कैसे सशक्त होंगे गांव?

भारत तभी प्रगति करेगा, जब उसके गांव सशक्त होंगे

कैसे सशक्त होंगे गांव?

गांवों में व्यवसाय शुरू करें तो कुछ ही महीनों में अच्छी आमदनी संभव है

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने यह कहकर देश की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता को रेखांकित किया है कि 'भारत तभी प्रगति करेगा, जब उसके गांव सशक्त होंगे।' एक तरफ गांवों से पलायन हो रहा है, दूसरी तरफ शहरों पर आबादी का दबाव बढ़ता जा रहा है, जिससे कई गंभीर समस्याएं पैदा हो गई हैं। हम दशकों से सुनते आए हैं कि देश के 'विकास' के लिए गांवों का 'विकास' होना चाहिए। सबसे पहले तो यह तय करना होगा- 'विकास' क्या है? प्राय: बड़ी-बड़ी इमारतों, चमचमाती सड़कों और महंगी गाड़ियों की आवाजाही को 'विकास' मान लिया जाता है। गांवों का विकास करने के लिए उन्हें शहर बनाने की जरूरत नहीं है। हां, वहां सुविधाएं बढ़ानी चाहिएं, नई तकनीक का प्रचार-प्रसार करना चाहिए, लोगों को जागरूक करना चाहिए। आज कई शहरों का इतना बेतरतीब फैलाव हो चुका है कि गांव और शहर का अंतर ही समाप्त हो गया। अवैज्ञानिक तरीके से बसावट ने शहरों के साथ गांवों के लिए भी कई परेशानियां खड़ी कर दीं। मानसून में कई मकान सिर्फ इस वजह से बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं, क्योंकि उन्हें बनाने से पहले भविष्य में पानी के बहाव आदि के बारे में सोचा ही नहीं था! गांवों में युवाओं का खेती से मोहभंग होता जा रहा है। शायद ही कोई किसान होगा, जो यह चाहेगा कि उसकी संतानें खेती करें। ज्यादातर का एक ही सपना है कि 'गांव छोड़कर शहर जाएं, वहां सरकारी नौकरी हासिल करें और भविष्य में वहीं आशियाना बना लें। क्या रखा है गांव में?' राजनीतिक दल गांवों की तस्वीर बदलने के वादे तो खूब करते हैं, लेकिन कितने नेता हैं, जो यह चाहेंगे कि उनके बच्चे गांव के सरकारी स्कूलों में पढ़ाई करें और भविष्य में वहीं रहकर कामकाज करें?

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ऐसा नहीं है कि गांवों में लोग सिर्फ खेती और पशुपालन करना जानते हैं। ये दोनों काम भी बहुत लोगों को रोजगार देते हैं। अगर वैज्ञानिक तरीके से उचित प्रशिक्षण दिया जाए, बाजार उपलब्ध कराया जाए तो गांवों में रोजगार के अनेक अवसर पैदा हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, छोटे कस्बों से लेकर महानगरों तक, शुद्ध घी की मांग हमेशा रहती है। इसी तरह, अच्छी गुणवत्ता का शहद, जिसकी कीमत थोड़ी ज्यादा हो, तो भी लोग उसे खरीदना चाहते हैं। हमारे कई गांवों में इन दोनों उत्पादों के लिए बेहतरीन संभावनाएं हैं। आज यूरोप के कई शहरों से लोग गांवों में रहने जा रहे हैं। वहां वे लैपटॉप के जरिए दफ्तर का काम भी करते हैं। इसके अलावा गांव आधारित कोई लघु उद्योग चलाते हैं। उन्हें सोशल मीडिया पर खूब ग्राहक मिल जाते हैं। एक महिला, जो अपना यूट्यूब चैनल चलाती हैं, गांव में रहकर हाथ से बुने हुए ऊनी कपड़ों का व्यवसाय करती हैं। उनके हाथ का हुनर लोगों को अचंभित कर देता है। उन्हें दूर-दूर से ऑर्डर मिलते हैं, जिसके बाद वे स्वेटर, टोपी, दस्ताने आदि बुनती हैं और निर्धारित अवधि में तैयार कर भेज देती हैं। इसी तरह एक महिला विभिन्न तरह के अचार बनाती हैं। वे इससे संबंधित वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट करती हैं। वे अचार के स्वाद के साथ शुद्धता की गारंटी देती हैं। शहरों में उनके अचार की धूम है। लोग उन्हें खुशी-खुशी ज्यादा रकम देने के लिए भी तैयार हो जाते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि इससे उनकी सेहत को ही फायदा होगा। ऐसी कई कहानियां हैं, जिनसे प्रेरणा लेकर हमारे गांवों में व्यवसाय शुरू करें तो कुछ ही महीनों में अच्छी आमदनी संभव है। इनमें बहुत भारी-भरकम निवेश की जरूरत नहीं होती। इच्छाशक्ति और हुनर के दम पर की गई छोटी शुरुआत भी भविष्य में बड़ा फायदा दे सकती है। इससे गांव सशक्त होंगे, देश सशक्त होगा।

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