क्या कनाडा के प्रधानमंत्री का इस्तीफा भारत के हित में होगा?
अमेरिका में ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद से उन पर दबाव भी बहुत बढ़ गया था
Photo: JustinPJTrudeau FB Page
अशोक भाटिया
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गौर करने वाली बात यह है कि कनाडा में ट्रू़डो की राजनीति खालिस रूप से भारत के खिलाफ रही है| ट्रूडो कनाडा की जमीन से भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने वाले हार्डकोर खालिस्तानियों को चुपचाप न सिर्फ बर्दाश्त किया बल्कि वहां की पुलिस ने उन्हें कानूनी संरक्षण भी दिया| कनाडा में जब भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को आपत्तिजनक रुप में दिखाया गया तो वहां की पुलिस चुप रही| कनाडा में हिन्दुओं के मंदिरों पर हमले हुए तो भी वहां पुलिस चुप रही| विकसित देशों के कतार में शामिल ट्रूडो से ये उम्मीद की जा रही थी कि वे खालिस्तानियों के इन करतूतों की आलोचना करते और तुरंत अपनी पुलिस को इन पर एक्शन लेने को कहते| लेकिन वे चुप रहे और कुछ उग्रवादियों के वोट के लिए इन्हें शह देते रहे|ट्रूडो ने खुद स्वीकार किया है कि कनाडा में खालिस्तानी तत्व मौजूद हैं| हालांकि ट्रूडो ने यह कहकर उनके अपराध को कम करने की कोशिश की कि वे पूरे सिख समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं| ट्रूडो के इन कदमों से एक आम कनाडाई शहरी के मन अपने पीएम को लेकर विश्वास का ह्रास हुआ|
भारत से फरार आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत सरकार की भूमिका बताकर ट्रूडो ने द्विपक्षीय संबंधों की मर्यादा ही खत्म कर दी| सितंबर २०२३ में ट्रूडो ने जब कनाडा की संसद में कहा कि कनाडा के राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र के पास यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि भारत सरकार के एजेंटों ने एक कनाडाई नागरिक की हत्या की है| ट्रूडो के आरोप से भारत सन्न रह गया| ट्रूडो के आरोपों के बाद १६-१७ महीने गजुर गये हैं लेकिन अबतक कनाडा इस हत्याकांड में भारत की एजेंसियों के शामिल होने का कंक्रीट सबूत नहीं दे सका है| ट्रूडो के इन कदमों से कनाडा में उनकी लोकप्रियता घटती गई| एंगस रीड इंस्टीट्यूट (एआरआई)और एशिया पैसिफिक फाउंडेशन ऑफ कनाडा द्वारा किये गये सर्वे में कनाडा के ३९ फीसदी नागरिक मानते हैं कि कनाडा अपने संबंधों को अच्छी तरह से प्रबंधित नहीं कर रहा है, जबकि ३२ फीसदी लोगों का नजरिया इसके उलट है| वहीं, २९ फीसदी लोगों ने कहा कि वे कुछ कह नहीं सकते हैं| सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि ३९ फीसदी कनाडाई मानते हैं कि जब तक ट्रूडो प्रधानमंत्री हैं, तब तक संबंधों में सुधार नहीं होगा| इस बीच ट्रूडो ने निज्जर का राग गाना नहीं छोड़ा| वो निज्जर जो भारत का वांछित आतंकवादी था और जिसने गलत तरीके से कनाडा की नागरिकता ली थी| इस वजह से दोनों देशों के रिश्ते बिगड़ते गए| हालात बिगड़ने पर दोनों देशों ने एक दूसरे के हाईकमान में अधिकारियों की संख्या कम कर दी| इसके बाद कनाडा ने छात्राओं और छात्रों को जारी किया जाने वाला फास्ट ट्रैक वीजा खत्म कर दिया| इससे भारतीय छात्र सबसे ज्यादा प्रभावित हुए|
