सामाजिक क्रांतिकारी बदलाव से ही नई पीढ़ी का भविष्य होगा उज्ज्वल: आचार्यश्री विमलसागरसूरी
श्रीरामपुरम में तीनों जैन संप्रदायों की हुई संयुक्त बैठक

'भाैतिक उपलब्धियाें से हमारी सफलता सिद्ध नहीं हाेगी'
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर में बुधवार काे श्रीरामपुरम के श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ और वर्धमान स्थानकवासी संघ के संयुक्त तत्वावधान में आचार्यश्री विमलसागरसूरीजी की निश्रा में एकता सभा का आयाेजन हुआ।
आचार्यश्री विमलसागरसूरीजी ने बड़ी संख्या में उपस्थित मंदिरमार्गी, स्थानकवासी और तेरापंथी समाज के सदस्याें काे मार्गदर्शन देते हुए कहा कि पारसी, सिख और यहूदी तीनाें समाज संख्या की नजर से बहुत छाेटे समाज हैं, लेकिन इनकी किशाेर व युवा पीढ़ी इनके समाज व धर्म की मुख्य धारा से जुड़ी हुई है। ये लाेग धर्म व समाज के मुद्दे पर काेई समझाैता नहीं करते। इनके बालक, किशाेर और युवा इनके धर्म के नीति-नियमानुसार प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रहे हैं, जबकि अपनी नई पीढ़ी साेशल मीडिया पर रील बनाने और माैज-मस्ती में व्यस्त है।उन्होंने कहा कि अधिकांश काे इस बात की चिंता ही नहीं है कि उनका भविष्य कैसे सुरक्षित हाेगा? इसलिए समाज की साेच और व्यवस्थाओं में गहरे परिवर्तन की सख्त आवश्यकता है। बड़े-बुजुर्ग और अभिभावक बदलेंगे तथा सामाजिक व्यवस्थाओं में क्रांतिकारी बदलाव लाए जाएंगे, तभी समाज व उसकी नई पीढ़ी का भविष्य उज्ज्वल हाे सकेगा।
आचार्यश्री ने कहा कि पारिवारिक, सामाजिक व धार्मिक बड़े उत्सव हमारा गाैरव नहीं बढ़ा रहे हैं, बल्कि नई पीढ़ी काे भ्रमित कर रहे हैं। नई पीढ़ी काे लगता है कि उत्सव ही जिंदगी है और पैसा आसानी से कमाया व उड़ाया जा सकता है। नई पीढ़ी अपने चाराें ओर राेज यही देखती है। टेलीविजन, सिनेमा, खेल और विज्ञापनाें में भी यही दिखाई देता है। इससे उसकी मानसिकता ज्ञान, परिश्रम और संघर्ष की नहीं, माैज-मस्ती, अभिमान और ईर्ष्या की बनती जा रही है। यह समाज और धर्म के भविष्य के दृष्टिकाेण से अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और खतरनाक है।
आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि भाैतिक उपलब्धियाें से हमारी सफलता सिद्ध नहीं हाेगी। अपनी नई पीढ़ी काे धर्म से जाेड़कर ही हम सफल हाेने का दम भर सकते हैं। अपने किशाेर व युवावर्ग काे धर्म से जाेड़ना आधुनिक युग की सबसे बड़ी चुनाैती है। बदलते युगीन परिवेश में समाज इस कार्य में अब तक सफल नहीं हाे पाया है। अपने भविष्य काे सुरक्षित और उज्ज्वल बनाने के लिए उसे सावधानीपूर्वक कटिबद्ध बनना हाेगा। इसके लिए दीर्घकालीन समुचित याेजना गढ़ने की आवश्यकता है। धन, सुख-सुविधाएं और डिग्रियां हमारी सफलता का मापदंड नहीं हाे सकते। अगर हम अपने किशाेर व युवावर्ग काे धर्म और समाज की मुख्य धारा से जाेड़ने में कामयाब नहीं हुए ताे ये भाैतिक उपलब्धियां निरर्थक सिद्ध हाे जाएंगी।
आयाेजित सभा में जीताे और जैन युवा संगठन के पदाधिकारियाें ने आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी और गणिश्री पद्मविमलसागरजी से आग्रह किया कि वे 9 अप्रैल काे विश्व नवकार महामंत्र दिवस के उपलक्ष्य में और 10 अप्रैल काे भगवान महावीर जन्म कल्याणक महाेत्सव के अवसर पर अपना सान्निध्य प्रदान करें। जैनाचार्य ने दाेनाें आयाेजनाें में निश्रा देने की स्वीकृति प्रदान की।
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