किताब के बहाने शिक्षक का वैशिष्ठ्य

पुस्तक शिक्षकों और अभिभावकों के लिए प्रेरणापुंज है

किताब के बहाने शिक्षक का वैशिष्ठ्य

Photo: PixaBay

.. दिनेश प्रताप सिंह ‘चित्रेश’ ..
मो: 7379100261

Dakshin Bharat at Google News
सामने मोबाइल था, व्हाट्सऐप के ट्यून से निगाह उस पर टिक गई| स्क्रीन पर पी.डी. मलय का नाम फ़्लैश हुआ... व्हाट्सएप खोला, ‘स्कूल में एक दिन’ के पीडीएफ का प्रारूप दिखा|  जिज्ञासावश इसे खोलकर पृष्ठ पलटने लगा| एक लेख को जूम किया तो दिखा-एक शिक्षक का कार्य सिर्फ किताबी ज्ञान या सूचनाएं देकर ज्ञानवान बनाना ही नहीं है, वरन छात्रों की मनोदशा समझकर उनकी समस्याओं का निदान कर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना भी है...’ इस लेख को शुरू से अंत तक पढ़ गया| मोबाइल की स्क्रीन पर पढ़ना आसान नहीं होता| लेकिन प्रीति भारती का यह लेख और लक्ष्मी प्रतिदिन विद्यालय आने लगी’ की मातृ विहीन किशोरी लक्ष्मी की छोटे भाई-बहन के प्रति सकारात्मक सोच और संघर्ष की चेतना संवेदना का ऐसा जादुई ध्वनिकम्प रचने में सफल हुई, जिसके आकर्षण में बंधा मैंने किताब आरम्भ से पढ़नी शुरू की|

पुस्तक के पहले लेख किस लिए पढ़ रहे हैं (दुर्गेश्वर राय) में नए अध्यापक के आने पर कक्षा में जो सकपकाहट और जिज्ञासा होती है, उस सुन्दर देशकाल के बीच गणित को सहज, आनंददायी और मूर्त बनने का रोचक नवाचार है| यह अन्य शिक्षकों के सामने बच्चों में गणित के प्रति सहज लगन और रुचि पैदा करने का नमूना भी प्रस्तुत करता है| ‘स्कूल का एक दिन’ के केंद्र में कम उपस्थिति हैं, इसकी जमीनी हकीकत जानने के लिए गॉंव भ्रमण...मेले की बातें, जीवन से जोड़कर  खेल-खेल में गणित को रोचक बनाना, स्कूल पुस्तकालय का जानने-समझने में उपयोग जैसे कई उपक्रमों से यह एक कल्पनाशील अध्यापक का रोचक शिक्षण बन गया है| बच्चों में अभिव्यक्ति, तर्क, चिन्तन और कल्पना की स्थापना को भी यह प्रदर्शित करता है| सीखने-सीखने की राह में’ (रश्मि त्रिपाठी) में विद्यालय की आन्तरिक-बाह्य व्यवस्था, अनुशासन, उपस्थति और सीखने की प्रक्रिया को गतिशील बनाने का ‘नवाचार बैजों’ के वितरण में समाहित है| ‘अंधविश्वास की धुंध से मुक्ति’, ‘ढह गई भेदभाव की दीवार’, ‘बोलते पत्थर’ के साथ ‘दूसरी दुनिया’ में अर्चना वर्मा के प्रयासों का मनो साक्षी बना| धैर्यपूर्वक प्रयास से बच्चों की सृजनात्मकता को स्वतंत्र आकाश देना अच्छा लगा, बादलों के बीच स्कूल तो बहुत ही अच्छा ! यह एक बालिका की सुन्दर कल्पना है| रेशमा के आँसू’ में एक दिव्यांग बच्ची के दर्द के साथ अध्यापिका साधना मिश्रा की रोशन की हुई उम्मीद की लौ को भी महसूस किया|

अरे ! ये तो ‘वही मैडम हैं’ की रिम्पू सिंह विद्यालय के गेट के सामने पहुंची थीं, तभी मैं ‘स्कूल में एक दिन’ के रहस्य-रोमांच में डूबा, अतीत में चला गया....शिक्षा से जुड़ी किताब और रहस्य-रोमांच ! अनुपयुक्त सी बात...! किन्तु यह मेरी नहीं, राजस्थान के शिक्षाविद शिवरतन थानवी की बात है| सक्रिय पुस्तकालय’ के संदर्भदाता की ट्रैनिंग थी| शिवरतन जी ने अतिथि प्रवक्ता के रूप में एक सत्र को प्रबोधित करते हुए कहा था-विद्यालयों में पुस्तकालय सक्रिय करने का आशय है, सीखने-सीखाने की प्रक्रिया को नई दिशा, गति, प्रोत्साहन और विस्तार देना| मध्ययुगीन चिन्तन से अलग होकर आधुनिक ढंग से शिक्षण की राय कोई शिक्षक कैसे बनाएगा? आखिर कोई आधार होना चाहिए...! इस क्रम में उन्होंने तीन किताबों का जिक्र किया था| पहली पुस्तक थी-‘मिस्टर गॉड, दिस इज अन्ना’| इसमें एक अद्भुत प्रतिभा वाली अन्ना नाम की लड़की का रोचक आख्यान है| यह बच्चों को समझने की एक मुकम्मल दृष्टि देती  है| दूसरी पुस्तक नंदकिशोर आचार्य की ‘आधुनिक विचार और शिक्षा’ के विषय में उनका मत था कि शिक्षा के परिदृश्य को सही ढंग से समझने के लिए इसे हर शिक्षक को अवश्य पढ़ना चाहिए| नवीन शिक्षण दृष्टि के निर्माण में यह पुस्तक उपयोगी साबित हो सकती है|

