पुलवामा का प्रश्न
जिम्मेदार पदों पर रहे लोगों से उम्मीद की जाती है कि वे जब कोई बयान दें तो उसके परिणामों का ध्यान अवश्य रखें
पूर्ववर्ती सरकारों को यही सख्त नीति अपनानी चाहिए थी
वर्ष 2019 के पुलवामा हमले को लेकर जारी बयानबाजी आत्मचिंतन के बजाय राजनीतिक हित साधने की कोशिश ज़्यादा लगती है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का यह आरोप कि 'पुलवामा आतंकी हमला व्यवस्था की विफलता का परिणाम था, जिसमें व्यापक सुरक्षा और खुफिया खामियां शामिल हैं', के बाद त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री माणिक सरकार भी इस बहस का हिस्सा बनने को आतुर प्रतीत होते हैं। वे दावा करते हैं कि 'भाजपा ने वर्ष 2019 के पुलवामा आतंकी हमले और उसके बाद पाकिस्तान के बालाकोट में हवाई हमले का इस्तेमाल लोकसभा चुनाव जीतने के लिए किया था।'
जिम्मेदार पदों पर रहे लोगों से उम्मीद की जाती है कि वे जब कोई बयान दें तो उसके परिणामों का ध्यान अवश्य रखें। विशेष रूप से तब, जब मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हो। इन दिनों सत्यपाल मलिक भारतीय मीडिया में तो छाए हुए हैं, पाकिस्तानी मीडिया में भी उनके चर्चे हैं। उनके बयानों को पाकिस्तानी चटखारे लेकर पढ़ रहे हैं और पुलवामा हमले के लिए भारत को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।जो पड़ोसी देश हमारे यहां आतंकवाद को परवान चढ़ाने की हर संभव कोशिश करता रहता है, सत्यपाल मलिक ने उसे 'बोलने' का मौका दे दिया, जिसका इस्तेमाल वह खूब कर रहा है। सवाल है- सत्यपाल मलिक ये 'दावे' पुलवामा हमले के चार साल बाद क्यों कर रहे हैं? उन्हें उसी वक्त देशवासियों के नाम चिट्ठी लिखकर इस्तीफा दे देना चाहिए था।
निस्संदेह पुलवामा हमला अत्यंत दु:खद एवं निंदनीय है। उस दिन देश ने अपने 40 बहादुर जवान गंवा दिए थे। इतना बड़ा हमला हुआ तो जाहिर-सी बात है कि उसके पीछे कहीं-न-कहीं चूक हुई थी। ऐसे मुद्दों पर सरकार, सेना और प्रशासन को चिंतन-मनन करना चाहिए और भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों, इसके लिए पुख्ता इंतजाम करने चाहिएं।
अक्सर छोटे या बड़े हमले को लेकर यह कह दिया जाता है कि एजेंसियों की विफलता थी। वास्तव में संबंधित एजेंसियां अपने स्तर पर जानकारी जुटाने की भरसक कोशिश करती हैं, जिनके आधार पर ज़्यादातर हमले होने से पहले ही रोक दिए जाते हैं। फिर भी ऐसा होता है कि कोई जानकारी उन तक नहीं पहुंचती, जिसके बाद घटना होती है और उसके आधार पर यह दोषारोपण शुरू हो जाता है कि एजेंसियां सतर्क नहीं थीं। अगर सतर्क नहीं होतीं तो आतंकवादियों की इतनी कोशिशों को विफल नहीं किया जा सकता था, जिनके बारे में आम जनता को तो मालूम ही नहीं होता।
यह भी ध्यान रखें कि कोई व्यवस्था 100 प्रतिशत सुरक्षित व कारगर नहीं होती। एजेंसियां अपने पिछले अनुभवों से सीखती हैं और भविष्य की बेहतरी के लिए कदम उठाती हैं। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि हाल के वर्षों में बड़ी संख्या में आतंकवादी मारे गए हैं। जो आतंकवादी पहले दिल्ली और मुंबई तक आकर कहर बरपाते थे, अब ज्यादातर एलओसी पर मार गिराए जाते हैं। इससे देश की सुरक्षा मजबूत हुई है, जिसका श्रेय एजेंसियों और सुरक्षा बलों को जाता है। माणिक सरकार को इस बात पर आपत्ति है कि बालाकोट में एयर स्ट्राइक का इस्तेमाल लोकसभा चुनाव जीतने के लिए किया गया। क्या वे यह कहना चाहते हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा चुनाव का विषय नहीं होना चाहिए? क्या चुनाव में सिर्फ बिजली, पानी, सड़क और नाली जैसे मुद्दे ही होने चाहिएं?
निस्संदेह इन सबका अपनी जगह महत्त्व है और देश का विकास होना चाहिए, लेकिन यह तभी संभव है, जब हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा मजबूत हो। वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लोकसभा चुनाव में वोट मिले तो इसकी एक वजह पाकिस्तान में की गई एयर स्ट्राइक भी थी। जनता चाहती थी कि पाकिस्तान को उसकी हरकतों के लिए सजा मिले। इसमें क्या ग़लत है? पूर्ववर्ती सरकारों को यही सख्त नीति अपनानी चाहिए थी। अगर वे ऐसा करतीं तो देशवासी उनके फैसले का भी खुले दिल से स्वागत करते।