गांव लौटें प्रतिभाएं

भारत में इंटरनेट सुलभ और सस्ता भी है तो इसमें खास दिक्कत नहीं आएगी

गांव लौटें प्रतिभाएं

केंद्र और राज्य सरकारों को चाहिए कि वे ऐसी योजनाएं बनाएं, ताकि हमारे युवा भी गांवों का रुख करें

तकनीकी रूप से काफी समृद्ध जापान ने महानगर टोक्यो से आबादी का भार कम करने के लिए जो योजना अपनाई, वह उल्लेखनीय है। इसके अनुभवों का लाभ लेकर भारत में भी इस तर्ज पर पहल की जा सकती है। हालांकि जापान और भारत के समाज में सांस्कृतिक दृष्टि से कई अंतर हैं। उनका ध्यान रखना भी जरूरी है। यूं तो जापान में जन्म दर कम होती जा रही है, लेकिन राष्ट्रीय राजधानी टोक्यो पर अत्यधिक जनभार है। लोग गांवों, कस्बों और अन्य शहरों से पलायन कर टोक्यो आ जाते हैं, ताकि बेहतर जीवन जी सकें। 

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इससे टोक्यो की आबादी साढ़े 3 करोड़ को पार कर चुकी है। अनुमान है कि यहां इसी तरह लोग आते रहे तो बहुत जल्द यह 4 करोड़ हो जाएगी। दूसरी ओर गांव खाली हो रहे हैं। कई गांव तो ऐसे हैं, जहां सिर्फ बुजुर्ग रह गए हैं। बमुश्किल कोई नौजवान मिलता है। जापानी सरकार टोक्यो से अत्यधिक जनभार को कम करने के लिए उन दंपतियों को हर संतान पर 10 लाख येन देगी, जो इस महानगर से बाहर ग्रामीण इलाकों में बसेंगे। इसके लिए कुछ शर्तें भी लगाई गई हैं, लेकिन इस योजना के दूरगामी परिणाम सकारात्मक होंगे। 

इससे एक ओर तो टोक्यो को आबादी के भारी बोझ से राहत मिलेगी, दूसरी ओर गांव आबाद होंगे, उनकी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। अगर कुछ सांस्कृतिक अंतर को नज़रअंदाज़ कर दें तो आज भारत के महानगर भी इसी तरह भारी जनभार से दबे हुए हैं। इससे यहां किराए पर मकान मिलना मुश्किल हो जाता है। परिवहन सुविधाएं सुलभ नहीं होतीं। ट्रेनों, बसों में भारी भीड़ होती है। कमाई का एक बड़ा हिस्सा तो मकान किराए और आवाजाही में ही खर्च हो जाता है।

केंद्र और राज्य सरकारों को चाहिए कि वे ऐसी योजनाएं बनाएं, ताकि हमारे युवा भी गांवों का रुख करें। निस्संदेह इसके लिए गांवों में शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य और मूलभूत सुविधाओं का इंतजाम करना होगा। आज जापान जिस नीति पर काम कर रहा है, उसमें इंटरनेट की महत्वपूर्ण भूमिका है। उसकी सरकार देश को डिजिटल गार्डन नेशन बनाना चाहती है। उक्त नीति के तहत जो युवा टोक्यो से बाहर जाकर ग्रामीण इलाकों में बस रहे हैं, वे इंटरनेट से काम कर रहे हैं। तकनीक के इस वरदान ने जापानी युवाओं के लिए संभावनाओं के कई द्वार खोल दिए हैं। 

अगर उनके कार्य की प्रकृति ऐसी है कि रोज दफ्तर आना जरूरी न हो और सभी कार्य लैपटॉप पर हो जाते हों, तो महानगर छोड़कर गांव में बसने के कई फायदे हैं। एक ओर तो दफ्तर का काम करते रहेंगे, दूसरी ओर खेतीबाड़ी या कोई अन्य रोजगार कर लेंगे। खर्चे कम और सुकून ज्यादा। महात्मा गांधी ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गांवों के स्वावलंबन पर बहुत जोर दिया था। अब समय आ गया है कि उस दर्शन को आत्मसात् किया जाए। इसके लिए सरकारें चरबद्ध ढंग से युवाओं को गांवों में बसने के लिए प्रोत्साहित करें। वे दफ़्तरों में कुछ साल व्यावहारिक अनुभव लें और अगर उनका काम ऐसा है कि इंटरनेट के उपयोग से कहीं भी कर सकते हैं तो उन्हें गांव भेजा जाए। 

चूंकि भारत में इंटरनेट सुलभ और सस्ता भी है तो इसमें खास दिक्कत नहीं आएगी। फिर युवाओं को छह-छह महीने के अंतराल पर कुछ दिनों के लिए शहर बुलाया जा सकता है। इस दौरान लोगों में मेलजोल बढ़ाया जाए। उसके बाद युवा दोबारा गांव लौट जाएं और पूर्ववत काम करें। यह प्रयोग कुछ कंपनियां शुरू करें। सरकार उनका सहयोग करे। जो नतीजे आएं, उनके आधार पर अन्य कंपनियों में इसे लागू किया जाए। इससे ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन आ सकते हैं। गांव की प्रतिभा प्रत्यक्ष रूप से गांव के विकास में भागीदार होगी। महानगरों पर दबाव कम होगा तो वहां भी आसानी होगी।

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