साफ नसीहत
बांग्लादेशी यह न भूलें कि उन्होंने जो आर्थिक विकास किया, उसके पीछे भारत का सहयोग है
अगर आप खुद अपनी आवाज नहीं उठाएंगे तो कोई दूसरा क्यों उठाएगा?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेश में अंतरिम सरकार की जिम्मेदारी संभाल चुके प्रो. मोहम्मद यूनुस को शुभकामनाएं देते हुए वहां के हिंदुओं और अन्य सभी अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करने संबंधी टिप्पणी कर इस पड़ोसी देश को साफ नसीहत दे दी है। अगर बांग्लादेशियों को शांति और विकास चाहिए तो हुड़दंग और उपद्रव को रोकना होगा। प्रधानमंत्री ने एक्स पर अपने आधिकारिक अकाउंट पर 'हिंदू' शब्द का प्रयोग किया, जो प्रशंसनीय है। कुछ कथित बुद्धिजीवी जरूर इस पर आपत्ति जताएंगे, लेकिन प्रधानमंत्री का यह कदम स्वागत-योग्य है। क्या बांग्लादेशी हिंदुओं के जीवन और गरिमा की रक्षा के लिए आवाज नहीं उठानी चाहिए? जब से बांग्लादेश में उपद्रव शुरू हुआ है, दुनियाभर में कितने लोगों ने वहां के हिंदुओं और अल्पसंख्यकों के लिए आवाजें उठाई हैं? विडंबना है कि जब कभी गाजा, अफगानिस्तान, सीरिया आदि में हालात बिगड़ते हैं (जो कि नहीं बिगड़ने चाहिएं) तो भारत में बॉलीवुड से लेकर बड़े-बड़े संस्थानों तक के 'बुद्धिजीवी' 'एक्स' पर दिन-रात पोस्ट करते हैं, सरकारों से सवाल पूछते हैं। वहीं, बांग्लादेशी हिंदुओं और अल्पसंख्यकों को लेकर तकरीबन सन्नाटा पसरा हुआ है। इस सन्नाटे को तोड़ा नरेंद्र मोदी ने और उन बांग्लादेशी हिंदुओं ने, जो ढाका व चटगांव समेत कई शहरों में सड़कों पर उतरे। पहले, बांग्लादेश में कई वर्षों में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की कोई एक-दो बड़ी घटनाएं होती थीं। अब हर साल हो रही हैं। दुर्गापूजा के दिनों में उनके साथ जो अप्रिय घटनाएं हुई थीं, उनकी तस्वीरें/वीडियो देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। अब वहां आंदोलन के नाम पर जिस तरह अराजकता और उत्पात का माहौल बनाया गया, उसके मद्देनजर हमें कुछ कड़े फैसले लेने के लिए तैयार रहना चाहिए।
बांग्लादेशी यह न भूलें कि उन्होंने जो आर्थिक विकास किया, उसके पीछे भारत का सहयोग है। जिस दिन भारत अपनी भृकुटी टेढ़ी कर लेगा, विकास का यह ग्राफ औंधे मुंह गिरते समय नहीं लगेगा। बांग्लादेश की आज़ादी के लिए भारतीय सैनिकों ने अपना लहू दिया था। साल 1971 में भारत ने वहां इसलिए सैन्य कार्रवाई की थी, क्योंकि पश्चिमी पाकिस्तान के फौजी नेतृत्व की ज्यादती से परेशान होकर बड़ी संख्या में लोग हमारे यहां शरण लेने आ गए थे। आज बांग्लादेश में लोग अपनी जान व इज्जत बचाने के लिए फिर सरहद पर आ रहे हैं। ऐसे में भारत अपने हितों की रक्षा के लिए सख्त कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगा। मोहम्मद यूनुस को यह संदेश भेज देना चाहिए कि वे अपने सेना प्रमुख को आदेश दें कि पूरे बांग्लादेश में शांति स्थापना सुनिश्चित करें, चूंकि अब मामला बर्दाश्त से बाहर होता जा रहा है। अगर सेना प्रमुख यह ठान लें कि उपद्रवियों पर शिकंजा कसना है तो एक दिन में शांति स्थापित हो सकती है। उपद्रवी के पत्थर से ज्यादा ताकत सैनिक की बंदूक में होती है। बांग्लादेश में जो लोग आरक्षण का विरोध कर रहे थे, उच्चतम न्यायालय ने उनकी बात मान ली। वे शेख हसीना का इस्तीफा मांग रहे थे, वह हो चुका है। उन्होंने मुख्य न्यायाधीश का इस्तीफा मांगा, वे भी अपने घर चले गए। अब अल्पसंख्यकों के घरों को लूट रहे हैं, तोड़फोड़ मचा रहे हैं, उनकी बेटियों की गरिमा को ठेस पहुंचा रहे हैं तो यह मर्यादा का खुला उल्लंघन है। बांग्लादेशी सेना इस हुड़दंग को रोकने में समर्थ है, लिहाजा उसे फुर्ती दिखानी चाहिए। उपद्रवियों के खिलाफ कार्रवाई करने में यह सुस्ती क्यों? बांग्लादेशी हिंदुओं तथा अल्पसंख्यकों को अपने हक के लिए खुद आवाज उठानी चाहिए। अगर आप खुद अपनी आवाज नहीं उठाएंगे तो कोई दूसरा क्यों उठाएगा?