उच्च न्यायालय ने धार्मिक अनुष्ठानों के सीधे प्रसारण की शास्त्रों में अनुमति न होने की दलील खारिज की

उच्च न्यायालय ने धार्मिक अनुष्ठानों के सीधे प्रसारण की शास्त्रों में अनुमति न होने की दलील खारिज की

उच्च न्यायालय ने धार्मिक अनुष्ठानों के सीधे प्रसारण की शास्त्रों में अनुमति न होने की दलील खारिज की

प्रतीकात्मक चित्र। फोटो स्रोत: PixaBay

नैनीताल/भाषा। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की यह दलील मानने से इनकार कर दिया कि चारधाम के अनुष्ठानों का सीधा प्रसारण करने की अनुमति शास्त्रों में नहीं दी गई है।

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इस दलील को मानने से इनकार करते हुए मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की पीठ ने कहा कि अगर देवस्थानम बोर्ड इस आधार पर अनुष्ठानों के सीधे प्रसारण की अनुमति नहीं देने का फैसला करता है तो उसे इस दलील के समर्थन में शास्त्रों से एक पंक्ति उद्घृत करनी होगी।

सरकार ने बुधवार को महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर द्वारा दाखिल हलफनामे में यह दलील दी। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उन्होंने भी शास्त्र पढ़े हैं और कहीं पर भी इस तरह की कोई पंक्ति नहीं दिखी।

बहरहाल उच्च न्यायालय ने चारधाम यात्रा के संबंध में कोई भी आदेश पारित करने से इनकार कर दिया क्योंकि यह मामला उच्चतम न्यायालय में लंबित है।

अदालत ने यह टिप्पणी महाधिवक्ता की इस दलील पर की कि अदालत के पूर्व के आदेश का अनुपालन किया गया और चार धाम यात्रा पर रोक लगाई गई। उन्होंने यह भी कहा कि पूजा के सजीव प्रसारण के लिए चारधाम बोर्ड को एक प्रस्ताव भी भेजा गया है लेकिन राज्य का मुख्यमंत्री बदलने के कारण बोर्ड की बैठक नहीं हो सकी।

सरकार ने यह भी दोहराया कि लोग सीधे प्रसारण के खिलाफ हैं क्योंकि शास्त्रों में इसकी अनुमति नहीं है। मुख्य न्यायाधीश ने पूछा, ‘एक तरफ आप कह रहे हैं कि इस पर फैसला लिया जाएगा तो दूसरी तरफ आप कहते हैं कि शास्त्रों में इसकी अनुमति नहीं है। मैंने भी शास्त्र पढ़े हैं, मुझे बताइये कि किस श्लोक में यह पाबंदी लगी है?’

महाकाव्य महाभारत का उदाहरण देते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा, अगर संजय धृतराष्ट्र को युद्ध का सजीव चित्रण कर सकता था तो राज्य सरकार चार धाम के अनुष्ठानों का सीधा प्रसारण क्यों नहीं कर सकती?

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