प्रदूषण की बढ़ती चुनौती

प्रदूषण की बढ़ती चुनौती

दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या गहरी है और सारी दुनिया इस बात से परिचित है लेकिन ये मसला सिर्फ भारत की राजधानी में ही नहीं है। यह आम अनुभव है और इसकी पुष्टि अब एक नए अध्ययन से भी हुई है कि देश की ज्यादातर आबादी दूषित हवा में सांस ले रही है। १.३ अरब की आबादी वाले भारत की दो तिहाई जनसंख्या गांवों में रहती है। आम तौर पर गांवों की आबोहवा को शहरों के मुकाबले साफ सुथरा माना जाता है, लेकिन ताजा अनुसंधान से ये बात भी गलत साबित हुई है। आईआईटी बॉम्बे और हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट के साथ मिलकर अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने भारत में पर्यावरण की हालत पर शोध किया। अमेरिकी न्यूज चैनल सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक नए शोध में पता चला कि वर्ष २०१५ में प्रदूषण के चलते भारत में जितनी मौतें हुईं, उनमें से ७५ फीसदी मामले गांवों के थे। शोध में शामिल वैज्ञानिकों ने सीएनएन को बताया कि वायु प्रदूषण राष्ट्रीय यानी पूरे भारत की समस्या है। यह सिर्फ शहरी इलाकों या महानगरों तक ही सीमित नहीं है। दरअसल, अनुपात देखा जाए तो इसका असर ग्रामीण भारत पर शहरी भारत से कहीं ज्यादा है। वायु प्रदूषण को जानलेवा धूल के बहुत ही छोटे कण बनाते हैं। इन कणों को पीएम २.५ कहा जाता है। ग्रामीण इलाकों और शहरी इलाकों में पीएम २.५ कणों का स्तर करीब एक जैसा मिला। वैज्ञानिकों के मुताबिक आबादी ज्यादा होने और कमजोर स्वास्थ्य सेवाओं के चलते गांवों में मौतें भी ज्यादा हुईं। रिसर्च के दौरान हर राज्य के आंक़डे जुटाए गए। २०१५ में भारत में वायु प्रदूषण के चलते करीब १० लाख लोगों की मौत हुई। बीते २५ साल में आर्थिक विकास के साथ साथ भारत में प्रदूषण की समस्या भी ब़ढती चली गई। इसी बीच एक नई समस्या भी सामने आने लगी है। कहा जा रहा है कि बेहतरीन प्रौद्योगिकी प्रदूषण के संकट को खत्म नहीं कर सकती, बल्कि यह हवा में मौजूद बेहद महीन कणों की निगरानी कर सकेगी, जो स्वास्थ्य के लिए नया खतरा होंगे। पर्यावरण व स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि वर्तमान में हवा में पीएम१० व पीएम२.५ माइक्रोमीटर से कम व्यास वाले कणों का प्रवाह है, जो प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं के कारक हैं। इससे तेज प्रवाह वाले पार्टिक्यूलेट मैटर यानी पीएम१ अगला खतरा हो सकते हैं। सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (एसएएफएआर) के मुताबिक, पीएम१ की श्रेणी में आनेवाले अत्यधिक महीन कण ज्यादा खतरनाक होते हैं, लेकिन वर्तमान में इस पर विचार नहीं हो रहा है। साक्ष्यों की कमी के कारण हमारे पास पीएम१ के मानक नहीं हैं। इसे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही ज्यादा खतरनाक माना जाता है। आने वाले कुछ वर्षो में महीन कणों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।

Tags:

About The Author

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download