भ्रष्टाचार पर सुप्रीम सख्ती
भ्रष्टाचार पर सुप्रीम सख्ती
आम धारणा है कि निचली अदालतों में बहुत अधिक भ्रष्टाचार है और जैसे-जैसे ऊपर की अदालतों में जाते हैं, भ्रष्टाचार कम होता जाता है। यह भी माना जाता है कि देश की सबसे ऊंची अदालत सुप्रीम कोर्ट भ्रष्टाचार से मुक्त है। लेकिन क्या वाकई ऐसा है? प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सरकार में कानून मंत्री रह चुके और देश के अग्रणी वकीलों में गिने जाने वाले शांतिभूषण ने सात वर्ष पहले सुप्रीम कोर्ट में ही आरोप लगाया था कि देश के कम-से-कम आठ मुख्य न्यायाधीश भ्रष्ट थे। सुप्रीम कोर्ट ने संवेदनशीलता दिखाते हुए उन पर अवमानना का अभियोग नहीं लगाया। सुप्रीम कोर्ट भ्रष्टाचार के मामले में आज भी बेहद संवेदनशील है। वर्ष २००५ में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल और सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट में कहा गया था कि ५९ प्रतिशत भारतीयों ने वकीलों को, पांच प्रतिशत ने जजों को और ३० प्रतिशत ने अदालत के कर्मचारियों को रिश्वत दी थी। जब जम्मू-कश्मीर से संबंधित अंश को वहां के अंग्रेजी अखबार ग्रेटर कश्मीर ने छाप दिया तो उस पर अदालत की अवमानना का मुकदमा दायर कर दिया गया। इस वर्ष फरवरी में इसकी सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अदालतों में भ्रष्टाचार के बारे में लोगों की राय को अखबार में छापना अदालत की अवमानना नहीं है। इसी दिशा में आगे कदम ब़ढाते हुए बृहस्पतिवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक असाधारण फैसला लिया और उस मुकदमे की सुनवाई के लिए एक पांच-सदस्यीय संविधान पीठ गठित करने का निर्देश दिया जिसमें हाईकोर्ट के एक अवकाश प्राप्त जज के ऊपर भ्रष्टाचार का आरोप है।जैसा कि ट्रांसपेरेंसी इन्टरनेशनल ने भी कहा है, भारतीय अदालतों में भ्रष्टाचार के तीन कारण हैं। पहला कारण तो यह है कि यहां न्याय प्रक्रिया बेहद लंबी और जटिल है, पुराने और नए बन रहे कानूनों की संख्या बहुत अधिक है और जजों की संख्या बहुत कम है। नतीजतन मुकदमे दशकों तक चलते रहते हैं। ऐसे में लोग दलालों और बिचौलियों की मदद लेते हैं ताकि मुकदमे की सुनवाई में तेजी आए और जल्दी फैसला हो। निचली अदालतों में हर काम का रेट तय है। मसलन जिस मुकदमे की बारी आ गई है, उसकी आवाज लगाने वाले को पैसा देना प़डता है वरना वह बिना आवाज लगाए ही अंदर जाकर कह देगा कि वादी या प्रतिवादी आए ही नहीं हैं और मुकदमा खारिज हो जाएगा या जज बिना एक पक्ष को सुने एक्स-पार्टी यानि एकतरफा फैसला दे देगा। यदि सुप्रीम कोर्ट अदालतों में फैले भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के प्रयास जारी रखेगा तो लोगों का अदालतों में विश्वास ब़ढेगा। भ्रष्टाचार में कमी आने से अदालतों की स्वतंत्रता अधिक मजबूत हो सकेगी।