नानी-दोहिती की जोड़ी ने किया कमाल
नानी-दोहिती की जोड़ी ने किया कमाल
सलाई और ऊन से बुनी वह कहानी जो नई ऊर्जा देगी
.. राजीव शर्मा ..
नई दिल्ली/दक्षिण भारत। दिल्ली निवासी आशा पुरी पिछले करीब पांच दशकों से स्वेटर बुन रही हैं। जब उनकी अंगुलियां सलाई और ऊन थामकर अपने हुनर का कमाल दिखाती हैं तो एक बेहतरीन ऊनी कपड़ा अस्तित्व में आता है। अब आप पूछेंगे कि इसमें नया क्या है, प्राय: भारतीय महिलाएं स्वेटर बुनना जानती हैं। हममें से सभी को दादी, नानी, मां, मौसी, बहन या बेटी ने कभी स्वेटर बुनकर जरूर पहनाई है।दरअसल आशा पुरी के इस हुनर को पहचान मिली है इंटरनेट से और इस काम में सबसे ज्यादा सहयोग रहा उनकी दोहिती कृतिका का। साल 2017 में जब कृतिका ने नानी मां को यह सुझाव दिया कि आपके कुशल हाथों से बुनी गईं खूबसूरत स्वेटर हम सोशल मीडिया पर बेचेंगे तो उन्हें यकीन नहीं हुआ कि यह आइडिया लोगों को इतना पसंद आएगा।
कौन पहनेगा हाथों से बुने स्वेटर?
पहले तो आशा पुरी ने यह कहते हुए मना कर दिया कि इस जमाने में हाथ से बुनी स्वेटर कौन पहनता है और कौन इसके तैयार होने तक इंतजार करेगा। चूंकि बाजार में मशीनों से बुनी हुईं स्वेटर पहले ही मौजूद हैं। लेकिन कृतिका ने नानी को इसका दूसरा पहलू बताया- हाथों से स्वेटर बुनाई बहुत कम हो गई है, लेकिन बहुत लोग अब भी इस कला से प्रेम करते हैं। वे जरूर ऐसे स्वेटर खरीदना चाहेंगे। एक बार कोशिश तो करें!
बस इसी सोच के साथ शुरू हुई ‘विद लव फ्रॉम ग्रैनी’ (डब्ल्यूएलएफजी) और विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इसका अकाउंट बनाया गया। जब लोगों ने आशा पुरी द्वारा बनाए गए स्वेटर, मफलर, दस्ताने, स्कार्फ आदि की तस्वीरें देखीं तो उन्होंने संपर्क किया और ऊनी कपड़ों के ऑर्डर देने लगे।
अब 75 की उम्र में आशा पुरी अपनी दोहिती के सहयोग से सफलतापूर्वक इस प्रयास को आगे बढ़ा रही हैं। एक साक्षात्कार में कृतिका ने बताया कि धीरे-धीरे ऑर्डर की संख्या बढ़ने लगी, जो आज प्रतिमाह लगभग 100 तक जा पहुंची है। ऐसे में उन्होंने दर्जनभर महिलाओं को स्वेटर बुनने के काम पर लगाया है। इससे उन महिलाओं को भी कमाई होने लगी है।
बढ़ रहा ‘वोकल फॉर लोकल’
इस साल जब कोरोना महामारी के कारण देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा हुई तो नानी-दोहिती ने इस समय का सदुपयोग करते हुए स्वेटर बुनाई के काम का इंटरनेट के जरिए और प्रसार किया। उन्होंने नए डिजाइन, ऊन की गुणवत्ता का अध्ययन किया। अब तक देशभर में ‘स्वदेशी’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ की मुहिम शुरू हो चुकी थी।
आशा देवी के हुनरमंद हाथों के लिए इतना पर्याप्त था। इसके बाद आगे की राह तो उन्होंने खुद ही तैयार कर ली। वे इस कामयाबी का श्रेय कृतिका को देती हैं जिन्होंने इस लुप्त होती कला में इंटरनेट के जरिए जान फूंकी और दमदार तरीके से पेश किया।
कृतिका उच्च शिक्षित हैं और उन्हें तकनीक सहित देश-दुनिया की जानकारी है लेकिन वे भी नानी से स्वेटर बुनने की कला सीख रही हैं। वे बचपन की यादों को ताजा करते हुए बताती हैं कि नानी सबके लिए ऊनी कपड़े बुनती रही हैं। ये कपड़े सिर्फ ऊन और सलाई की कारीगरी ही नहीं हैं, बल्कि इनमें प्यार, स्नेह और अपनापन भी छिपा है। अगर इन सबको एक नाम दिया जाए तो वह है ‘विद लव फ्रॉम ग्रैनी’।
धैर्य बहुत जरूरी
कृतिका ने बताया कि इस काम में धैर्य बहुत जरूरी होता है। शुरुआत में बहुत कम लोगों ने दिलचस्पी दिखाई। इसके बाद उनकी संख्या बढ़ने लगी। इस बीच कृतिका भारत में ही एक अमेरिकन कंपनी में जॉब करने लगीं। वहां काम के साथ अनुभव हासिल किया।
यह मार्च 2020 था जब देश कोरोना महामारी से मुकाबले के लिए तैयारियों में जुटा था। तब कृतिका ने ‘विद लव फ्रॉम ग्रैनी’ को आगे बढ़ाने का इरादा किया। देखते ही देखते उनकी टीम बढ़ती गई और उसी के साथ बढ़ता गया कंपनी का कद।
कृतिका कहती हैं कि स्वेटर बुनाई का ज्यादातर काम ‘वर्क फ्रॉम होम’ के सिद्धांत पर होता है। टीम के सदस्यों को ऊन और जरूरी सामान मुहैया करा दिया जाता है। वे मोबाइल फोन के जरिए संपर्क में रहते हैं। जब स्वेटर बनकर तैयार हो जाता है तो इसे ग्राहक तक पहुंचा दिया जाता है। इस काम से टीम के सदस्यों को आमदनी होती है और स्वेटर बुनाई की कला को भी नए आयाम मिलते हैं।
प्रगति का मूलमंत्र
कंपनी छोटे बच्चों से लेकर हर उम्र के लोगों के लिए ऊनी कपड़े तैयार करती है। टीम में एक पुरुष सदस्य भी हैं जो पेशे से डेंटिस्ट हैं लेकिन स्वेटर बुनना जानते हैं और इस काम में रुचि काफी रखते हैं। कृतिका ‘विद लव फ्रॉम ग्रैनी’ का सोशल मीडिया के अलावा विभिन्न एनजीओ और व्यावसायिक मंचों तक विस्तार करना चाहती हैं ताकि इस कला का और प्रसार हो, साथ ही ज्यादा लोगों को रोजगार मिले। वे इस बात को लेकर विश्वास जताती हैं कि मेहनत, लगन, गुणवत्ता और विश्वास के मूलमंत्र से कंपनी को आगे बढ़ाने का प्रयास जारी रखेंगी।