जैन दर्शन की साधना पद्धति का सार है नवपद की ओली: आचार्यश्री विमलसागर
नवकार महामंत्र दिवस आयोजन की रूपरेखा की हुई प्रस्तुति

आचार्य, उपाध्याय और साधु, ये तीन गुरुतत्व हैं
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शुक्रवार काे गविपुरम स्थित एक अपार्टमेंट के प्रांगण में आयाेजित धर्म सभा काे संबाेधित करते हुए आचार्य विमलसागर सूरीश्वरजी ने कहा कि नवपद की ओली जैनदर्शन की साधना पद्धत्ति का सार है। यह नाै दिवसीय विशुद्ध आध्यात्मिक साधना प्रतिवर्ष चैत्र और आश्विन माह की नवरात्रि में प्रारंभ हाेती है, इसे शाश्वत माना गया है। हर कालखंड और हर तीर्थंकर के कार्यकाल में यही साधना जीवंत हाेती है।
इन नाै पदाें में अरिहंत और सिद्ध, ये दाे देवतत्व परमात्मा हैं, आचार्य, उपाध्याय और साधु, ये तीन गुरुतत्व हैं तथा सम्यकदर्शन, सम्यकज्ञान, सम्यक् चारित्र और सम्यक् तप, ये चार धर्मतत्व हैं। इनमें से प्रारंभिक पांच पदाें से नवकार मंत्र बना है।वर्तमान युग में जैन समाज में ऐसे सैकड़ाें साधु-साध्वी और श्रावक-श्राविका माैजूद हैं, जाे निरंतर पचासपचपन वर्षाें से रूखा-सूखा एक समय भाेजन करते हुए आयंबिल की तपस्या कर नवपद की साधना कर रहे हैं। जिन्हाेंने इतने वर्षाें से संपूर्ण रस का परित्याग कर अपनी वृत्तियाें काे नियंत्रित करने का पुरुषार्थ किया है, सचमुच ऐसी आत्माएं धन्य और पूजनीय हैं। भाेग-विलास और वासनाओं काे त्यागकर, ब्रह्मचर्य की परिपालना करना नवपद की आराधना का मूल आधार है।
देश-विदेश में चालीस हजार से अधिक स्थानाें पर आज से आयंबिल की तपस्या प्रारंभ हाे रही है। बाल, युवा, वृद्ध, लाखाें साधक इस आराधना में जुड़ते हैं। शुक्रवार का सुबह चामराजपेट से पदयात्रा करते हुए जैनाचार्य विमलसागर सूरीश्वरजी, गणि पद्मविमलसागरजी आदि श्रमणजन शंकरपुरम स्थित सिमंधरस्वामी गृह जिनालय पहुंचे। वहां चतुर्विध श्रीसंघ ने सामूहिक चैत्यवंदना की। भंसाली भवन में गणि पद्मविमलसागरजी ने कहा कि साधना-आराधना के बिना मनुष्य के मन काे कभी शांति नहीं मिल सकती। अगर वस्तुओं और साधनाें में ही सुख हाेता ताे कभी काेई साधना नहीं करता।
इस माैके पर जीताे दक्षिण चैप्टर, खरतरगच्छ जैन संघ, वीवी पुरम संभवनाथ जिनालय के पदाधिकारी आदि उपस्थित थे जिन्हाेंने 9 अप्रैल काे आयाेजित हाेने वाले नवकार महामंत्र दिवस के वैश्विक कार्यक्रम की रूपरेखा काे अंतिम रूप दिया।