नौकरी क्लर्क की, परीक्षा दी पीएचडी धारकों ने
नौकरी क्लर्क की, परीक्षा दी पीएचडी धारकों ने
चेन्नई। सरकारी नौकरी के लिए खींचतान भरे दौर में पीएचडी और एमफिल डिग्री धारक टाइपिस्ट और लिपिक स्तर की नौकरी के लिए परीक्षा दे रहे हैं। तमिलनाडु लोक सेवा आयोग (टीएनपीएससी) की परीक्षा में यह चौंकाने वाला चलन सामने आया।टाइपिस्ट, ग्रामीण प्रशासनिक अधिकारी (वीएओ) और स्टेनोग्राफर पद के लिए आयोजित परीक्षा में यहां २० लाख परीक्षार्थियों में से ९९२ पीएचडी डिग्रीधारी, २३ हजार एमफिल डिग्रीधारी, २.५ लाख स्नातकोत्तर और ८ लाख स्नातक छात्र शामिल थे। टीएनपीएससी के डेटा के अनुसार, करीब १९.८३ लाख परीक्षार्थियों ने परीक्षा दी। हैरान करने वाली बात यह है कि इस परीक्षा के लिए योग्यता केवल दसवीं पास थी लेकिन परीक्षा में ग्रैजुएट छात्रों की संख्या ने बारहवीं और दसवीं पास को भी पीछे छो़ड दिया। टीएनपीएससी के तहत ४९४ वीएओ, ४३४९ कनिष्ठ सहायक और बिल कलेक्टर, २३० क्षेत्र सर्वेक्षक और ड्राफ्टमैन, ३,४६३ टाइपिस्ट और ८१५ स्टनॉग्रफर के पदों के लिए परीक्षा हुई। सभी चतुर्थ श्रेणी के पद के लिए ५ हजार से २० हजार रुपए की बेसिक पे स्केल की पेशकश की जा रही है। उच्च सरकारी अधिकारियों के अनुसार इतनी ब़डी संख्या में उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों द्वारा चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी पद के लिए आयोजित होने वाली परीक्षा में शामिल होने से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि निजी क्षेत्र की नौकरियों में कमी आई है। इसके साथ ही सरकारी नौकरियों को लेकर किसी प्रकार की अनिश्चितता नहीं होना भी इसका एक ब़डा कारण है कि लोग इसके लिए इतनी ब़डी संख्या में आवेदन दे रहे हैं। हाल ही में पुलिस कांस्टेबल के चयन के लिए ली गई परीक्षा में कुछ ऐसा नजरा देखने के लिए मिला था। इस परीक्षा में भी शैक्षणिक योग्यता महज दसवीं पास थी लेकिन इसके लिए ४ हजार स्नातक और करीब ५०० स्नातकोत्तर छात्रों ने आवेदन दिया था। विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रकार का चलन न सिर्फ तमिलनाडु बल्कि अन्य राज्यों में भी देखने को मिल रहा है। देश में स्नातक और स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों की संख्या बढ रही है। हालांकि शैक्षणिक गुणवत्ता के अभाव मंे काफी संख्या में युवक बेरोजगार हैं। यह भी एक ब़डा कारण है कि छोटे पदों के लिए भी स्नातक या उससे अधिक की शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों द्वारा आवेदन दिया जा रहा है। शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को शैक्षणिक संस्थानोें की गुणवत्ता बढाने पर ध्यान देना चाहिए अन्यथा इस प्रकार की समस्या का समाधान होना संभव नहीं है।