मोदी सरकार के वार से ‘घायल ड्रैगन’ पर दुनियाभर से आर्थिक प्रहारों की बौछार

मोदी सरकार के वार से ‘घायल ड्रैगन’ पर दुनियाभर से आर्थिक प्रहारों की बौछार

मोदी सरकार के वार से ‘घायल ड्रैगन’ पर दुनियाभर से आर्थिक प्रहारों की बौछार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

नई दिल्ली/दक्षिण भारत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन चीनी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई कर उन्हें हाशिए पर डाल रहे हैं जो इस पड़ोसी देश की अर्थव्यवस्था में काफी अहमियत रखती हैं। मोदी सरकार ने न केवल चीनी कंपनियों पर सख्ती और समझदारी से निशाना साधा, बल्कि उन चीनी निवेशकों को ऐसी श्रेणी में डाल रही है जो ‘असुरक्षित’ और ‘नापाक’ उद्देश्य रखते हैं। भारत लोकतांत्रिक दुनिया का अनुसरण करने के लिए मजबूत मिसाल कायम कर रहा है।

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उदाहरण के लिए, बेहद लोकप्रिय मोबाइल गेम पबजी। अब तक, गेमिंग ऐप को वास्तव में एक ‘असुरक्षित’ चीनी ऐप के रूप में नहीं देखा गया था। इसका कारण यह है कि गेम को चीनी टेक दिग्गज टेनसेंट गेम डेवलपर्स द्वारा कोडित और समर्थित किया गया था, इसे पबजी कॉर्पोरेशन द्वारा विकसित किया गया था।

लेकिन हाल में ऐसी रिपोर्टें थी कि मोदी सरकार पबजी सहित अन्य 275 चीनी ऐप्स की नकेल कसने वाली है। इसके पीछे सुरक्षा चिंताएं, गोपनीयता बड़ा मुद्दा हैं। इस तरह की रिपोर्टों से उक्त ऐप्स में हड़कंप मचा हुआ है और पबजी ने मोदी सरकार के कोप से बचने के लिए एक नई गोपनीयता नीति बनाई है।

संशोधित गोपनीयता नीति में कहा गया है कि पबजी मोबाइल के अपने भारतीय प्लेयर्स से एकत्रित किए गए सभी डेटा को देश के भीतर स्थानीय सर्वर पर इकट्ठा करेगा। लेकिन पबजी सिर्फ एक उदाहरण है। भारत लगातार यह संकेत दे रहा है कि एक पर्याप्त चीनी निवेश वाली कंपनी एक ‘स्वच्छ’ कंपनी नहीं है, भले ही वह कंपनी चीन आधारित न हो। इसलिए, इस साल की शुरुआत में भारत ने चीन पर नजर रखने के साथ अपने एफडीआई नियमों को कड़ा किया।

दिलचस्प बात यह है कि संशोधित एफडीआई मानदंड न केवल राज्य-संचालित निगमों और निजी कंपनियों पर लागू होते हैं, बल्कि भारत में निवेश के ‘लाभकारी मालिकों’ पर भी लागू होते हैं। इसलिए, भले ही चीन के बाहर स्थित एक कंपनी भारत में निवेश करना चाहती है, लेकिन इसके लाभकारी मालिक, जो कि अकेले या एक साथ शेयरधारक ऐसे निवेशों पर पर्याप्त नियंत्रण का आनंद लेते हैं, चीन में स्थित हैं, तो ये नवीनतम प्रतिबंध के दायरे में आएंगे। इस तरह के निवेश को सरकारी नियंत्रण से गुजरना होगा।

हाल में, भारत ने दूरसंचार क्षेत्र की दिग्गज कंपनी हुआवेई, ई-कॉमर्स की दिग्गज कंपनी अलीबाबा और टेनसेंट सहित सात चीनी कंपनियों की पहचान की जिनके चीनी सेना के साथ प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष संबंध हैं। एक तरफ गैर-चीनी कंपनियों के बीच एक स्पष्ट अंतर किया जा रहा है और ऐसी कंपनियां जो चीनी हैं या उनमें चीनी निवेश हैं। इसका संदेश स्पष्ट है – यदि आपके पास चीनी निवेश है, तो आप ‘साफ’ नहीं हैं, भले ही आप चीन से बाहर स्थित हों।

भारत, ‘फ्री वर्ल्ड’ का विचार दे रहा है और अमेरिका ने पहले ही इस रास्ते पर चलना शुरू कर दिया है। इसलिए, अमेरिकी विदेश मंत्री ने भारत में जियो, ऑस्ट्रेलिया में टेल्स्ट्रा, दक्षिण कोरिया में एसके और केटी, जापान में एनटीटी के लिए ‘क्लीन कैरियर्स’ शब्द का भी उपयोग किया है। वे दूरसंचार कंपनियों के लिए इस शब्दावली का उपयोग कर रहे थे, जिन्होंने ‘अपने नेटवर्क में हुआवेई उपकरणों के उपयोग को प्रतिबंधित किया है।’

चीनी निवेशक इस प्रकार मुक्त दुनिया से अलग-थलग पड़ रहे हैं। कंपनियां समझती हैं कि यदि उनके पास एक चीनी तत्व (या निवेश) है, तो उनके साथ अपने आप ही किसी चीनी समूह की तरह व्यवहार किया जाएगा। कोई भी कंपनी विदेशी सरकार से जांच का सामना नहीं करना चाहती क्योंकि इससे वित्तीय अनिश्चितता की भावना पैदा होती है।

भारत यह स्पष्ट कर रहा है कि यदि कोई विदेशी कंपनी भारत के भीतर जांच से बचना चाहती है, तो उसे चीनी निवेश से ‘बचने’ के अर्थ में साफ रहना चाहिए। भारत की कार्रवाई भू-अर्थशास्त्र में एक नए युग की शुरुआत कर रही है।

महामारी से पहले की दुनिया में, काफी हद तक उदार आर्थिक एजेंडा धरती पर हावी था। भू-सामरिक हितों ने कभी किसी देश की व्यापारिक नीतियों को निर्देशित नहीं किया, और यहां तक कि भारत ने दोनों देशों के बीच लंबे समय से सीमा विवाद के बावजूद चीन के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध बनाए रखा। लेकिन अब चीजें बदल रही हैं। वैश्विक आपूर्ति शृंखला और व्यापारिक हितों को रणनीतिक समीकरणों द्वारा निर्धारित किया जा रहा है।

यहां तक कि दुनिया का सबसे बड़ा खुफिया नेटवर्क- अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और न्यूजीलैंड के गठबंधन ने हाल में व्यापार संबंधों के मामले में चीन पर अपनी निर्भरता को समाप्त करने और अपने रणनीतिक हितों को साथ लाने का फैसला किया है।

जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी भारत के व्यापार संबंधों को फिर से व्यवस्थित करने और अपने रणनीतिक हितों के साथ जोड़ने के लिए लोकतांत्रिक दुनिया को प्रोत्साहित कर रहे हैं, चीन पर इस प्रक्रिया का बोझ पड़ने वाला है।

न केवल चीनी कंपनियों के मुक्त दुनिया में निवेश करने की क्षमता का क्षरण हो रहा है, बल्कि चीनी निवेशकों को भी मुक्त दुनिया की व्यापारिक कंपनियों में निवेश करने से रोका जा रहा है। चीनी अर्थव्यवस्था अधिक से अधिक अलग-थलग हो रही है, और चीनी निवेशक भारत के कठोर उपायों का सबसे बड़ा शिकार होने जा रहे हैं।

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