अमेरिकी चुनाव में ट्रंप की जीत ट्रूडो के लिए और भी बुरे दिन लेकर आई| जीत के बाद ट्रंप ने कहा था कि वे कनाडा पर २५ फीसदी टैरिफ लगाएंगे| ट्रंप का बयान ट्रूडो के लिए झटके की तरह था| उन्होंने तुरंत अमेरिका की फ्लाइट पकड़ी और ट्रंप से मिलने चले गये| ट्रूडो ने गुपचुप ट्रंप से मुलाकात की, उनके साथ डिनर किया| लेकिन उनकी समस्याएं दूर नहीं हो रही थीं| ट्रंप ने ट्रूडो को फार-लेफ्ट लूनेटिक कह कर उनका मजाक भी बनाया था| इसके अलावा ट्रंप ने ट्रूडो को ’कनाडा के महान राज्य का गवर्नर’ कहकर संबोधित किया| उन्होंने कनाडा को अमेरिका का ’५१वां राज्य’ बनाने का सुझाव देते हुए कहा कि इससे टैरिफ और व्यापार मुद्दों पर बातचीत आसान होगी| ट्रूडो के लिए दूसरा झटका ट्रंप के करीबी और दिग्गज बिजनेसमैन एलन मस्क से आया| एलन मस्क ने एक ट्वीट में कहा कि ट्रूडो अगला चुनाव हारने वाले हैं| उन्होंने कहा कि अगले चुनाव में इनकी विदाई तय है| एलन मस्क जैसे दिग्गज उद्योगपति के बयान से ट्रूडो की प्रतिष्ठा को गहरा झटका पहुंचा| ट्रूडो को ये चुनौतियां तो देश के बाहर मिल रही थीं इधर देश के अंदर विपक्ष लगातार उनपर हमलावर होता जा रहा था| २०२१ के फेडरल चुनाव के बाद से, लिबरल्स को बाई इलेक्शन में लगातार हार मिली और संसद में उनकी संख्या घटती चली गई| इसमें टोरंटो में टोरंटो-सेंट पॉल और मॉन्ट्रियल में लासेल-एमार्ड-वर्डन जैसी सुरक्षित सीटों पर हार शामिल है| इस हार के बाद के महीनों में ट्रूडो के नेतृत्व को लेकर आंतरिक हताशा और असंतोष के बारे में लगातार कहानियां मीडिया में देखी गईं|
मालूम हो कि कनाडा की संसद हाउस ऑफ कॉमन्स में फिलहाल लिबरल पार्टी के १५३ सांसद हैं| कनाडा के हाउस में कॉमन्स में ३३८ सीटें है| इसमें बहुमत का आंकड़ा १७० है| कुछ महीने पहले ट्रूडो सरकार की सहयोगी पार्टी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) ने अपना से समर्थन वापस ले लिया था| एनडीपी खालिस्तानी समर्थक कनाडाई सिख सांसद जगमीत सिंह की पार्टी है|ऐसे में गठबंधन टूटने की वजह से ट्रूडो सरकार अल्पमत में आ गई थी| हालांकि एक अक्टूबर को हुए बहुमत परीक्षण में ट्रूडो की लिबरल पार्टी को एक दूसरी पार्टी का समर्थन मिल गया था, जिस वजह से ट्रूडो ने फ्लोर टेस्ट पास कर लिया था| कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो से मतभेद के कारण कुछ दिन पहले ही डिप्टी पीएम और वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने भी इस्तीफा दे दिया था| डिप्टी पीएम क्रिस्टिया फ्रीलैंड के इस्तीफे के बाद ट्रूडो का विरोध तेज हुआ| क्रिस्टिया ने उसी दिन इस्तीफा दिया, जिस दिन उन्हें बजट पेश करना था| उनके इस्तीफे के बाद अब कैबिनेट भी ट्रूडो पर