संयम और सूझबूझ जरूरी

एक सैनिक में शक्ति और साहस के साथ संयम और सूझबूझ का होना बहुत जरूरी है

संयम और सूझबूझ जरूरी

प्राय: यह देखने में आता है कि कार्य स्थल पर या सफर के दौरान कभी-कभार कुछ खास मुद्दों पर बातचीत 'बहस' में बदल जाती है

रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) के एक कांस्टेबल द्वारा महाराष्ट्र के पालघर स्टेशन के पास चलती ट्रेन में गोलियां चलाकर वरिष्ठ सहकर्मी और तीन अन्य यात्रियों को मौत के घाट उतार दिए जाने की घटना अत्यंत भयावह है। वर्दी और बंदूक अपने साथ बहुत बड़ी जिम्मेदारी लेकर आती हैं। एक सैनिक में शक्ति और साहस के साथ संयम और सूझबूझ का होना बहुत जरूरी है। 

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उक्त कांस्टेबल का कथित वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। उसमें यात्रियों के चेहरों पर घबराहट साफ नजर आ रही है, जो स्वाभाविक है। अगर 'रक्षक' ही ऐसा कृत्य कर बैठे तो बचाव की उम्मीद किससे की जाए? घटना के बाद रेलवे की ओर से त्वरित कार्रवाई की गई, जिससे इस बात को लेकर विश्वास मजबूत होता है कि पीड़ितों को न्याय मिलेगा। 

आरोपी कांस्टेबल ने भागने की कोशिश की थी, लेकिन उसे पकड़ लिया गया। उसे सात अगस्त तक राजकीय रेलवे पुलिस की हिरासत में भी भेज दिया गया है। रेलवे बोर्ड ने घटना की जांच के लिए पांच सदस्यीय समिति का गठन कर दिया है। इस उच्च स्तरीय समिति की जांच के बाद ही गोलीकांड की असलियत सामने आएगी। इस बीच सोशल मीडिया पर कई तरह के दावे किए जा रहे हैं। कई लोग सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने के लिए भड़काऊ पोस्ट शेयर कर रहे हैं। 

जब मामला जांच समिति के हवाले कर दिया गया है तो सबको उसके निष्कर्ष की प्रतीक्षा करनी चाहिए। बड़ा सवाल है- कांस्टेबल अचानक उग्र क्यों हो गया? ऐसी क्या वजह थी कि उसने अपने वरिष्ठ सहकर्मी और तीन अन्य यात्रियों पर गोलियां बरसा दीं? विभिन्न रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि घटना एक विषय पर बहस से शुरू हुई, जिससे माहौल गरम हो गया था।

प्राय: यह देखने में आता है कि कार्य स्थल पर या सफर के दौरान कभी-कभार कुछ खास मुद्दों पर बातचीत 'बहस' में बदल जाती है, जो बाद में बहुत 'तीखी' हो जाती है। ऐसे मुद्दों को चिह्नित कर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन पर वहां किसी भी तरह की चर्चा न हो, सब लोग शांति और सद्भाव बनाए रखें। संभवत: यह रेलवे में इस तरह की पहली घटना है। इसने एक महत्त्वपूर्ण विषय की ओर ध्यान आकर्षित किया है। इससे पहले सुरक्षा बलों में कुछ घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें किसी सैनिक ने अपने साथी सैनिक या वरिष्ठ अधिकारी को निशाना बनाया। 

प्राय: इन मामलों में आपसी कहा-सुनी, पारिवारिक विवाद या डिप्रेशन जैसे कारण सामने आते हैं। आरोपी आरपीएफ कांस्टेबल भी डिप्रेशन से ग्रस्त बताया जा रहा है। आज कामकाजी लोगों में डिप्रेशन एक बड़ा मर्ज बनता जा रहा है। कुछ दशक पहले तक इसे 'बड़े लोगों' और 'महानगरों' की समस्या समझा जाता था, लेकिन यह सच नहीं है। मानसिक समस्याएं किसी भी वर्ग और स्थान से संबंधित लोगों को हो सकती हैं। जिस तरह शारीरिक रोग होते हैं, उसी तरह मानसिक रोग भी हो सकते हैं। इन्हें किसी वर्ग या स्थान से जोड़कर देखने के बजाय कारण और समाधान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। 

आज नौकरी के लिए अत्यधिक प्रतिस्पर्धा, चुनौतीपूर्ण माहौल, पारिवारिक समस्याएं, सोशल मीडिया के प्रभाव ... आदि से डिप्रेशन जैसी समस्याएं हो सकती हैं। कई मामलों में ऐसा होता है कि लोग किसी से अपने मन की बात साझा नहीं कर पाते। उन्हें झिझक होती है। उसके बाद जब वे एक खास तरह के माहौल में जाते हैं और कोई बात ग़लत लगती है तो वह चिंगारी का काम कर जाती है। 

टीवी चैनलों पर होने वाली विभिन्न प्रकार की बहसों में एक-दूसरे के लिए अशालीन शब्दों के प्रयोग के अलावा मारपीट जैसी घटनाएं हो चुकी हैं। इन्हें गंभीरता से लेने की जरूरत है। साथ ही उन सामाजिक, मनोवैज्ञानिक उपायों पर ध्यान देना चाहिए, जिनके जरिए ऐसी अप्रिय घटनाओं को होने से टाला जाए।

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