ज़ेलेंस्की के पदचिह्नों पर यूनुस?
यह बांग्लादेश के लिए गले का फंदा न बन जाए

राष्ट्रहित के हर बिंदु पर हमें एकजुट होना ही चाहिए
बांग्लादेश के 'मुख्य सलाहकार' मोहम्मद यूनुस ने जब से यह जिम्मा संभाला है, उन्होंने 'अर्थशास्त्र' के ज्ञान को तिलांजलि देकर 'अनर्थशास्त्र' के नए-नए अध्याय लिखने शुरू कर दिए हैं। उन्होंने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के संबंध में जो टिप्पणी की है, उससे यह स्पष्ट होता है कि वे चीन की कठपुतली बनने के लिए तैयार हैं। उनकी यह टिप्पणी कि 'बांग्लादेश महासागर (बंगाल की खाड़ी) का एकमात्र संरक्षक है, क्योंकि भारत के पूर्वोत्तर राज्य चारों ओर से जमीन से घिरे हैं और उनके पास समुद्र तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं है ... इससे बड़ी संभावनाएं खुलेंगी और चीन को बांग्लादेश में अपना आर्थिक प्रभाव बढ़ाना चाहिए ...', अत्यंत निंदनीय है। ऐसा प्रतीत होता है कि मोहम्मद यूनुस यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की के पदचिह्नों पर चलना चाहते हैं, जिन्होंने अविवेकपूर्ण ढंग से फैसले लेकर अपने ही देश को तबाह कर दिया। यूनुस दिखाना चाहते हैं कि बांग्लादेश में इतनी शक्ति व सामर्थ्य मौजूद है कि यह महासागर का बहुत बड़ा रखवाला बन गया है, इतना बड़ा कि जो इसके साथ जुड़ेगा, वह अंतरराष्ट्रीय व्यापार में बहुत उन्नति करेगा! अगर बांग्लादेश में सच में इतनी बड़ी संभावनाएं आकार ले चुकी हैं तो यूनुस सबसे पहले अपने देशवासियों का भला क्यों नहीं कर देते? क्यों वे जंगल, नदियों और तारों की बाड़ को पार करते हुए भारत में घुसपैठ करते हैं? क्यों वे हमारे विभिन्न शहरों में फर्जी नाम और पहचान के साथ रहने को मजबूर होते हैं? यूनुस चीन के लिए संभावनाएं बाद में तलाशें, पहले बांग्लादेश में कट्टरपंथियों की लूटमार और हिंसा पर लगाम लगाने पर विचार करें। वे चीन को जिस तरह बड़ी संभावनाओं के सब्ज़-बाग़ दिखाकर न्योता दे रहे हैं, कहीं वह भविष्य में बांग्लादेश के लिए गले का फंदा न बन जाए।
चीन ने अपना प्रभाव पाकिस्तान में बढ़ाया, सीपेक बनाया, ऊंची ब्याज दरों पर कर्ज दिया, बलोचिस्तान की खनिज संपदा को लूटने की साजिश रची ... इससे वहां लोग आक्रोशित हैं। आज पाकिस्तान के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा तो चीनी कर्ज का ब्याज चुकाने में चला जाता है। चीन ने श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह के साथ क्या किया? उसने मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू की खूब पीठ थपथपाई थी, जिससे उत्साहित होकर वे और उनके मंत्री भारत को आंखें दिखाने लगे थे। उससे मालदीव की अर्थव्यवस्था को क्या हासिल हुआ? मोहम्मद यूनुस को इन सबसे सबक लेना चाहिए। वे चीन के साथ जिस तरह गलबहियां कर रहे हैं, भारतविरोधी बयान दे रहे हैं, उसके बाद यह न समझें कि भारत से उन्हें कोई नहीं देख रहा है। उनके एक-एक शब्द के सही-सही मायने निकाले जा रहे हैं। वे हमारे देश के क्षेत्रों का उल्लेख कर चीनी एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं। अपने पड़ोसियों द्वारा की गई ऐसी टीका-टिप्पणी पर भारत ने सदैव धैर्य और सहनशीलता का परिचय दिया है, लेकिन बात जब हमारे देश की अखंडता और सुरक्षा की होगी तो इन पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। उस सूरत में मोहम्मद यूनुस को भारत के कड़े रुख का सामना करना पड़ सकता है। यह न भूलें कि बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को चलाने में भारत का बहुत बड़ा योगदान है। ढाका की बड़ी-बड़ी इमारतों से लेकर दूर-दराज के कच्चे मकानों में जरूरत का काफी सामान भारत से ही जाता है। अगर भारत सहयोग न करता तो बांग्लादेश में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की क्या स्थिति होती? कई बांग्लादेशी अपना इलाज कराने के लिए भारत आते हैं। क्या चीन उनके लिए दरवाजे खोलेगा? यूनुस की आपत्तिजनक टिप्पणियों के जवाब में भारतीय नेताओं ने जिस तरह एकजुटता दिखाई, वह सराहनीय है। राजनीतिक मामलों में भले ही मतभेद रहें, लेकिन राष्ट्रहित के हर बिंदु पर हमें एकजुट होना ही चाहिए।About The Author
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