चीनी सामान से कब मोह होगा कम?

इस बात का संकल्प लें कि हम जितना भी और जैसे भी हो सकेगा, देश की रक्षा के लिए कुछ न कुछ अवश्य ही करेंगे

चीनी सामान से कब मोह होगा कम?

Photo: PixaBay

.. सुरेश हिन्दुस्थानी ..
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भारतीय बाजारों में जिस प्रकार से चीनी वस्तुओं का आधिपत्य दिखाई दे रहा है, उससे यही लगता है कि देश में एक और भारत छोड़ो आंदोलन की महती आवश्यकता है| यह बात सही है कि आज देश में अंग्रेज नहीं हैं, लेकिन भारत छोड़ो आंदोलन के समय जिस देश भाव का प्रकटीकरण किया गया, आज भी वैसे ही देश भाव के प्रकटीकरण की आवश्यकता दिखाई देने लगी है| हम सभी चीनी वस्तुओं का त्याग करके चीन को सबक सिखा सकते हैं| यह समय की मांग भी है और देश को सुरक्षित करने का तरीका भी है| हम देश की सीमा पर जाकर राष्ट्र की सुरक्षा नहीं कर सकते तो चीनी वस्तुओं का बहिष्कार करके सैनिकों का उत्साह वर्धन तो कर ही सकते हैं| तो क्यों न हम आज ही इस बात का संकल्प लें कि हम जितना भी और जैसे भी हो सकेगा, देश की रक्षा के लिए कुछ न कुछ अवश्य ही करेंगे|

भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए जिन महापुरुषों ने जिस स्वतंत्र भारत की कल्पना की थी, वर्तमान में वह कल्पना धूमिल होती दिखाई दे रही है| महात्मा गांधी ने सीधे तौर पर स्वदेशी वस्तुओं के प्रति देश भाव के प्रकटीकरण करने की बात कही थी, पर क्या यह भाव हमारे विचारों में दिखाई देता है| कदाचित नहीं| वर्तमान में जो राजनीतिक दल महात्मा गांधी के नाम के सहारे जिन्दा हैं| उन राजनीतिक दलों के अंदर देश भाव का अंश दिखाई नहीं देता| देश में जितने भी महापुरुष हुए हैं, सभी ने देश भाव को जन जन में प्रवाहित किया| इसी के कारण ही अंग्रेज और अंग्रेजी मानसिकता के लोगों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर किया गया| सभी महापुरुषों का एक ही ध्येय था कि कैसे भी हो देश में स्वदेशी भावना का विस्तार होना चाहिए, फिर चाहे हमारे दैनिक जीवन में उपयोग आने वाली वस्तुओं का मामला हो या फिर शिक्षा पद्धति का| सभी में स्वदेशी का भाव प्रकट होना चाहिए| वास्तव में देश धर्म क्या होता है, इसे जानना है तो हमें किसी सैनिक से पूछना चाहिए| वह यही जवाब देगा कि देश धर्म का मूल्य प्राण देकर भी नहीं चुकाया जा सकता| इसके लिए सुख सुविधाओं का त्याग करना पड़ेगा| सुविधाओं का त्याग करने वाला समाज ही अपनी और अपने समाज की रक्षा कर सकता है|

आज जाने -अनजाने हमारे घरों में स्वदेशी की जगह विदेशी वस्तुओं ने ले ली है| चीनी वस्तुएं हमारे घरों की शोभा बन रही हैं| जरा सोचिए कि जो देश हमारे देश पर आक्रमण करने की भूमिका में दिखाई दे रहा है, उसी देश का सामान हम अपने घरों में लाकर उसको महत्व दे रहे हैं| हम अपने घर में चीनी सामान को देखकर खुश हो रहे हैं और चीन हमसे ही कमाए गए पैसे के दम पर हमारे देश को आंख दिखा रहा है| वास्तव में देखा जाए तो वर्तमान में हम मतिभ्रम का शिकार हो गए हैं| विदेशी सामान की अच्छाई के बारे में कोई झूठा भी प्रचार कर दे तो हम उस पर विश्वास कर लेते हैं, लेकिन हमें अपने ऊपर विश्वास नहीं|

