लोकसभा अध्यक्ष से कांग्रेस सदस्यों के निलंबन पर पुनर्विचार की मांग उठी

लोकसभा अध्यक्ष से कांग्रेस सदस्यों के निलंबन पर पुनर्विचार की मांग उठी

संसद भवन

सरकार बोली- अध्यक्ष का निर्णय मान्य होगा

नई दिल्ली/भाषा। लोकसभा में विपक्ष के सदस्यों ने शुक्रवार को सदन के अनादर के मामले में कांग्रेस के सात सदस्यों को मौजूदा सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबन के निर्णय पर अध्यक्ष ओम बिरला से पुनर्विचार करने का अनुरोध किया, वहीं सरकार ने कहा कि इस मामले में लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय मान्य होगा।

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भाजपा के एक सदस्य ने मांग की कि गुरुवार को सदन में घटे घटनाक्रम के मामले में निलंबित सातों सदस्यों को पूरे पांच साल के लिए निलंबित किया जाना चाहिए। कांग्रेस के सात लोकसभा सदस्यों को बृहस्पतिवार को अध्यक्षीय पीठ से कुछ कागज लेने और फाड़कर उछालने के मामले में सदन का अपमान करने और ‘घोर कदाचार’ के लिए मौजूदा संसद सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित कर दिया गया।

कांग्रेस के इन सदस्यों में गौरव गोगोई, टीएन प्रतापन, डीन कुरियाकोस, राजमोहन उन्नीथन, बैनी बहनान, मणिकम टेगोर और गुरजीत सिंह औजला शामिल हैं। सदन में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने शुक्रवार को इस फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह करते हुए कहा कि पार्टी के सात सदस्यों को एक साथ शेष सत्र के लिए निलंबित किये जाने का कोई आधार नजर नहीं आता।

उन्होंने कहा कि प्रदर्शन के दौरान अन्य विपक्षी सदस्य भी थे लेकिन कारण पता नहीं है कि किस आधार पर सातों सदस्यों को निलंबित कर दिया गया। यह छोटी बात नहीं है। चौधरी ने कहा, ‘जेबकटुवा को फांसी के तख्त पर नहीं चढ़ाया जा सकता।’ उन्होंने कहा कि जब भाजपा विपक्ष में थी तो पूरा का पूरा सत्र हंगामे की भेंट चढ़ जाता था।

चौधरी ने कहा कि कल जब सदन में कोरोना वायरस पर सुझाव देने के दौरान गांधी परिवार पर निशाना साधा गया तो सदस्य आंदोलित हो गए। उन्होंने कहा कि आसन नियमों के तहत इस निलंबन को समाप्त कर सकता है और अध्यक्ष को इस बारे में अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए।

संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि सरकार की तरफ से यह स्पष्ट है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं लोकसभा के उपनेता तथा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का भी मानना है कि इस संबंध में लोकसभा अध्यक्ष जो निर्णय लेंगे, मान्य होगा।

उन्होंने कहा, ‘किसी विपक्षी सदस्य को बाहर करने की कार्रवाई की सरकार की कोई इच्छा नहीं है।’ जोशी ने कहा, ‘कल जो हुआ, वह आजादी के 70 साल के इतिहास में कभी नहीं हुआ।’ जोशी ने चौधरी के बयान पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्होंने अपने सदस्यों को ‘जेबकटुवा’ कहा।

उन्होंने कहा, ‘हमें सदस्यों की तुलना जेबकतरों से करना भी उचित नहीं लगता।’ जोशी ने कहा कि संप्रग सरकार के समय भाजपा के 45 सदस्यों को चालू सत्र की पूरी शेष अवधि के लिए निलंबित किया गया था। 2007 से 2010 के बीच कांग्रेस ने हंगामे के बीच 18 विधेयक पारित कराए थे। गौरतलब है कि कल रालोपा सांसद हनुमान बेनीवाल की कोरोना वायरस और गांधी परिवार को लेकर की गई एक विवादास्पद टिप्पणी से कांग्रेस के सदस्य उग्र हो गए थे और हंगामा तेज हो गया।

इस संबंध में जोशी ने कहा कि कोरोना वायरस पर सुझाव के दौरान की गई टिप्पणी गलत थी और उसे कार्यवाही से निकाला जा चुका है। उन्होंने कहा कि विपक्ष ने भी प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के खिलाफ बहुत कुछ बोला है तो उन पर कोई कार्रवाई कहां हुई है। इसके बाद पीठासीन सभापति किरीट सोलंकी ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की अगुवाई में एक समिति के गठन की घोषणा की जो सदन में दो से पांच मार्च के बीच के घटनाक्रम का अध्ययन करेगी।

इसके बाद सोलंकी ने आवश्यक कागज सदन के पटल पर रखवाने शुरू किए। कांग्रेस के सदस्य आसन के पास आकर दिल्ली हिंसा पर चर्चा की मांग को लेकर नारेबाजी करने लगे। हंगामे के बीच ही सदन ने खनिज विधि संशोधन विधेयक 2020 को मंजूरी दी।

इससे पहले तृणमूल कांग्रेस के सुदीप बंदोपाध्याय ने कांग्रेस सदस्यों के निलंबन पर पुनर्विचार किए जाने की मांग करते हुए कहा कि पहले भी इस तरह की घटनाएं सदन में घटती रही हैं लेकिन इस तरह की कार्रवाई नहीं हुई। उन्होंने कहा कि पूरे शेष सत्र के लिए निलंबित किया जाना ठीक नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘ऐसा लगता है कि सरकार तो लोकसभा अध्यक्ष पर दबाव नहीं बना रही।’ द्रमुक के दयानिधि मारन और राकांपा की सुप्रिया सुले ने भी अध्यक्ष से कांग्रेस सदस्यों के निलंबन के फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध किया। सुले ने कहा कि अगर सरकार दिल्ली हिंसा पर चर्चा के लिए तैयार हो जाती तो इस तरह का गतिरोध ही नहीं बनता और ऐसी स्थिति नहीं बनती जो नहीं बननी चाहिए थी।

भाजपा के निशिकांत दुबे ने कहा कि एक संयुक्त समिति बनाई जाए और कांग्रेस के इन सदस्यों को पूरे पांच साल के लिए निलंबित किया जाना चाहिए। जदयू नेता राजीव रंजन ने कहा कि लोकसभा अध्यक्ष को कल के घटनाक्रम पर अभूतपूर्व निर्णय लेने के लिए बाध्य होना पड़ा। उन्होंने कहा कि कल जो हुआ, लोकतंत्र में ऐसी स्थिति नहीं बननी चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘पहले भी विरोध होते रहे हैं। सदस्य आसन के पास आकर प्रदर्शन करते रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए।’ रंजन ने कहा कि निलंबित सदस्यों का निलंबन वापस लेना है या नहीं लेना, इस बारे में तो अध्यक्ष ही निर्णय लेंगे, लेकिन विपक्ष को भी आसन को आश्वासन देना होगा कि ऐसी गलती भविष्य में नहीं होगी।

उन्होंने कांग्रेस नेता चौधरी की टिप्पणी पर चुटकी लेते हुए कहा कि उन्होंने तो खुद अपने सदस्यों को ‘जेबकटुवा’ कह दिया यानी मान लिया कि उनसे गलती हुई है।

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