संतान से पहले संसाधन जरूरी
लोगों की ज़िंदगी से जुड़े संघर्ष कम होने का नाम नहीं ले रहे

बड़े-बड़े डिग्रीधारी बेरोजगार बैठे हैं
इन दिनों कुछ मुख्यमंत्री और उनकी पार्टियों के नेता 'जनसंख्या बढ़ाने की अपील' की वजह से सोशल मीडिया पर खूब चर्चा में हैं। वे लोगों से बार-बार कह रहे हैं कि उन्हें अधिक संतानोत्पत्ति करनी चाहिए। हालांकि रोजगार की क्या स्थिति है, चिकित्सा सुविधाएं कैसी हैं, परिवहन सुविधाओं का क्या हाल है ... इन पर वे बात नहीं करते। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें इन बातों की खास चिंता भी नहीं है। वे इस बात को लेकर फिक्रमंद हैं कि परिसीमन में लोकसभा की सीटें कम न हो जाएं। क्या इसका एकमात्र समाधान यह है कि ज्यादा से ज्यादा बच्चों को इस दुनिया में लाया जाए? इसमें कोई संदेह नहीं कि कुछ राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण के संबंध में बहुत अच्छा काम किया है। वहां अन्य राज्यों की तुलना में आम आदमी की ज़िंदगी कुछ बेहतर हुई है। जिन राज्यों में टीएफआर (कुल प्रजनन दर) ज्यादा है और लोकसभा में उनके प्रतिनिधि ज्यादा हैं, वहां भी लोग मांग कर रहे हैं कि जनसंख्या नियंत्रण में अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों को 'इनाम' मिलना चाहिए। इसके उलट, लोगों से जनसंख्या वृद्धि की अपील करने के भयावह परिणाम हो सकते हैं। क्या हमारे पास बुनियादी सुविधाएं देने के लिए इतने संसाधन हैं? नेताओं को ऐसी अपील करने से पहले आम आदमी के नजरिए को समझना होगा। क्या आप हर बच्चे के लिए साफ हवा, स्वच्छ पेयजल और पौष्टिक आहार सुनिश्चित कर सकते हैं? क्या आप हर बच्चे को नि:शुल्क एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे सकते हैं? क्या आप ऐसा समाज बना सकते हैं, जहां भ्रष्टाचार और अपराधों पर कड़ा नियंत्रण हो और आम आदमी किसी मुसीबत में हो तो पुलिस थाने में जाकर सहज महसूस करे? क्या आप ऐसे अस्पताल बना सकते हैं, जहां अच्छी सुविधाओं के साथ बेहतरीन इलाज हो और लोगों को अपनी जेब की चिंता न करनी पड़े?
ये तो चंद सवाल हैं। हकीकत यह है कि लोगों की ज़िंदगी से जुड़े संघर्ष कम होने का नाम नहीं ले रहे। कमजोर और साधारण आर्थिक पृष्ठभूमि वाले परिवारों के बच्चे पहले ही बहुत ज्यादा दबाव में हैं। परीक्षा में अच्छे नंबर लाने का दबाव अपनी जगह है। जब कॉलेज से निकलते हैं, तब पता चलता है कि असली परीक्षा तो अब होने वाली है। बड़े-बड़े डिग्रीधारी बेरोजगार बैठे हैं। जिन्हें कहीं रोजगार मिल गया है, उनमें से ज्यादातर का वेतन बहुत कम है। युवाओं की ऊर्जा का काफ़ी हिस्सा तो रोजगार ढूंढ़ने में खर्च हो रहा है। जो लोग इस दुनिया में आ चुके हैं, उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए अच्छे स्कूलों की कमी है, सरकारी अस्पताल संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं, बसों, ट्रेनों में भीड़ ही भीड़ है, शहर में ऐसी जगह मिलनी मुश्किल है जहां इन्सान आधा घंटा बैठकर सुकून से सांस ले सके ... क्या ये सभी बिंदु इस बात का समर्थन करते हैं कि जनसंख्या में तेज बढ़ोतरी होनी चाहिए? पहले इन लोगों की ज़िंदगी तो सुधार दें, इनका भला कर दें! नेताओं द्वारा ऐसी अपीलों के साथ सोशल मीडिया पर अमेरिका के एक मशहूर उद्योगपति काफी चर्चा में हैं। वे दुनिया के पांच सबसे अमीरों में शुमार किए जाते हैं। उन्हें इस बात की बहुत 'चिंता' है कि टीएफआर घट रही है, जिससे धरती पर इन्सानों का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा! हालांकि कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि वे उद्योगपति आम लोगों से जनसंख्या बढ़ाने की अपील इसलिए कर रहे हैं, ताकि उन्हें कम वेतन पर श्रमिक मिलते रहें और उनका कारोबार खूब चलता रहे। इसी तरह, जनसंख्या बढ़ाने की अपील करने वाले नेताओं की यह कहते हुए आलोचना होना स्वाभाविक है कि उन्हें अपना वोटबैंक बढ़ाने की चिंता है। अगर किसी नेता या पार्टी को आम जनता की बहुत चिंता है तो पहले उसकी भलाई के लिए काम करें, गुणवत्तापूर्ण सुविधाओं का इंतजाम करें। उसके बाद यह फैसला लोगों पर छोड़ दें कि वे कितनी संतान चाहते हैं!About The Author
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