नाम में क्या रखा है?
क्या अधिकारी यह नहीं जानते कि 'सीता' कोई सामान्य नाम नहीं है?
लोग अपनी संतानों के जन्म से पहले ही इंटरनेट पर सुंदर व कर्णप्रिय नाम ढूंढ़ना शुरू कर देते हैं
पश्चिम बंगाल के एक चिड़ियाघर में शेर और शेरनी के विवादास्पद नाम रखे जाने से परहेज करना चाहिए था। इस संबंध में कलकत्ता उच्च न्यायालय की जलपाईगुड़ी सर्किट पीठ द्वारा यह कहा जाना कि 'विवाद टालने के लिए शेर और शेरनी के नाम क्रमश: ‘अकबर’ और ‘सीता’ रखने से बचना चाहिए था', पश्चिम बंगाल चिड़ियाघर प्राधिकरण के लिए बड़ा झटका है। क्या उसके अधिकारी यह नहीं जानते कि 'सीता' कोई सामान्य नाम नहीं है? वे करोड़ों-करोड़ों लोगों की आराध्या हैं, माता हैं। क्या चिड़ियाघर में जानवरों के लिए नामों की कमी पड़ गई थी? चिड़ियाघर के अधिकारी एक सामान्य-सा शब्दकोश देख लेते, जिसमें हजारों नाम मिल जाते। कुछ लोग इसे 'सेकुलरिज्म' से जोड़कर देख रहे हैं। 'सेकुलरिज्म' का मतलब होना चाहिए- हर धर्म और उसके प्रतीकों का सम्मान करना, न कि उनकी दिव्य विभूतियों के नामों का मनमाने तरीके से इस्तेमाल करना। यह कहा जा रहा है कि ये शेर-शेरनी त्रिपुरा के सिपाहीजाला प्राणी उद्यान से सिलीगुड़ी के बंगाल सफारी पार्क में 12 फरवरी को लाए गए थे। उनके पहले से ही ये नाम रखे हुए थे। प. बंगाल सरकार की ओर से पेश वकील ने भी दावा किया कि दोनों जानवरों के नाम त्रिपुरा में रखे गए थे। उन्होंने इसके सबूत के तौर पर दस्तावेज उपलब्ध होने की बात कही। अगर ऐसा है तो प. बंगाल द्वारा उक्त शेर-शेरनी को स्वीकार किए जाने से पहले या स्वीकार किए जाने के दौरान ही आपत्ति दर्ज करानी चाहिए थी। इसके बाद अधिकारी खुद ऐसे नाम रख सकते थे, जो इन जानवरों के लिए उचित प्रतीत होते। यह स्पष्ट रूप से संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों की 'उदासीनता' का मामला है। हम अपने घरेलू या मोहल्ले के पालतू जानवरों के नाम रखते हुए भी सावधानी बरतते हैं। इस बात का खास ध्यान रखते हैं कि नामकरण से किसी व्यक्ति या परिवार की भावनाएं आहत न हों। ऐसे में चिड़ियाघर के किसी जानवर का नाम माता सीता के नाम पर कैसे रखा जा सकता है?
भारत में रहने वाले हर अधिकारी-कर्मचारी से यह उम्मीद जरूर की जाती है कि उन्हें देश की संस्कृति, इतिहास, धार्मिक मान्यताओं, परंपराओं आदि की पर्याप्त जानकारी हो। उक्त मामले को अदालत में ले जाने की नौबत ही नहीं आनी चाहिए थी। बेहतर तो यह होता कि दोनों जानवरों के नाम सार्वजनिक होने से पहले ही बदल दिए जाते। वह उन अधिकारियों की अक्लमंदी कहलाती। न्यायमूर्ति सौगत भट्टाचार्य ने मामले की सुनवाई करते हुए जो प्रश्न पूछा, वह अत्यंत प्रासंगिक है- 'क्या किसी जानवर का नाम देवताओं, पौराणिक नायकों, स्वतंत्रता सेनानियों या नोबेल पुरस्कार विजेताओं के नाम पर रखा जा सकता है?' लोग अपने घर के बड़े-बुजुर्गों के नाम पर भी जानवरों के नाम रखना पसंद नहीं करेंगे। जो लोग इस पूरे मामले पर यह टिप्पणी कर रहे हैं कि 'नाम में क्या रखा है', तो क्या वे 'अपना' या 'अपनों का' ऐसा नाम रखना पसंद करेंगे, जो अत्यंत अभद्र व आपत्तिजनक हो? लोग अपनी संतानों के जन्म से पहले ही इंटरनेट पर सुंदर व कर्णप्रिय नाम ढूंढ़ना शुरू कर देते हैं। एक अभिनेत्री ने जब अपने नवजात शिशु का नाम क्रूर विदेशी आक्रांता के नाम पर रखा तो उसे प्रशंसनीय नहीं माना गया था। कोई नाम चंद अक्षरों का समूहभर नहीं होता। उसके पीछे कई कारक होते हैं। अगर 'नाम में कुछ नहीं रखा' तो क्या कोई व्यक्ति जर्मनी में अपना नाम 'हिटलर' रख सकता है? ज़रा मालूम कीजिए कि इस समय इटली में कितने लोगों के नाम 'मुसोलिनी' हैं? क्या पश्चिमी देश ऐसे नाम वाले किसी व्यक्ति को वीजा देंगे? जो पश्चिमी देश पूरी दुनिया को 'उदारवाद, मानवाधिकार, स्वतंत्रता' के नाम पर उपदेश देते हैं, अगर उन्हें कहीं भनक भी लग जाए कि दूसरे विश्वयुद्ध में हिटलर या मुसोलिनी का कोई सहयोगी कहीं छुपा हुआ है तो वे उसे पकड़कर मृत्युदंड दे देते हैं। वहां 'उदारवाद, मानवाधिकार, स्वतंत्रता' से कोई लेना-देना नहीं होता है। अगर 'नाम में कुछ नहीं रखा' तो एक सोशल मीडिया ऐप ने 'आइसिस' नामक महिला का अकाउंट क्यों बंद कर दिया था, जबकि यह पश्चिमी मान्यताओं में एक देवी का नाम भी है? बाद में यह मुद्दा मीडिया में आया तो वह अकाउंट बहाल किया गया। चिड़ियाघर हो या कोई और संस्थान, उसे नामकरण करते समय इन बातों का अवश्य ध्यान रखना चाहिए।