यह बात सत्य है कि भारत एक ऐसा देश है जहां विश्व को भी शिक्षा दी जा सकती है, लेकिन इन सबके लिए हमें अपने अंदर विश्वास जगाना होगा, तभी हम देश का भला कर सकते हैं| जनता अगर एक बार संकल्प करले तो वह दिन दूर नहीं, जब हम चीन को पछाड़ सकते हैं| आज चीन द्वारा निर्मित वस्तुओं का पूरी तरह से त्याग करने की आवश्यकता है| बहुत से लोग यह तर्क भी कर सकते हैं कि सरकार चीन की वस्तुओं पर रोक क्यों नहीं लगा देती? इसका एक ही उत्तर है, जब जनता विरोध करेगी तो सरकार को भी बात माननी होगी|

हमें पहले इस बात का अध्ययन करना होगा कि हमारा देश गुलामी की जंजीरों में कैसे जकड़ा| इसका सीधा सा जवाब यही होगा कि हमारे देश में अंग्रेजों द्वारा संचालित की जाने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी के उत्पादों को खरीदना प्रारंभ कर दिया| उससे स्वावलंबी भारत आर्थिक तौर से परावलंबी होता गया और देश की आर्थिक प्रगति पूरी तरह से अंग्रेजों पर निर्भर हो गई| इसके परिणामस्वरुप हम आर्थिक रूप से परतंत्र हो चुके थे| अब जरा सोचिए कि जब एक विदेशी कंपनी ने भारत को गुलाम बना दिया था, तब आज तो देश में हजारों विदेशी कंपनियां व्यापार कर रही हैं| देश किस दिशा की ओर जा रहा है| हम जानते हैं कि अंग्रेजों की परतंत्रता की जकड़न से मुक्त होने के लिए हमारे देश के महापुरूषों ने १९४२ में भारत छोड़ो आंदोलन का शंखनाद किया| इस आंदोलन के मूल में अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करना था, इसके साथ ही अंग्रेजियत को भी भारत से भगाने की संकल्पना भी इसमें समाहित थी| इस आंदोलन में जहां विदेशियों के प्रति देश के जनमानस में नकारात्मक भाव जाग्रत हुआ, वहीं स्वदेशी यानी देश भक्ति की भावना का प्रकटीकरण हुआ| इस आंदोलन के सफल होने के बाद आज यह अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है कि देश के नागरिकों में देश भाव कूट कूट कर भरा हुआ है, लेकिन आज उसे प्रकट करने की महती आवश्यकता है| ऐसे ही आंदोलनों के चलते देश भाव को प्रकट करने के लिए विदेशी वस्तुओं की होली जलाई जाती थी| इसके पीछे एक मात्र उद्देश्य यही था कि भारतीय जन स्वदेशी भाव को हमेशा जागृत रखें और अपने देश में निर्मित सामान का ही उपयोेग करें| आज के वातावरण का अध्ययन करने से पता चलता है कि आज सैंकड़ों बहुराष्ट्रीय कंपनियां व्यापार के माध्यम से हमारे देश को लूट रहीं हैं| 

हम अनजाने में विदेशी वस्तुओं को खरीदकर अपने आपको आर्थिक गुलामी की ओर धकेल रहे हैं| इससे ऐसा लगता है कि देश में एक और भारत छोड़ो आंदोलन की आवश्यकता है| जैसा कि हम जानते हैं कि वर्तमान में भारतीय बाजार चीनी वस्तुओं से भरे पड़े हैं| उसे भारतीय लोग खरीद भी रहे हैं, लेकिन क्या हम जानते हैं कि इन वस्तुओं से प्राप्त आय का बहुत बड़ा भाग चीन को आर्थिक संपन्नता प्रदान कर रहा है| भारत के पैसे से जहां चीन आर्थिक समृद्धि प्राप्त कर रहा है, वहीं भारत कमजोर होता जा रहा है| यह सारा काम भारत की ऐसी जनता कर रही है, जो अपने आप को प्रबुद्ध कहती है| वर्तमान में हम सभी का एक ही उद्देश्य होना चाहिए, चीनी वस्तुएं भारत छोड़ो| इसके लिए जिस प्रकार से जनांदोलन खड़ा करके अंग्रेजों को देश से बाहर किया, उसी प्रकार से देशवासियों को चाहिए कि चीनी वस्तुओं का बहिष्कार कर उन्हें देश से बाहर करें|

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