'नकली गिरफ्तारी', जान पर भारी

बढ़ती जा रहीं साइबर ठगी की घटनाएं

'नकली गिरफ्तारी', जान पर भारी

इनसे कैसे बचें?

कर्नाटक में बेलगावी के नंदगढ़ गांव के एक बुजुर्ग दंपति ने साइबर ठगों की धमकियों से परेशान होकर जिस तरह खौफनाक कदम उठाया, उससे पता चलता है कि लोगों को डिजिटल सुरक्षा के संबंध में जागरूक करने की बहुत जरूरत है। इससे पहले भी साइबर ठग कई मासूम लोगों की ज़िंदगी से खिलवाड़ कर चुके हैं। सरकार लोगों को लगातार सावधान कर रही है। मीडिया भी लोगों को जागरूक करने के लिए कई बार खबरें छाप चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद 'मन की बात' कार्यक्रम में संदेश जारी कर चुके हैं। इसके बावजूद कोई व्यक्ति साइबर ठगों की धमकियों से डर जाता है, उनके द्वारा वीडियो कॉल पर नकली गिरफ्तारी ('डिजिटल अरेस्ट') को असली मान लेता है, तो इससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि उसने बहुत महत्त्वपूर्ण जानकारी की ओर ध्यान नहीं दिया। जो व्यक्ति रोज़ाना विश्वसनीय स्रोतों से ख़बरें पढ़ता है, उसे जरूर मालूम होता है कि साइबर अपराधी नए-नए दांव चल रहे हैं, जिनसे सावधान रहना है। हाल में कानपुर में तो एक युवक ने कमाल ही कर दिया। उसे साइबर ठगों ने फोन कर धमकी दी कि 'तुम इन दिनों खूब आपत्तिजनक वीडियो देख रहे हो, लिहाजा मामला दर्ज हो गया है ... अगर इससे बाहर निकलना है तो तुरंत 16,000 रुपए भेजो।' उस युवक को पता था कि देशभर में फर्जी फोन कॉल के जरिए लोगों को धमकाया और लूटा जा रहा है, इसलिए वह सतर्क हो गया और बातों ही बातों में ठग से 10,000 रुपए वसूल लिए! उसके बाद साइबर ठग उससे रुपए लौटाने की मिन्नतें करने लगा। पुलिस ने उस युवक को सम्मानित किया है। इसी तरह, एक भारतीय यूट्यूबर ने अपना चैनल ही साइबर ठगों को बेनकाब करने के लिए समर्पित कर दिया। वह एक सामान्य व्यक्ति होने का दिखावा करता है, उसके बाद धीरे-धीरे साइबर ठगों का भरोसा जीतता है, उनसे वीडियो कॉल पर बात कर तस्वीरें लेता है और आखिरकार पूरा विवरण अपने चैनल पर डालकर उनका भंडाफोड़ कर देता है।

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आमतौर पर साइबर ठगों के बारे में यह माना जाता है कि इनके पास लोगों की पूरी जानकारी होती है, ये बड़े होशियार होते हैं। असल में ये ठग बड़े मूर्ख और डरपोक होते हैं। अगर हम ज़रा-सी सूझबूझ से काम लें तो इनके मंसूबों को विफल कर सकते हैं। याद रखें, देश में कोई भी जांच एजेंसी वीडियो कॉल पर पूछताछ नहीं करती और 'डिजिटल अरेस्ट' जैसा कोई प्रावधान है ही नहीं। जो व्यक्ति फोन पर खुद को जांच एजेंसी का अधिकारी बताकर यह कहता है कि आपके खिलाफ शिकायत मिली है और आपको डिजिटल अरेस्ट करेंगे तो उससे डरने की कोई जरूरत नहीं है। जब कोई अपराध किया ही नहीं है तो क्यों डरें? जिस एजेंसी को वास्तव में पूछताछ करनी होती है, वह पहले संबंधित व्यक्ति को नोटिस जारी करती है, जिसमें स्थान और समय का उल्लेख किया जाता है। उस व्यक्ति को कानूनी सहायता लेने का पूरा अधिकार होता है। प्राय: साइबर ठग आधा-पौन दर्जन जांच एजेंसियों के नाम गिनाकर लोगों को बुरी तरह डरा देते हैं। सोचिए, अगर कोई व्यक्ति सच में इतना बड़ा अपराधी है कि स्थानीय पुलिस से लेकर सीबीआई तक को उसकी तलाश है, उसे पकड़कर लाने के लिए अदालतें आदेश जारी कर रही हैं तो क्या उसे फोन पर सूचना दी जाएगी और 'डिजिटल अरेस्ट' कर घर में ही रहने दिया जाएगा? पिछले दिनों साइबर ठगों ने इसी तर्ज पर एक बुजुर्ग की ज़िंदगीभर की बचत उड़ा ली थी। उन्हें एक पखवाड़े तक 'डिजिटल अरेस्ट' रखा और पूरा बैंक खाता साफ कर दिया। ताज्जुब की बात यह है कि पीड़ित बुजुर्ग आरबीआई में अधिकारी रह चुके हैं! उन्हें तो ऐसे मामलों की पूरी जानकारी होनी चाहिए थी। इसलिए बहुत जरूरी है कि अपने जीवन, संपत्ति और परिवार की सुरक्षा के लिए रोज़ाना देश-दुनिया की ख़बरें पढ़ें। जो व्यक्ति ख़बरों से जितना दूर रहेगा, उसके लिए साइबर ठगों का शिकार बनने का जोखिम उतना ही ज्यादा रहेगा। यह सोचकर अनदेखी करना बहुत महंगा पड़ सकता है कि 'मैं तो उच्च शिक्षित हूं, संपन्न हूं, मुझे दुनियादारी से कोई मतलब नहीं है।' पिछले कुछ वर्षों में ही साइबर ठगों ने बड़े-बड़े डॉक्टरों, इंजीनियरों, अधिकारियों और उद्योगपतियों को करोड़ों रुपए का चूना लगा दिया। उन्होंने भारी नुकसान होने के बाद जाना कि देश-दुनिया में यह सब चल रहा है। अगर पहले जानने की कोशिश करते तो नुकसान से बच जाते।

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