द ब्रदरहुड सेंसर बोर्ड में फंसी

द ब्रदरहुड सेंसर बोर्ड में फंसी

नई दिल्ली। न्यूड और एस दुर्गा जैसी फिल्मों को लेकर पैदा हुए विवाद के बाद अब बिसाह़डा कांड की पृष्ठभूमि में सांप्रदायिक सद्भाव को प्रोत्साहित करती एक फिल्म द ब्रदरहुड भी सेंसर बोर्ड में फंस गई है। सेंसर बोर्ड जहां फिल्म के तीन दृश्यों पर कैंची चलाने का निर्देश दे चुका है तो वहीं फिल्म निर्माता का कहना है कि यही तीन दृश्य फिल्म की जान हैं । फिल्म यह दिखाने का प्रयास करती है कि ग्रेटर नोएडा के दो गांवों में एक ही गोत्र के लोग रहते हैं जबकि एक गांव के लोग मुस्लिम समुदाय से तो एक हिंदू समुदाय से ताल्लुक रखते हैं । फिल्म बताती है कि अखलाख हत्याकांड जैसे दुर्भाग्यपूर्ण हादसे से यहां के सामाजिक ताने-बाने पर कोई असर नहीं प़डा है। यहां के लोग इसे केवल राजनीति करार देते हैं। डाक्यूमेंट्री के निर्माता और पत्रकार पंकज पाराशर ने भाषा को बताया कि फिल्म के तीन दृश्यों को काटने के सेंसर बोर्ड के निर्देश को हमने सेंसर ट्रिब्यूनल में चुनौती दी है और अब सप्ताह दस दिन में तारीख लगने की संभावना है। हम सारे प्रमाण और तथ्यों से ट्रिब्यूनल को अगवत कराएंगे।पाराशर ने फिल्म की पृष्ठभूमि और विषय वस्तु के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह फिल्म बिसाह़डा गांव में अखलाक हत्याकांड (दादरी लिंचिंग केस) के बाद पैदा हुए हालातों से शुरू होती है और ग्रेटर नोएडा क्षेत्र के दो गांवों घो़डी बछे़डा और तिल बेगमपुर के ऐतिहासिक रिश्तों को पेश करती है। वह बताते हैं कि घो़डी बछे़डा गांव में भाटी गोत्र वाले हिन्दू और तिल बेगमपुर गांव में इसी गोत्र के मुस्लिम ठाकुर हैं। लेकिन घो़डी बछे़डा गांव के हिन्दू तिल बेगमपुर गांव के मुसलमानों को ब़डा भाई मानते हैं। मतलब, एक हिन्दू गांव का ब़डा भाई मुस्लिम गांव है। पंकज पाराशर ने बताया कि बोर्ड को आपत्ति है कि हिन्दुओं और मुसलमानों के गोत्र एक नहीं हो सकते हैं और फिल्म से यह बात हटाइए। दूसरी आपत्ति फिल्म के उस दृश्य को लेकर है जिसमें ग्रेटर नोएडा के खेरली भाव गांव में २ अप्रैल २०१६ को एक मस्जिद की नींव रखी गई। मंदिर के पंडित ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ मस्जिद की नींव रखी। कार्यक्रम में सैक़डों लोग शामिल हुए थे।

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