समाज और धर्मसंघ के नायक व पदाधिकारी नीतिमान होने चाहिएं: आचार्य विमलसागरसूरी

गुरु चरणाें में बैठकर शिक्षा-दीक्षा लेनी चाहिए

समाज और धर्मसंघ के नायक व पदाधिकारी नीतिमान होने चाहिएं: आचार्य विमलसागरसूरी

अनेक कुप्रथाएं समाज व धर्मक्षेत्र में प्रविष्ट हाे गई हैं

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के बसवनगुड़ी स्थित जिनकुशलसूरी जैन दादावाड़ी ट्रस्ट व संघ के तत्वावधान में मंगलवार काे श्रद्धालुओं काे संबाेधित करते हुए जैनाचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि नायक व पदाधिकारियाें काे समाज व धर्मसंघ अपने परिवार से भी अधिक प्यारे लगने चाहिएं। जब हम उनकी हानि काे अपनी हानि समझेंगे ताे कभी उनका अहित नहीं हाेने देंगे। हजाराें वर्षाें का जैन समाज और धर्मसंघ का गाैरवशाली इतिहास बलिदानाें के आधार पर निर्मित हुआ है। 

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भगवान महावीर स्वामी की परंपरा के प्राचीन आचार्याें का स्पष्ट मत रहा है कि समाज व धर्म, धन के आधार पर नहीं, गुणाें के आधार पर विकसित हाेने चाहिए। गुणवान धनवान हाे सकते हैं, लेकिन गुणहीन पदाधिकारी नहीं बन सकते। जाे साधु-साध्वी, मंदिर, उपाश्रय, आयंबिल शाला, पाठशाला और सिद्धांताें के प्रति समर्पित न हाें, वे धर्मसंघ के लिए अयाेग्य माने गए हैं। धर्म और समाज शास्त्राें की मति से चलते हैं, स्वमति से नहीं चल सकते। साधु-साध्वियाें के लिए भी ऐसे अनेक नियम हैं।

आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि समाज और धर्मसंघ के नायक व पदाधिकारी नीतिमान हाेने चाहिएं। तभी सामाजिक और धार्मिक व्यवस्थाओं का सुचारू संचालन हाे सकता है। ज्ञान, संस्कार और याेग्यता के अभाव में प्राप्त पद या अधिकार मनुष्य काे भ्रष्टाचार, दुर्व्यवहार अथवा अनैतिकता के पथ पर ले जाते हैं। हकीकत में धर्मसंघ सत्ता और अधिकाराें के लिए नहीं हाेता। सेवा भावना, सहयाेग और उन्नति का स्पष्ट दृष्टिकाेण रखकर ही व्यक्ति का सामाजिक-धार्मिक क्षेत्र में आगे आना चाहिए। 

प्राचीन जैनशास्त्राें में समाज व धर्मसंघ के संचालन के लिए छाेटी-बड़ी सभी बाताें का सुंदर मार्गदर्शन निरूपित है। गुरु चरणाें में बैठकर श्रद्धा और समर्पण की भूमिका पर पदधिकाराें काे व्यवस्थित शिक्षा-दीक्षा लेनी चाहिए। 

आज ताे सत्ता की लालसा, मनमानी और आपसी मनमुटाव में समाज व धर्म का भारी नुकसान हाे रहा है। अहं का टकराव और स्वार्थपरक मानसिकता भी समाज का बहुत अहित कर रही है। समुचित ज्ञान और याेग्यताओं के अभाव में अनेक कुप्रथाएं समाज व धर्मक्षेत्र में प्रविष्ट हाे गई हैं। 

इससे पूर्व नगरथपेट से बसवनगुड़ी पहुंचने पर जिनकुशलसूरी जैन संघ ने आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी, गणि पद्मविमलसागरजी, मुनि मलयप्रभसागरजी एवं सहवर्ती श्रमणाें का भावपूर्ण स्वागत किया।

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