'संयम, साधना, तप, आराधना गुणों के संगम थे गुरु राजेन्द्रसूरी'

राजेन्द्र भवन में गुरुदेव राजेन्द्रसूरीश्वर का हुआ गुणगान

'संयम, साधना, तप, आराधना गुणों के संगम थे गुरु राजेन्द्रसूरी'

गुरुदेव के 36 गुणों की झांकी प्रस्तुत की गई

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के सिमंधरस्वामी राजेन्द्रसूरी जैन श्वेताम्बर मंदिर मामुलपेट के तत्वावधान में आचार्यश्री राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की 198वीं जयंती व 118वीं पुण्यतिथि के मौके पर अभिधान कोष का विशेष वरघोड़ा व दादा गुरुदेव की गुणानुवाद सभा का आयोजन किया गया। 

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मुनिश्री वैभवरत्नविजयजी म.सा. व साध्वीश्री प्रमोदयशाश्रीजी के सान्निध्य में मामुलपेट मंदिर के दादा गुरुदेव व अभिधान कोष का वरघोड़ा निकाला गया जो चिकपेट, बीवीके अय्यांगार रोड होते हुए किलारी रोड के गुरु राजेन्द्र भवन पहुंचा और धर्मसभा में परिवर्तित हो गया।

वरघोड़े में विभिन्न महिला, बालिका व पुरुष मंडल व संघ के सदस्य उपस्थित थे। राजेन्द्र भवन में लाभार्थियों व पदाधिकारियों द्वारा दीप प्रज्वलित व गुरुदेव के चित्र पर माल्यार्पण किया गया। एएमसी आहोर मुक्ति छाया ग्रुप द्वारा गुरुदेव के 36 गुणों की झांकी प्रस्तुत की गई। 

इस मौके पर मुनिश्री के मंगलाचरण से गुणानुवाद सभा का शुभारंभ हुआ। मुनिश्री वैभवरत्नविजयजी ने आचार्यश्री राजेन्द्रसूरीश्वरजी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए उनके जीवन चरित्र के बारे में बताया। मुनिश्री ने कहा कि गुरु राजेन्द्रसूरी संयम, साधना, तप, आराधना के संगम थे। राजेन्द्रसूरी ने ज्ञान की अपूर्व साधना करते हुए 63 वर्ष की उम्र में 41 लाख श्लोक वाले अभिधान राजेन्द्र कोष का निर्माण कर जिनशासन पर बहुत बड़ा उपकार किया है। गुरुदेव के पास शरीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक क्षमता थी, जो कि उन्हें अन्य संतों से अलग बनाती थी। उनका जन्म विश्व कल्याण के लिए, साधना जगत हित के लिए और देवलोकगमन सिद्ध भगवानों की पराकाष्ठा की अनुभूति के लिए हुआ। 

मुनिश्री ने उपस्थित जनों से कहा कि हमारे जीवन में गुरुदेव राजेन्द्रसूरी के अपार उपकार है। आज हम उनके गुणगान के लिए एकत्रित हुए है। हमें अपने साधना व आत्मा के उत्थान के लिए गुरु भक्ति करनी चाहिए। 

मुनिश्री ने कहा कि दो वर्ष बाद गुरुदेव की 200वीं जयंती आ रही है, उसे हमें यादगार बनाना है। हमें गुरुदेव के बताए मार्ग पर चलते हुए अपनी आत्मा का कल्याण करते हुए ज्ञान की आराधना व तप की साधना व शासन की आराधना करना चाहिए। आत्मोद्धार के लिए देव-गुरु-धर्म पर श्रद्धा होनी जरूरी है।

इस मौके पर संघ की ओर से दीक्षार्थी अर्पितकुमार प्रवीणकुमार शाह का सम्मान किया गया। अध्यक्ष धीरजकुमार भंडारी ने स्वागत किया। मंत्री मांगीलाल वेदमुथा ने कार्यक्रम की जानकारी दी। ट्रस्टी नेमीचन्द वेदमुथा ने संचालन किया। इस मौके पर तेजराज कुहाड़, तेजराज नागौरी, शांतिलाल गांधीमुथा, तिलोक भंडारी, मेघराज भंसाली, मांगीलाल दुर्गाणी, बाबूलाल सवाणी, चिकपेट संघ के अध्यक्ष गौतम सोलंकी आदि गुरु भक्त उपस्थित थे।

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