कितने हादसे और?
भीड़ को नियंत्रित करना चुनौतीपूर्ण होता है
भगदड़ मचाए बिना भी काम बहुत सुंदर ढंग से और शीघ्र हो सकते हैं
तिरुमला स्थित भगवान वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में भगदड़ मचने से कुछ श्रद्धालुओं की मौत होने और कई श्रद्धालुओं के घायल होने की घटना अत्यंत दु:खद है। हमने पूर्व में हुईं उन घटनाओं से कोई सबक नहीं लिया, जिनमें भगदड़ के कारण लोगों को जान गंवानी पड़ी थी। भारत में सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक या किसी अन्य उद्देश्य से लोगों को इकट्ठा करना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है। मुश्किल है- भीड़ को नियंत्रित करना। इसके लिए आयोजकों और प्रशासन की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। साथ ही लोगों को अपने स्तर पर अनुशासन का पालन करना चाहिए। पिछले साल जुलाई में उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुए 'सत्संग' में मची भगदड़ के कारण 121 लोगों की मौत हो गई थी और कम से कम 150 लोग घायल हो गए थे। हर साल किसी मेले, खास तिथि और त्योहार आदि के मौके पर ऐसी घटना जरूर होती है, जो कुछ परिवारों को जीवनभर का दर्द देकर जाती है। इससे संबंधित खबरें अंतरराष्ट्रीय मीडिया कुछ ऐसे प्रकाशित करता है कि भारत में भीड़ प्रबंधन में ढेरों खामियां और अव्यवस्थाएं हैं। क्या हम इन हादसों को टाल नहीं सकते? अभी पूरी तरह टालने के बजाय इनकी तादाद कम कर लें, तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। भगदड़ जैसे हादसों के बाद लोगों में आक्रोश होता है, जो स्वाभाविक है। वे सोशल मीडिया पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हैं। हादसे के कारणों को लेकर खूब चर्चा होती है। सरकार मुआवजे की घोषणा कर देती है, करनी भी चाहिए। उसके बाद किसी अन्य विषय पर चर्चा शुरू हो जाती है।
क्या एक हादसा इस बात के लिए काफी नहीं कि समस्या की जड़ तक पहुंचा जाए, चीजों को ठीक किया जाए और भविष्य में किसी अन्य हादसे को टालने के लिए पर्याप्त इंतजाम किए जाएं? प्राय: बड़े हादसे के बाद कुछ दिनों के लिए प्रशासन बहुत सतर्क रहता है। फिर धीरे-धीरे सबकुछ पुराने ढर्रे पर लौट आता है। दुर्भाग्य की बात है कि अगर किसी जगह भगदड़ में एक-दो लोगों की जान जाती है तो उसे गंभीरता से नहीं लिया जाता! वह व्यक्ति भी अपने परिवार के लिए महत्त्वपूर्ण था। उसकी भरपाई कोई मुआवजा नहीं कर सकता। अगर हादसे से एक व्यक्ति भी पीड़ित होता है तो पूरे मामले को बहुत गंभीरता से लेना चाहिए, ताकि भविष्य में अन्य लोग सुरक्षित रहें। भीड़ नियंत्रण के लिए दो बिंदुओं की ओर खास ध्यान देना होगा। किसी महत्त्वपूर्ण आयोजन आदि के लिए जिस जगह पर लोग इकट्ठे होने वाले हैं, वहां तकनीक की मदद से जनसंख्या पहले ही निर्धारित कर ली जाए। उदाहरण के लिए, अगर किसी जगह पर एक दिन में 1,000 लोगों के इकट्ठे होने की ही क्षमता है, तो वहां नौजवानों के प्रवेश के लिए ऑनलाइन पंजीकरण जैसे नियम लागू किए जा सकते हैं। उनके मोबाइल फोन पर अनुमति पत्र भेजा जा सकता है, जिसे वे प्रवेश के दौरान दिखाकर आगे बढ़ सकते हैं। बुजुर्गों को इन नियमों से कुछ छूट दी जा सकती है। इससे पूरी व्यवस्था बहुत आसान हो सकती है। इसके साथ ही नागरिकों, खासकर स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थियों को प्रशिक्षण दिया जाए कि भगदड़ मचाए बिना भी काम बहुत सुंदर ढंग से हो सकते हैं। स्कूल में छुट्टी की घंटी बजने वाली हो, सिनेमा में फिल्म के आखिरी दो मिनट बचे हों, बस/ट्रेन अपने गंतव्य पर जाकर रुक गई हो ... कई लोग बाहर निकलने के लिए बहुत ज्यादा जल्दबाजी करते हैं। इस तरह वे अपने साथ दूसरों के जीवन को संकट में डालते हैं। अगर सभी लोग थोड़े-से अनुशासित हो जाएं, दूसरों की सुविधा का ध्यान रखें और जल्दबाजी न करें तो कई हादसे टल जाएं।