बीएसएनएल: कैसे लौटे वैभव?

एक समय था, जब बाजार में बीएसएनएल का ही दबदबा हुआ करता था

बीएसएनएल: कैसे लौटे वैभव?

बीएसएनएल का ग्राहक आधार बढ़ना और मजबूत होना बहुत जरूरी है

संसद की एक समिति द्वारा भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) की सेवाओं की गुणवत्ता और ग्राहक आधार के संबंध में जताई गई अप्रसन्नता अकारण नहीं है। आम आदमी तो वर्षों से इसी बात की शिकायत करता रहा है, लेकिन उसकी आवाज अनसुनी कर दी गई। आखिरकार उसे निजी कंपनियों की सेवाएं लेनी पड़ीं। 

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भाजपा सांसद संजय जायसवाल की अध्यक्षता वाली प्राक्कलन समिति को अधिकारियों ने अगले छह महीनों में बेहतर सेवाओं का आश्वासन दे दिया। इस अवधि में सेवाएं कितनी बेहतर होंगी, यह तो समय ही बताएगा। हां, यह कहना गलत नहीं होगा कि बीएसएनएल ने बहुत देर कर दी। ऐसा नहीं है कि जनता ने उससे हमेशा ही मुंह मोड़कर रखा था। 

एक समय था, जब बाजार में बीएसएनएल का ही दबदबा हुआ करता था। गांवों में तो इसकी सिम मिलना बहुत मुश्किल था। बहुत लोग शहर जाकर इसके दफ्तर के चक्कर लगाते तो सिम मिलती थी। जब बीएसएनएल का सुनहरा दौर चल रहा था, तब इसके उच्चाधिकारियों और तत्कालीन संप्रग सरकार को दूरदर्शिता दिखाते हुए कुछ बड़े फैसले लेने चाहिए थे, जो नहीं लिए गए। उसी दौरान 'अवैध' टेलीफोन एक्सचेंज मामला सामने आया था। 2जी स्पेक्ट्रम मामले ने भी खूब सुर्खियां बटोरी थीं। रही-सही कसर कामकाज के सुस्त ढर्रे ने पूरी कर दी। 

बीएसएनएल का नेटवर्क मिलने में बहुत मुश्किल होती थी। आज भी कई इलाकों में यह समस्या है। उक्त समिति में शामिल सांसदों की यह चिंता वाजिब है कि एक समय की प्रमुख दूरसंचार कंपनी की आज बाजार हिस्सेदारी घटकर मात्र सात प्रतिशत रह गई है, जबकि निजी ऑपरेटर मोबाइल कनेक्शन के लिए लोगों की पसंद बन गए हैं।

वास्तव में निजी ऑपरेटरों का लोगों की पसंद बनने के पीछे कई वजह हैं। पिछले दशक तक जिन लोगों ने बीएसएनएल की इंटरनेट सेवाएं ली थीं, वे इस तथ्य से परिचित होंगे कि जब कोई तकनीकी खराबी आ जाती थी तो उसे ठीक करवाने की प्रक्रिया बहुत लंबी होती थी। सोशल मीडिया पर ऐसी टिप्पणियों की भरमार है, जिनमें लोग अपने अनुभव बताते हुए मिल जाएंगे कि उन्होंने अधिकारियों से निवेदन किया, दफ्तर में प्रार्थनापत्र लेकर घूमे, उन्हें एक काउंटर से दूसरे काउंटर तक दौड़ाया गया। 

कई जगह ये भी शिकायतें थीं कि संबंधित अधिकारी उनकी समस्याओं का समाधान करने के खास इच्छुक नहीं थे। बेशक ऐसे अधिकारी भी होते हैं, जो बड़ी मेहनत और ईमानदारी के साथ शिकायतें सुनते थे / हैं और समाधान भी करते थे / हैं, लेकिन इस कड़वी हकीकत को मानना पड़ेगा कि बहुत लोगों की शिकायतों का समाधान आसानी से नहीं होता था। उन्हें संबंधित अधिकारियों से पर्याप्त सहयोग नहीं मिलता था। जब कोई ग्राहक किसी कंपनी को पैसा देकर सेवाएं लेता है तो वह यह भी चाहता है कि उसे निर्बाध सेवाएं मिलती रहें और कोई समस्या आए तो संबंधित अधिकारियों से पर्याप्त सहयोग मिले। 

निजी कंपनियों ने इन बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए अपनी सेवाएं जारी कीं। वे नए-नए ऑफर लेकर आईं। उनकी सेवाएं लेना तुलनात्मक रूप से काफी आसान भी था / है और वे समय के साथ नई तकनीक को शामिल करती रहती हैं। ग्राहकों को उनके साथ भी समस्याएं हैं, लेकिन इसके बावजूद वे उनसे जुड़े हुए हैं। इस साल निजी कंपनियों द्वारा अपनी सेवाओं के शुल्क में बढ़ोतरी किए जाने के बाद लोगों ने जुलाई में बीएसएनएल में सिम पोर्ट करवाने की मुहिम शुरू कर दी थी। इसे सोशल मीडिया ने रफ्तार दी थी। 

बाद में कई लोग सोशल मीडिया पर यह कहते नजर आए कि बीएसएनएल की सेवाएं सस्ती जरूर हैं, अगर ये थोड़ी और बेहतर हो जाएं तो ही वे भविष्य में इससे जुड़े रहेंगे। अभी बीएसएनएल के पास सुनहरा मौका है। अगर यह कुछ सुधार कर ले तो इसका वैभव लौट सकता है। 

सबसे पहले तो नेटवर्क मजबूत किया जाए। इसकी सेवाएं लेने और कोई समस्या होने पर समाधान की प्रक्रिया आसान की जाए। आकर्षक ऑफर्स की शुरुआत की जाए। नए जोश के साथ काम करते हुए निजी कंपनियों से स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की जाए। बीएसएनएल का ग्राहक आधार बढ़ना और मजबूत होना बहुत जरूरी है।

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