मेजर सोमनाथ शर्मा: जिन्होंने जान कुर्बान कर महफूज रखा कश्मीर
मेजर सोमनाथ शर्मा: जिन्होंने जान कुर्बान कर महफूज रखा कश्मीर
नई दिल्ली/दक्षिण भारत। पाकिस्तान के फौजी हुक्मरान जानते हैं कि उनका मुल्क नफरत की बुनियाद पर टिका है। इसलिए वे भारत के खिलाफ अपने नागरिकों के मन में जहर भरते रहते हैं। जम्मू-कश्मीर को हथियाने के लिए वे कई बार नापाक षड्यंत्र रच चुके हैं, लेकिन हर बार उनका दांव नाकाम रहा। बंटवारे से पहले ही जिन्ना ने कश्मीर पर कब्जा करने के लिए साजिशों का सहारा लेना शुरू कर दिया था।
जब पाकिस्तान अस्तित्व में आ गया तो जिन्ना के इशारे पर बड़ी तादाद में पाकिस्तानी फौजी और कबायली कश्मीर में घुसपैठ करने लगे। भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए अपने सैनिक भेजे जिन्होंने दुश्मन का बेहद बहादुरी से मुकाबला किया। इसी लड़ाई में शहीद हुए थे भारत मां के सपूत मेजर सोमनाथ शर्मा। उन्होंने पाकिस्तानी फौज को मुंहतोड़ जवाब दिया और देश के लिए युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए।सोमनाथ शर्मा का जन्म 31 जनवरी, 1923 को ग्राम डाढ (कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश) में हुआ था। उनके पिता, चाचा और भाई सहित कई परिजनों ने सेना में भर्ती होकर देश की सेवा की है। सोमनाथ भगवद्गीता की शिक्षाओं से बहुत प्रभावित थे। उनके दादा उन्हें रामायण और महाभारत के प्रेरक प्रसंग सुनाया करते थे।
सोमनाथ की शुरुआती शिक्षा नैनीताल में हुई थी। वे 22 फरवरी, 1942 को कुमाऊं रेजिमेंट की चौथी बटालियन में सेकंड लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति हुए। वे उसी साल बतौर डिप्टी असिस्टेंट क्वार्टर मास्टर जनरल बनाकर बर्मा भेजे गए, जहां बहुत साहस का परिचय दिया। आजादी के बाद जम्मू-कश्मीर रियासत के राजा हरिसिंह ने भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। तब तक पाकिस्तान की ओर से सैकड़ों की तादाद में फौजी घुसपैठ कर चुके थे।
ऐसे में मेजर सोमनाथ शर्मा ने मोर्चा संभाला। उनकी कंपनी को बडगाम हवाईअड्डे की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई। उनके पास सिर्फ 100 सैनिक थे। वहीं, दूसरी ओर 700 से ज्यादा पाकिस्तानी फौजी हमला कर रहे थे। इस स्थिति में उन्होंने अपने जवानों का हौसला बरकरार रखा और बहुत बहादुरी से लड़े।
उन्होंने उस लड़ाई के बारे में कहा था, ‘दुश्मन हमसे केवल पचास गज की दूरी पर है। हमारी गिनती बहुत कम रह गई है। हम भयंकर गोलीबारी का सामना कर रहे हैं। फिर भी मैं एक इंच पीछे नहीं हटूंगा और अपनी आखिरी गोली और आखिरी सैनिक तक डटा रहूंगा।’ मेजर सोमनाथ की टुकड़ी ने दुश्मन को भारी नुकसान पहुंचाया और उसके कई फौजी धराशायी हो गए। मेजर सोमनाथ और उनके साथियों पर तीन ओर से गोलीबारी हो रही थी।
सोमनाथ के बाएं हाथ में चोट भी लगी थी, लेकिन वे दुश्मन को भरपूर जवाब दे रहे थे। साथ ही अपने सैनिकों तक युद्ध सामग्री पहुंचा रहे थे। 3 नवंबर, 1947 को दुश्मन से मुकाबला करते समय एक हथगोला मेजर सोमनाथ के करीब गिरा और वे शहीद हो गए। उन्होंने आखिरी सांस तक अपने जवानों को आदेश दिया कि ‘मेरी चिंता न करो, हवाईअड्डे की रक्षा करो। दुश्मन अपने कदम न बढ़ा पाए।’ मेजर सोमनाथ शर्मा को देश के प्रथम परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। उनके शौर्य की बदौलत कश्मीर से पाकिस्तान के पांव उखड़ गए और वहां शान से तिरंगा लहरा रहा है। हमेशा लहराता रहेगा।