राष्ट्रीय सुरक्षा: मतभेदों से ऊपर उठें

घुसपैठिए कई तरीकों से दाखिल होने की कोशिशें करते हैं

राष्ट्रीय सुरक्षा: मतभेदों से ऊपर उठें

भौगोलिक चुनौतियां अपनी जगह बरकरार हैं

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बांग्लादेशी घुसपैठियों का जिक्र करते हुए बीएसएफ के बारे में जो बयान दिया है, वह हकीकत से कोसों दूर है। बीएसएफ के जवानों ने देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए बलिदान दिए हैं। उन्होंने तो अनगिनत बार घुसपैठियों को खदेड़ा है। अगर बीएसएफ की ओर से सख्ती न की जाती तो घुसपैठियों के हौसले बहुत बुलंद होते। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि बीएसएफ की काफी कोशिशों के बावजूद कुछ बांग्लादेशी घुसपैठिए हमारे देश में दाखिल हो जाते हैं। भारत की बांग्लादेश के साथ लगती सीमा भौगोलिक दृष्टि से अत्यंत चुनौतीपूर्ण है। वहां एक जैसा इलाका नहीं है। नदी, घने जंगल और दलदल वाले इलाके में यह संभव नहीं है कि हर कदम पर बीएसएफ अपना जवान खड़ा कर दे। तकनीकी विकास के साथ कुछ नए उपकरण जरूर आ गए हैं, लेकिन भौगोलिक चुनौतियां अपनी जगह बरकरार हैं। बांग्लादेश से आने वाले घुसपैठिए किसी एक रास्ते से नहीं आते। अगर ऐसा होता तो इस समस्या का समाधान बहुत आसानी से हो सकता था। ये घुसपैठिए दबे पांव, रेंगकर और कई तरीकों से दाखिल होने की कोशिशें करते हैं। ये महिलाओं और बच्चों को 'ढाल की तरह' इस्तेमाल करते हैं। जब पकड़े जाते हैं तो खुद को गरीब और जरूरतमंद बताते हैं। हो सकता है कि अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में दिया गया उनका बयान सही हो, लेकिन इस आधार पर किसी को भारत में अवैध ढंग से दाखिल होने की इजाजत नहीं दी जा सकती। पाकिस्तान के साथ लगती सीमा से कोई घुसपैठिया दाखिल होने की कोशिश करे तो पहले उसे चेतावनी दी जाती है। वह फिर भी आगे बढ़ना जारी रखे तो देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए 'उचित कार्रवाई' की जाती है।

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अगर बीएसएफ बांग्लादेश के साथ लगती सीमा पर भी उसी तर्ज पर कार्रवाई करनी शुरू कर दे तो कई नेता भारी हंगामा खड़ा कर देंगे, मानवाधिकारों का मुद्दा उठाएंगे और पूरी कार्रवाई को ही संदेह के दायरे में लाने की कोशिश करेंगे। कोई बांग्लादेशी घुसपैठिया 'इधर आने' की कोशिश करता है तो बीएसएफ को उसकी पकड़-धकड़ करनी चाहिए। अगर किसी कारणवश वह बचकर निकलने में कामयाब हो जाए तो संबंधित राज्य सरकारों को ऐसा तंत्र विकसित करना चाहिए, जिससे वह गिरफ्त में आ जाए। यह कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है। अगर सरकारी मशीनरी सूझबूझ के साथ इच्छाशक्ति रखते हुए काम करे तो घुसपैठियों पर काबू पाया जा सकता है। हाल में ऐसी खबरें सामने आई थीं, जिनमें बताया गया कि घुसपैठियों के पास आधार कार्ड, राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र समेत जरूरी दस्तावेज पाए गए हैं। कोई व्यक्ति इतने दस्तावेज बनवा सकता है तो वह मतदाता सूची में नाम भी जुड़वा सकता है! क्या ये अवैध कृत्य 'स्थानीय मददगारों' के बिना हो सकते हैं? क्या संबंधित राज्य सरकारों की जिम्मेदारी नहीं है कि वे ऐसे लोगों का पता लगाकर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करें? सरकारों को चाहिए कि वे बीएसएफ के साथ समन्वय रखते हुए ऐसा मजबूत तंत्र बनाएं, जिससे घुसपैठियों पर नजर रखने, उन्हें हिरासत में लेने में आसानी हो। जब कोई बांग्लादेशी अपने देश में रहकर यह खबर पढ़ेगा कि भारत में वरिष्ठ नेता ही बीएसएफ की कार्यशैली पर सवाल उठा रहे हैं और कुछ खास इलाकों से घुसपैठ करना तुलनात्मक रूप से आसान है तो उसका मन घुसपैठ करने के लिए क्यों नहीं मचलेगा? होना तो यह चाहिए कि वरिष्ठ नेता स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दें कि 'कोई व्यक्ति घुसपैठ के दौरान बीएसएफ की नजरों से बचकर हमारे यहां आ गया तो ऐसा बिल्कुल न समझे कि हम उसे बख्श देंगे और उसके लिए सुख-सुविधाएं जुटाएंगे ... हम घुसपैठियों को जेल भेजेंगे ... जो उनकी मदद करेगा, उसकी सजा और ज्यादा सख्त होगी।' जब मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हो तो राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर बात करनी चाहिए।

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