तीसरी जिस पुस्तक का उन्होंने जिक्र किया था, वह जापानी लेखिका तेत्सुको कुरोयानागी का उपन्यास ‘तोत्तो चान’ था| शिवरतन जी ने इस पुस्तक पर काफी लम्बी, गहरी और व्यापक चर्चा की थी| उनका कहना था कि सन 1985 में जिस अंग्रेजी संस्करण से पूर्वायाज्ञिक कुशवाहा ने इसका हिन्दी अनुवाद किया था, उससे पूर्व इसकी साठ लाख प्रतियां बिक चुकी थीं| इस पुस्तक के दो रूप हैं| पहला तो यह कि इसकी मुख्य पात्र एक छोटी बच्ची ‘तोत्तो-चान’ है और इसका घटनाक्रम घर व विद्यालय के बीच घूमता है| दूसरा यह हमारे शिक्षातंत्र को आधुनिक बनाने के लिए एक नया, आकर्षक, सुदृढ़ और सुन्दर आधार देती है| शिवरतन जी ने बताया था-यह  मॉं-बाप और शिक्षक के लिए तो विशेष पढ़ने योग्य है ही, मामूली साक्षर पाठक भी इसे रुचि के साथ पढ़ सकता है| ‘रॉबिन्सन क्रूसो’ और ‘गुलिवर की यात्राएं’ पढ़ना जितना मजेदार है, उतना ही रोचक है ‘तोत्तो- चान’ को पढ़ना ! स्वप्नलोक से ‘तोमोए-गाकुएन’ स्कूल और कोबायाशी जैसे समर्पित प्रधानाध्यापक से यह उपन्यास परिकथा जैसा रंगीला बन गया है| इसे पढ़ते हुए आप ध्यानमग्न शिक्षा की रहस्य-रोमांच की दुनिया में घुसते चले जाएंगे...|’

‘स्कूल में एक दिन’ में 112 लेखों में समर्पित शिक्षकों की अद्भुत छवियॉं है| जिनमें बच्चों के अंतर्मन में पैठकर उनके मनोद्वन्द्व को पकड़ने और उसका समुचित हल प्रस्तुत करने की प्रतिबद्धता है| गिजूभाई बधेका, ए.एस. नील, मांटेसरी, जॉन हॉल्ट, रुक्मिणी अरुंडेल या डेलक्रोज बच्चों की समस्याओं के साथ सिर्फ इतना भर नया करते हैं कि वे समस्या पर नए ढंग से सोचते हैं| यही काम इस पूरी पुस्तक में नए शिक्षक करते दिख रहे हैं| कहा जाता है, सत्य कल्पना से भी विचित्र होता है| इस पुस्तक में सच्ची घटनाएं हैं| सचमुच के दुख-दर्द और समस्याएं हैं| आत्मीयता, मानवीयता और सहजता के स्तर पर उनके समाधान हैं| बड़ी बात यह है कि समाधान देने वाले सरकारी स्कूल के अध्यापक हैं| यह भी इसकी एक ताजगी है, आज की तारीख में सरकारी स्कूल के अध्यापक जनमानस के हिसाब से सिर्फ वेतनभोगी नीरस कर्मचारी भर रह गए है| शिक्षकोचित गरिमा, संवेदना, स्नेह, प्रेम, करुणा और कर्मनिष्ठा उनसे कब की दूर जा चुकी है| यह किताब इस भ्रमजाल पर प्रहार करती है और स्पष्ट धारणा विकसित करती है कि शिक्षक में आम कर्मचारी से अलग सदैव एक नैतिक दृष्टिकोण विद्यमान रहता है|
  
