यह लौ जलती रहे
सिक्ख गुरुओं ने इस देश की एकता, अखंडता, सद्भाव और संस्कृति के लिए बहुत बड़े बलिदान दिए हैं
गुरु गोविंदसिंहजी महाराज शस्त्र और शास्त्र दोनों के महान ज्ञाता थे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिक्ख गुरु गोविंदसिंहजी महाराज के बलिदानी पुत्रों जोरावर सिंह और फतेह सिंह की स्मृति में 'वीर बाल दिवस' मनाकर इन पुण्य आत्माओं को देश की ओर से सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की है। इक्कीसवीं सदी में यह सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि इस देश में ऐसा कालखंड भी गुजरा है, जब फूल जैसे कोमल बच्चों को एक पत्थरदिल बादशाह ने दीवार में जिंदा चुनवा दिया था! उसका शासन कितना निर्मम और कितना बेरहम रहा होगा!
सिक्ख गुरुओं ने इस देश की एकता, अखंडता, सद्भाव और संस्कृति के लिए बहुत बड़े बलिदान दिए हैं। उनमें गुरु गोविंदसिंहजी महाराज शस्त्र और शास्त्र दोनों के महान ज्ञाता थे, जिनके संदेश को आज आत्मसात करने की सर्वाधिक आवश्यकता है। निश्चित रूप से अतीत में हमसे ग़लतियां हुईं, हमारी कमियां रहीं, जिनका लाभ उठाकर ऐसे-ऐसे लोग यहां के शासक बन बैठे थे, जिन्होंने अत्याचार की पराकाष्ठा पार कर दी थी। परलोक में ईश्वरीय न्याय तो जब फलीभूत होगा, तब होगा, लेकिन संसार में उसकी झलक जरूर दिखाई देती है।जिन सिक्ख गुरुओं, वीर बालकों को आततायियों ने सताने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, आज उन (अत्याचारियों) के अंतिम स्थलों पर सन्नाटा पसरा हुआ है। वे अपने क्रूर कर्मों के कारण अपयश के भागी हो गए। जबकि उन सिक्ख गुरुओं, वीर बालकों की देश-दुनिया में जय-जयकार हो रही है। आततायी शासक जुल्म के पर्याय थे। उन्होंने जीवन छीना था। जबकि दुनियाभर में गुरुद्वारे सेवाभावना के पर्याय बन चुके हैं। यहां से कोई भूखा नहीं लौटता। ये जीवन देते हैं।
गुरु गोविंदसिंहजी महाराज ने सिक्खों को वीरता का जो मंत्र दिया, उसका लाभ संपूर्ण देश को मिला है। सिक्ख भारतीय सेना और सशस्त्र बलों की ताकत हैं, जिन्होंने सभी युद्धों में वीरता की एक से बढ़कर एक मिसाल कायम की हैं।
यह दु:खद है कि आज़ादी के बाद हम आज़ादी का भारतीयकरण नहीं कर पाए; बलिदानियों और वीरों को उचित सम्मान नहीं दे पाए। आश्चर्य होता है कि जिन शासकों/आक्रांताओं ने यहां अत्याचार किए, उनके नाम पर सड़कों, मोहल्लों, गांवों और शहरों तक के नाम हैं! संसार में इतने उदार हम ही हैं कि जिन्होंने हमारे पूर्वजों को मारा, सताया; हमारे ही देश में उनकी 'गाथा' गाई जाती है। हम इस मामले में इज़राइल से बहुत कुछ सीख सकते हैं, जिसके पूर्वज सदियों-सदियों तक अत्याचार से जूझते रहे, लेकिन उन्होंने अपने बलिदानियों, वीरों को नहीं भुलाया।
इज़राइल ने आधुनिक विज्ञान को अपनाया, लेकिन अपनी संस्कृति को नहीं छोड़ा। वहां कोई इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकता कि जिन्होंने यहूदियों का नरसंहार किया था, उनके नाम पर सड़कों का नामकरण कर दिया जाए! हमें चाहिए कि आक्रांताओं और अत्याचारियों के नाम पर ऐसी जो भी निशानियां हैं, वहां बलिदानियों, वीरों, वीरांगनाओं, स्वतंत्रता सेनानियों, महापुरुषों आदि के नामों की प्रतिष्ठा की जाए। यह कार्य एक दिन या कुछ वर्षों में होने वाला नहीं है। इसे धीरे-धीरे शांतिपूर्वक आगे बढ़ाते जाएं। इसके लिए देशवासियों के मन में सांस्कृतिक चेतना की लौ जलती रहे।
अब हर साल वीर बाल दिवस मनाया जाएगा तो जोरावर सिंह और फतेह सिंह के बलिदान से लोग परिचित होंगे। इसी तरह सितंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया गेट पर महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का अनावरण किया था। उससे पहले यहां जॉर्ज पंचम की मूर्ति लगी हुई थी, जो निश्चित रूप से ब्रिटिश दासता का प्रतीक थी।
मोदी ने अक्टूबर 2018 में जब आज़ाद हिंद सरकार की 75वीं बरसी पर लालकिले पर तिरंगा फहराया तो देश में इस बात को लेकर उत्सुकता हुई। आज देशवासी नेताजी के योगदान से अधिक परिचित हैं। यह शृंखला रुकनी नहीं चाहिए। जिन्होंने इस देश और इसकी संस्कृति के लिए त्याग और बलिदान दिए हैं, उनके योगदान को सम्मान मिलना ही चाहिए। भले ही इस कार्य में कई दशक और लग जाएं, लेकिन यह लौ कभी बुझनी नहीं चाहिए।