हेरफेर का अंबार
तृणकां सरकार को लगा बड़ा झटका

तृणकां के लिए भाजपा के सवालों का जवाब देना आसान नहीं होगा
उच्चतम न्यायालय द्वारा पश्चिम बंगाल के स्कूलों में 25,753 शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति को अवैध ठहराए जाने का फैसला तृणमूल कांग्रेस सरकार के लिए बहुत बड़ा झटका है। दर्जनों याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए न्यायालय ने जो टिप्पणी की, उससे संपूर्ण चयन प्रक्रिया को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं। शिक्षा जैसे अत्यंत सम्मानजनक एवं पावन क्षेत्र में इतनी धांधली! जब प्रक्रिया ही त्रुटिपूर्ण थी तो चुने गए शिक्षकों ने कैसी पढ़ाई कराई होगी? उन बच्चों का भविष्य क्या होगा? न्यायालय का फैसला आते ही उन शिक्षकों के घरों में कैसा माहौल होगा? जो कल तक स्कूलों में सरकारी नौकरी कर रहे थे, आज बेरोजगार हो गए! अब उनका गुजारा कैसे चलेगा? न्यायालय ने तो न्याय किया है, उन नेताओं और अधिकारियों ने क्या किया, जिन पर चयन प्रक्रिया की पवित्रता और विश्वसनीयता बनाए रखने की जिम्मेदारी थी? जब चयन प्रक्रिया में इतनी गलतियां थीं तो उच्चतम न्यायालय में इसके पक्ष में तर्क कितनी देर तक टिकते? इसमें जिस स्तर पर गड़बड़ी हुई, उसका अंदाजा प्रधान न्यायाधीश के इन शब्दों से लगाया जा सकता है, ‘हमारे विचार में यह ऐसा मामला है, जिसमें पूरी चयन प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण है। बड़े पैमाने पर हेरफेर और धोखाधड़ी के साथ-साथ मामले को छिपाने के प्रयासों ने चयन प्रक्रिया को इतना नुकसान पहुंचाया है कि उसे दुरुस्त नहीं किया जा सकता।’ इस चयन प्रक्रिया ने समाज को दोहरा नुकसान पहुंचाया है। एक ओर तो इसने उन लोगों का हक मारा, जो सरकारी शिक्षक बनने के योग्य थे। अगर उन्हें नियुक्ति मिलती तो वे शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान देते। वहीं, हेरफेर और तमाम त्रुटियों के बावजूद जो लोग अब तक नौकरी करते रहे, उनका भविष्य अनिश्चिचतता के भंवर में फंस गया है। अमान्य घोषित किए गए हर कर्मचारी पर घर-परिवार के तीन-चार सदस्यों की जिम्मेदारी तो होगी ही। स्पष्ट है कि इस फैसले से एक लाख से ज्यादा लोग प्रभावित होंगे।
यह गनीमत समझें कि फैसला सुनाते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि 'जिन कर्मचारियों की नियुक्तियां रद्द की गई हैं, उन्हें अब तक अर्जित वेतन और अन्य भत्ते वापस करने की जरूरत नहीं है।' अगर यह राशि वापस लौटानी पड़ती तो इन लोगों के लिए भारी मुसीबत खड़ी हो जाती। हालांकि मुसीबतें अब भी कम नहीं हैं। सरकारी नौकरी लगने के बाद हर महीने बढ़िया वेतन आ रहा था। खास तरह की सामाजिक प्रतिष्ठा थी। अब ये दोनों चीजें जाती रहीं। अगर भविष्य में फिर ऐसी नौकरी हासिल करना चाहेंगे तो संघर्ष कम नहीं है। देश में पहले ही इतनी बेरोजगारी है। सवाल है- क्या इस स्थिति को टाला जा सकता था? जवाब है- बिल्कुल टाला जा सकता था, बशर्ते कुछ लोग अपनी जिम्मेदारी ठीक तरह से निभाते। अगर इसमें पारदर्शिता बरती जाती, छेड़छाड़ न होती, अनियमितताओं को दूर रखा जाता तो कोई विवाद ही न होता। उच्चतम न्यायालय का फैसला आने के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भाजपा के निशाने पर आ गई हैं। विपक्ष उनकी आलोचना करने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देगा। उसने बनर्जी के इस्तीफे की मांग शुरू कर दी है। राज्य में विधानसभा चुनाव होने में लगभग एक साल का समय बचा है। भाजपा यह मुद्दा उठाकर तृणकां पर हमला बोल सकती है। चूंकि यह किसी एक ग्राम पंचायत या जिले का नहीं, बल्कि पूरे प. बंगाल के हजारों परिवारों का मुद्दा है, लिहाजा तृणकां के लिए भाजपा के सवालों का जवाब देना आसान नहीं होगा। इस भर्ती घोटाले की जांच की आंच तृणमूल कांग्रेस के कुछ नेताओं तक पहले ही पहुंच चुकी है। क्या ममता बनर्जी उन सबको पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाएंगी या 'जिताऊ' समझकर टिकट देंगी? 'मां, माटी और मानुष' (माता, भूमि और लोग) महज़ नारा बनकर न रह जाए। जिनकी वजह से हजारों 'मानुष' के सपने चकनाचूर हुए, जनता उनका हिसाब जरूर लेगी।About The Author
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