पुस्तक का पहला खण्ड कक्षा कक्ष में हुई किसी समाधान परक वार्ता पर आधारित है| इस खण्ड के लेखों में पर्याप्त कथारस है| दूसरा खण्ड कक्षा कक्ष या विद्यालय में आयोजित गतिविधियों पर केंद्रित है| कुछ गतिविधियां शैक्षिक हैं तो कुछ सांस्कृतिक...इसमें प्रतिभागी बच्चों का उत्साह, आनन्दपूर्ण भंगिमा, दायित्वबोध, खिलंदड़ापन अपने चरम पर है| खण्ड तीन के केंद्र में विद्यालय के विविध आयोजन की झॉंकियॉं हैं| वार्षिकोत्सव, अभिभावक बैठक, खेलकूद के आयोजन या सांस्कृतिक कार्यक्रम पर अध्यापकों के आलेख हैं| इस पूरी लेखमाला में संस्मरण, फीचर, निबंध, रिपोर्ताज और कहानी की प्रतिछवियॉं हैं| चौथे खण्ड के लेख मूलतः छोटे-बड़े शैक्षिक भ्रमण के वृतांत हैं और अपनी प्रस्तुति के अंतर्गत चित्रात्मक और गतिशील बन पड़े हैं| एक वृतांत डॉ. प्रज्ञा त्रिपाठी ने प्रस्तुत किया है-‘व्यावहारिक ज्ञान की राह में बच्चे’ ! यह यात्रा कुल चार-पॉंच किलोमीटर के अन्दर खेत, अस्पताल, थाना, तहसील और बंबा ताला पार्क के बीच सम्पन्न हुई है, सहयोगी शिक्षकों की सूझबूझ और क्रिया-कलाप से यह अविस्मर्णीय बन पड़ी है| यह अभिनव प्रतिमान रचती है कि छोटे दायरे में भी बच्चों के जानने-समझने के लिए बहुत कुछ होता है| 
 
पुस्तक का पांचवा खण्ड अध्यापकों के लीक से हटकर किए गए उन कार्यों और प्रयासों का प्रतिदर्श प्रस्तुत करता है, जिससे स्कूल की गुणवत्ता में सुधार हुआ| विद्यालय अपेक्षाकृत बेहतर बन सके| यह पूरा खण्ड इस बात का गवाह है कि अध्यापक प्राचीन गुरुकुल परम्परा के ऋषि-मुनि गुरुओं के आधुनिक रूप हैं| उसके अन्दर नया कुछ करने जुनून बाकी है| उनमें संवेदना है, बचपन को तराशकर चरित्रवान नागरिक गढ़ने का हुनर और ललक है| ‘एक बार फिर...अरे ये तो वही मैडम हैं’ की रिम्पू सिंह की तरफ चलते हैं| यह एआरपी और संदर्भदाता है| विद्यालयों का अनुश्रवण और पर्यवेक्षण करने के साथ-साथ बच्चों को खेल खिलाती हैं, गतिविधियां कराती हैं| इसलिए छात्र-छात्राएं उनको पसंद करती हैं और उनके विद्यालय आने पर सब खुशी से झूम उठते हैं|

लेखों के रचनाकार अध्यापक-अध्यापिकाओं के मैत्री समूह ‘शैक्षिक संवाद मंच’ से सम्बद्ध हैं|  ‘प्रमोद दीक्षित मलय’ ने सन् 2012 में कुछ उत्साही शिक्षकों को लेकर यह संगठन खड़ा किया था| इसका ध्येय वाक्य है-‘विद्यालय बनें आनन्दघर’ ! इसी संकल्प के साथ यह शिक्षा में नवाचार और गुणवत्ता संवर्धन की दिशा में कार्य कर रहा है| अभी इस मंच का उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ के सुदूरवर्ती विद्यालयों के शिक्षकों तक विस्तार हो चुका है| इससे जुड़े  शिक्षकों और बच्चों में लिखने-पढ़ने की संस्कृति का विकास हो, सृजनात्मक प्रतिभा सामने आए| इस दृष्टि से मंच समय-समय पर मैत्री समूह के सदस्यों और अन्य सृजनकर्मियों से रचनाएं मँगवा के विविध विधाओं के संकलन प्रकाशित करता है| शिक्षक साथियों से दैनंदिन अनुभव डायरी के रूप में लिखवाए जाते हैं| यह लेख भी इन्हीं डायरियों से निकले है, इसलिए इसमें डायरी विधा के तत्वों का भी समावेश है| पुस्तक शिक्षकों और अभिभावकों के लिए प्रेरणापुंज है|

अंत में इस महत्वपूर्ण पुस्तक के सम्पादन और प्रकाशन के लिए मैं ‘प्रमोद दीक्षित मलय’ को साधुवाद देता हूँ| पुस्तक में जिन शिक्षकों के लेख समायोजित हैं, मैं उनकी नवाचारी प्रतिभा, समर्पण और निष्ठा के प्रति भी सम्मान व्यक्त करता हूँ| मैं सोचता हूँ, कर्मयोग की निष्ठा विस्तार के लिए शिक्षक के अलावा शायद ही कोई अन्य कार्मिक संवर्ग मंच या संगठन खड़ा किया होगा| आज के व्यावसायिक युग में शिक्षकों का यह कृत्य उनके वैशिष्ठ्य का प्रमाण है| 

About The Author

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download