चिंता नहीं, चिंतन कीजिए
स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि हम जो सोचते हैं वही बन जाते हैं
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संजीव ठाकुर
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स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि हम जो सोचते हैं वही बन जाते हैं| विचार एवं सिद्धांत ही व्यक्ति का निर्माण करता है| वही दुष्ट होने या महान होने का निर्णायक है और बिना विचारों सिद्धांतों के व्यक्त व्यक्ति का अस्तित्व ही नहीं| विवेकानंद जी के विचार सर्व कालीन प्रासंगिक है| उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उनके जीवित रहते हुए थे| आज हमारे बीच विवेकानंद जी स शरीर मौजूद नहीं है, पर उनके विचारों की महत्ता कायम है| भौतिक शरीर के नष्ट हो जाने से और भौतिक विचार तथा सिद्धांत उतनी ही तीव्रता रखते हैं, वेग रखते हैं, जो एक समाज में परिवर्तन ला सकती है| विचारों की यह अमरता तथा तीव्रता किसी भी तानाशाह के लिए इतनी खतरनाक है, जितनी की सुप्त शेर की गुफा में रहना| जनता के मध्य शुद्ध विचारधारा के जागृत होने पर क्रांति लाई जा सकती है| फिर चाहे वह फ्रांस के वर्साय के महल का विध्वंस हो अथवा भारत की स्वतंत्रता हेतु वृहद आंदोलन हो| व्यक्ति या व्यक्तियों के दबाव को दबाने के बाद विचारों की पीड़िता ने जनसामान्य को एक गरजते हुए सिंह में तब्दील कर दिया था| यह शाश्वत सत्य है कि व्यक्ति को जरूर आप दबा सकते हैं,पर विचारधारा सिद्धांत अजर अमर होते हैं,और वही युग निर्माण में अपनी महती भूमिका निभाते हैं|
विचारों के संदर्भ में कहा जाता है कि एक व्यक्ति का विचार तब तक उस व्यक्ति के पास है, जब तक वह अकेला है किंतु जैसे ही विचारधारा एवं सिद्धांत का प्रचार प्रसार होता है, तो वह व्यक्ति अकेला ना रह कर उस जैसे हजारों लाखों लोग उसके साथ हो जाते हैं| तब वह अकेला नहीं रह जाता| वह अपने विचारों के माध्यम से जन सामान्य को प्रभावित कर लोगों को उस लड़ाई में शामिल कर लेता है, जिस लड़ाई के वह कभी अकेले नहीं लड़ सकता था| विचारों सिद्धांतों की तीव्रता आवेश तथा सघनता किसी भी क्रांतिकारी लक्ष्य की प्राप्ति में एक बड़ा साधक हो सकता है| विचार व सिद्धांत एक से दूसरे व्यक्ति तक स्थानांतरित होते रहते हैं| जिसमें विचारों को सघनता प्राप्त होती है| ताकि सत्ता के दमन के समय वैचारिक अमरता स्थाई बनी रहे| चीन उत्तर कोरिया जैसे राष्ट्रों में विचारों के इस स्वतंत्र का प्रवाह को बाधित नियंत्रित कर दिया गया| अभिव्यक्ति के तमाम माध्यमों को प्रतिबंधित कर दमन चक्र चलाया गया| वहां विचार और सिद्धांत विद्वान व्यक्ति तक ही सीमित रहे उसका फैलाव या विस्तार नहीं हो पाया| जो मानव समाज तथा मानव अधिकारों की संवेदना तथा धाराओं का उल्लंघन भी है| किसी स्वस्थ, स्वतंत्र राष्ट्र के लिए व्यक्ति समाज और राष्ट्र के विचारों की स्वतंत्रता नवीनता तथा उत्कृष्टता अत्यंत आवश्यक है| क्योंकि विचारधारा और सिद्धांतों को रोक पाना किसी भी सत्ता या निरंकुश राजा के नियंत्रण में नहीं होता| विचारों और सिद्धांत अनादि काल से गतिशील है तथा अनंत तक जगत तक गतिशील रहेंगे,और उसका प्रतिपादक एवं अनुशीलन कर्ता विचारों के साथ अमर हो जाते हैं|