इस्तीफे का दबाव बना रही है| लाइव टीवी पर कुछ कनाडाई लोगों ने कहा, प्रधानमंत्री ट्रूडो आपने कनाडा को बर्बाद कर दिया| आपके अंदर आपके पिता की ईमानदारी का एक कण भी नहीं है| आपके आसपास के लोग आपका साथ छोड़कर जा रहे हैं| अब आपके जाने का समय आ गया है|मीडिया भी ट्रूडो के इस्तीफे की मांग कर रही है| पत्रकार डैनियल बॉर्डमैन ने टिप्पणी करते हुए कहा कि ट्रूडो अब तक की सबसे कमजोर स्थिति में हैं| एक दूसरे पत्रकार कीन बेक्सटे ने कहा, ट्रूडो का इस्तीफा देना कनाडा के हित में है|
गौरतलब है कि कनाडा सालों से विदेशी छात्रों के लिए लोकप्रिय मुकाम रहा है| ट्रूडो सरकार ने विदेशी छात्रों को दिए जाने वाले परमिट में भी कमी करती रही है| आने वाले सालों में स्टडी परमिट में ३००,००० की कमी की जाएगी| अगले दो सालों में कनाडा सिर्फ करीब सवा चार लाख स्टडी परमिट देने वाला था|कनाडा के कॉलेजों में दाखिला लेने वाले हजारों विदेशी छात्रों को इस साल वीजा नहीं मिला है, जिसकी वजह से वे मौजूदा सेमेस्टर में पढ़ाई शुरू नहीं कर पाए हैं| परमिट में कटौती का असर कनाडा के शिक्षा संस्थानों पर तो पड़ेगा ही, अर्थव्यवस्था भी इससे प्रभावित हुई| मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नई नीतियों का उद्देश्य स्थायी निवास नामांकन की संख्या में २५ प्रतिशत की कमी लाना तथा अध्ययन परमिट को सीमित करना रहा| यह बदलाव ऐसे वक्त में आया, जब पिछले कुछ सालों में देश में जनसंख्या में बढ़ गई है| पिछले साल कनाडा में जनसंख्या वृद्धि का लगभग ९७ प्रतिशत हिस्सा अप्रवासन के कारण हुआ था| बता दें कि छात्र वकालत समूह नौजवान सपोर्ट नेटवर्क के प्रतिनिधियों ने कहा है कि इस वर्ष के अंत में जब उनके वर्क परमिट की अवधि समाप्त हो जाएगी, तो स्नातकों को निर्वासित किए जाने का खतरा होगा|इसके विरोध में कनाडा में भारतीय छात्र सड़क पर उतर आए और मुल्क की जस्टिन ट्रूडो सरकार के खिलाफ जमकर विरोध प्रदर्शन किया| सरकार द्वारा बनाई गई नई नीतियों के कारण भारतीय छात्रों को डर सता रहा है कि उन्हें देश से निकाला जा सकता है, जिसके चलते वे इस नीति के खिलाफ विरोध कर रहे हैं| नई नीति के चलते अंतर्राष्ट्रीय छात्रों और ज्यादातर भारतीय छात्रों के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं| इस नीति ने ७०,००० से अधिक स्नातक छात्रों के भविष्य को अनिश्चितता में डाल दिया| मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कनाडा के प्रिंस एडवर्ड आइलैंड प्रांत में भारतीय छात्रों ने तीन महीने से ज़्यादा समय तक विधानसभा के सामने डेरा जमाए रखा और अचानक नीतियों में हुए परिवर्तन का विरोध किया| इसी तरह ओंटारियो, मैनिटोबा और ब्रिटिश कोलंबिया प्रांतों में भी इसी तरह के प्रदर्शन देखे गए|यदि ट्रूडो सरकार जाती है और कोई नई सरकार आती है जो छात्रों को ज्यादा राहत देती है तो कनाडा सरकार को भी फायदा होगा और भारत से कनाडा पढाई के लिए जाने वाले छात्रों को भी अवसर मिलेगा|