उसे शांति का पाठ पढ़ाएंगे तो सबकुछ ठीक हो जाएगा।

यह स्पष्ट रूप से शत्रुबोध का अभाव भी है। पाकिस्तान से बातचीत की पैरवी करने से पहले दो बातें जरूर जाननी चाहिएं- यह पड़ोसी देश हमारे बारे में क्या सोचता है और उसके मंसूबे क्या हैं? आज जो लोग पाकिस्तान का नेतृत्व कर रहे हैं, वे भारत से घोर नफरत करते हैं। चाहे पाकिस्तानी फौज हो, सरकार हो या उसका मजहबी तबका हो, ये भारत-विरोध के नाम पर अपनी 'पकड़' को मजबूत करते रहते हैं। पाकिस्तान के स्कूलों और कॉलेजों की किताबों में भारत से नफरत पढ़ाई जाती है। 

जबकि भारत में हर सरकार ने पाकिस्तान के साथ संबंधों को मधुर बनाने की कोशिशें की हैं, ताकि दोनों ओर आम लोगों को इसका फायदा हो। सियासी हलकों में ऐसे स्वर भी उठते रहते हैं, जिनका पाकिस्तान फायदा लेने की कोशिश करता है। दरअसल पाक इस मामले में बहुत स्पष्ट है। वह भारत की एकता व अखंडता को बर्दाश्त नहीं करना चाहता। खासकर उसके फौजी नेतृत्व की सोच रही है, आज भी है कि भारत के भू-भाग पर कब्जा किया जाए, यहां विदेशी आक्रांताओं की तर्ज पर शासन स्थापित किया जाए। इसी भ्रम में जम्मू-कश्मीर पर बार-बार हमले किए। 

पाकिस्तानी फौज ने वर्ष 1965, 1971 और 1999 में युद्ध की पहल की थी। हालांकि भारतीय सेना ने हर बार उसके होश ठिकाने लगाए। अंतरराष्ट्रीय सीमा और एलओसी पर अनगिनत झड़पें हो चुकी हैं। पाकिस्तान से कितने ही आतंकवादी प्रशिक्षण लेकर हमारे देश में रक्तपात कर चुके हैं। उसकी अर्थव्यवस्था कंगाली के कगार पर पहुंच गई है। वहां जनता दाल, रोटी, दवाई और बिजली के लिए हाहाकार कर रही है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के पास सबसे बड़ा काम यह रह गया है कि वे दुनियाभर से डॉलर मांगकर लाएं। सिंध, बलोचिस्तान और केपीके में आज़ादी के लिए आवाज़ें बुलंद हो रही हैं, लेकिन पाकिस्तानी हुक्मरान इसी कोशिश में जुटे हैं कि किसी तरह भारत को नुकसान पहुंचाया जाए। 

क्या किसी को अब भी लगता है कि पाकिस्तान से बातचीत होगी तो ये सारी खराबियां दूर हो जाएंगी? यह एक ऐसा सुनहरा ख़्वाब हो सकता है, जिसका हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है। इस समय भारत को अपनी ऊर्जा राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, वैज्ञानिक, सामरिक और हर दृष्टि से ज्यादा मजबूत होने में लगानी चाहिए। देश आंतरिक और बाहरी चुनौतियों से सुरक्षित होना चाहिए। आतंकवाद और अलगाववाद को खूब दृढ़ता से नष्ट करना चाहिए। पाकिस्तान जिस 'चक्रव्यूह' में फंसा हुआ है, उससे बाहर निकलने का जिम्मा उसी पर छोड़ देना चाहिए।

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