बड़े धोखे हैं इस 'राह' में

सोशल मीडिया की राह बहुत रपटीली हो गई है

बड़े धोखे हैं इस 'राह' में

बढ़ते जा रहे हैं हनीट्रैप के मामले

उत्तर प्रदेश एटीएस ने हजरतपुर आयुध निर्माण इकाई में कार्यरत एक चार्जमैन को जिस तरह हनीट्रैप मामले में गिरफ्तार किया है, उससे उन लोगों को सबक लेना चाहिए, जो सोशल मीडिया पर बड़ी आसानी से किसी के भी 'दोस्त' बन जाते हैं। उक्त चार्जमैन कोई नौसिखिया नहीं था। वह साल 2009 से आयुध निर्माण इकाई में कार्यरत था। इस अवधि में देश की विभिन्न एजेंसियों ने पाकिस्तान द्वारा हनीट्रैप के कई मामले पकड़े थे। क्या इस शख्स को यह नहीं मालूम था कि देश की सुरक्षा से जुड़े स्थान दुश्मन के निशाने पर हैं? पिछले एक दशक में आईएसआई ने भारत के वैज्ञानिकों से लेकर सेना के कई अधिकारियों और जवानों तक को अपने जाल में फंसाने की कोशिशें की हैं। जो लोग सतर्क थे, वे उसके झांसे में नहीं आए, लेकिन कुछ लोग बड़ी आसानी से इस दलदल में धंसते गए। उन्होंने दो मीठे बोल सुनकर आईएसआई की 'हसीनाओं' के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। क्या ऐसे अधिकारी-कर्मचारी इतने मासूम होते हैं कि महज़ एक कॉल पर देश के राज़ दुश्मन को सौंप देते हैं? क्या इन्हें गोपनीयता की सुरक्षा के लिए उचित प्रशिक्षण नहीं दिया गया था? अगर दिया गया था तो ऐसा कैसे संभव है कि ये सोशल मीडिया पर कुछ शब्दों की बातचीत में ही अपना दिल खोलकर रख देते हैं? ऐसे मामलों का बार-बार सामने आना यह दर्शाता है कि हमारे तंत्र में कुछ कमजोर कड़ियां जरूर हैं, जिन्हें दुश्मन एजेंसियां अपने मंसूबे पूरे करने के लिए इस्तेमाल कर रही हैं। इन कड़ियों का दुश्मन पता लगाए, ललचाए, लुभाए और अपने काम में लगाए, इससे पहले ही ऐसी व्यवस्था की जाए कि भारतीय एजेंसियां इन्हें चिह्नित करें और खतरे से सावधान कर दें।

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अगर पिछले पांच वर्षों में सामने आए ऐसे मामलों का विश्लेषण करें तो इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि जो लोग 'शिकार' हुए, उनमें से ज्यादातर सोशल मीडिया पर सक्रिय थे। ताज्जुब की बात है कि भारतीय एजेंसियां कई बार यह नसीहत दे चुकी हैं कि सोशल मीडिया पर अनजान लोगों के साथ न जुड़ें, कोई भी संवेदनशील जानकारी साझा न करें, इसके बावजूद राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित स्थानों पर तैनात कुछ लोग दरियादिली दिखाते हुए जानकारी साझा कर रहे हैं! ऐसे स्थानों पर कार्यरत अधिकारियों-कर्मचारियों को सोशल मीडिया पर होना ही नहीं चाहिए। उनके परिजन को भी खास सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि जो तस्वीरें और जानकारियां वे साझा करेंगे, दुश्मन एजेंसियां उनका ग़लत इस्तेमाल कर सकती हैं। इससे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हो सकता है। अब तक जो लोग हनीट्रैप के शिकार हुए, उनके पास या तो फ्रेंड रिक्वेस्ट आई या कॉल के जरिए संपर्क किया गया। इसके बाद उन्हें धीरे-धीरे शीशे में उतारा गया। कई बार मैसेज, ऑडियो कॉल, वीडियो कॉल करना, संवेदनशील जानकारी मांगना ... क्या ये बातें किसी विवेकशील मनुष्य के दिमाग में खतरे की घंटी बजाने के लिए काफी नहीं हैं? ऐसी क्या मजबूरी होती है कि वह व्यक्ति सख्ती से मना नहीं कर पाता? आईएसआई ने जिन महिलाओं को इस काम में लगा रखा है, उन्हें मैदान में उतारने से पहले काफी प्रशिक्षित किया जाता है। वे हिंदू रीति-रिवाज, पूजन पद्धति, पहनावे, भाषा और कई तरह की बातों का ध्यान रखती हैं, ताकि 'शिकार' को जरा भी शक न हो। जो एजेंट वीडियो कॉल करती है, उसके लिए सुंदरता अनिवार्य शर्त होती है। अगर किसी अधिकारी, कर्मचारी या आम नागरिक के पास ऐसा संदेश आता है तो उसे सबसे पहले खुद से यह सवाल पूछना चाहिए- 'मुझे यह क्यों भेजा गया है?' जब दोबारा संपर्क किया जाए तो पूछना चाहिए- 'मैं ही क्यों ... मुझमें ऐसा क्या है ... किसी अपरिचित महिला के पास इतना समय क्यों है कि वह बार-बार मुझसे संपर्क करे और मेरे काम में रुचि ले?' अक्लमंद इन्सान उसी समय सतर्क हो जाता है। इसके उलट, जो मधुर कल्पनाओं के वशीभूत होकर 'दोस्ती' बढ़ाता है, वह नुकसान ही उठाता है। अब सोशल मीडिया की राह बहुत रपटीली हो गई है। संभलकर चलें, बड़े धोखे हैं इस राह में!

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