समृद्ध होगा लोकतंत्र

साल 2019 के आम चुनावों की बात करें तो मतदान प्रतिशत लगभग 67 प्रतिशत रहा

समृद्ध होगा लोकतंत्र

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की क्षमता इससे कहीं ज्यादा है

निर्वाचन आयोग द्वारा ‘रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन’ (आरईवीएम) का शुरुआती मॉडल तैयार कर इसके प्रदर्शन के लिए राजनीतिक दलों को आमंत्रित करना स्वागत-योग्य है। अगर यह प्रयास सफल होता है तो भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में क्रांतिकारी सिद्ध होगा। निश्चित रूप से इसमें समस्याएं आएंगी, सवाल भी उठेंगे, लेकिन उम्मीद है कि चुनाव आयोग समयानुसार उनका समाधान कर लेगा, उचित जवाब मुहैया कराएगा। 

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जब देश में चुनावी बिगुल बजता है तो आयोग की कोशिश होती है कि पात्र मतदाताओं में से ज्यादा से ज्यादा अपने मताधिकार का उपयोग करें। इस प्रक्रिया पर भारी व्यय होता है, काफी संसाधन लगते हैं। फिर भी मतदान प्रतिशत आशानुकूल नहीं बढ़ता। साल 2019 के आम चुनावों की बात करें तो मतदान प्रतिशत लगभग 67 प्रतिशत रहा। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की क्षमता इससे कहीं ज्यादा है। इस आंकड़े का सीधा-सा अर्थ यह है कि चुनाव आयोग के भरसक प्रयासों और प्रोत्साहन के बावजूद करोड़ों मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग ही नहीं किया। 

इसकी वजह ढूंढ़ना मुश्किल नहीं है। देश में करोड़ों मतदाता ऐसे हैं, जो पढ़ाई, रोजगार या पारिवारिक वजहों से उस जगह नहीं रहते, जहां वे पंजीकृत हैं। हालांकि लोगों में जागरूकता भी आई है। वे मतदान करना चाहते हैं, लेकिन परिस्थितियों के कारण ऐसा नहीं कर पाते। मतदान के लिए दूर-दूराज के इलाकों से लौटना, फिर वापस जाना ... यह सब बहुत खर्चीला भी है। 

उदाहरण के लिए, अगर कोई मतदाता चेन्नई में नौकरी करता है और उसका मतदान केंद्र उत्तराखंड के सुदूर गांव में स्थित है, तो उसे मतदान के लिए वहां तक पहुंचने में बहुत संसाधन खर्च करने होंगे। यात्रा में समय भी लगेगा। इसके लिए दफ्तर से कुछ दिनों की छुट्टियां मिलना आसान नहीं होगा। ऐसे में मतदाता यही सोचकर संतोष कर लेता है कि भविष्य में संभव होगा तो वह जरूर जाएगा।

इस तरह करोड़ों मतदाता लोकतंत्र में अपना कर्तव्य निभाने से वंचित रह जाते हैं। आज जब हमारे पास आधुनिक तकनीक मौजूद है तो उसका उपयोग करते हुए इन मतदाताओं को अपने निवास स्थान के आसपास ही मतदान की सुविधा क्यों न दे दी जाए? निश्चित रूप से यह पहल मतदान प्रतिशत बढ़ाने में प्रभावशाली सिद्ध होगी। जिस प्रवासी मतदाता को अपने मताधिकार का उपयोग करने के लिए खर्चों, छुट्टी, यात्रा आदि के बारे में सोचना पड़ता था, आरईवीएम उसके लिए बहुत आसानी कर देगी। इससे अधिक मतदाता प्रोत्साहित होंगे, जिसका नतीजा मतदान प्रतिशत में वृद्धि के रूप में दिखाई देगा। 

जब अधिकाधिक मतदाता मतदान प्रक्रिया में शामिल होंगे, तो नतीजे भी अधिक स्पष्ट आएंगे, मजबूत सरकार बनने की संभावना ज्यादा होगी। इसके दूसरे पहलू को भी देखना होगा। चूंकि जब मतदान प्रक्रिया में ईवीएम का इस्तेमाल शुरू हुआ था तो इसका कुछ राजनीतिक दलों ने विरोध किया था। आज भी जब ये दल चुनाव हार जाते हैं तो उसके लिए ईवीएम को जिम्मेदार ठहराने से नहीं हिचकते। हालांकि जब वे चुनाव जीत जाते हैं तो इसका श्रेय अपने 'नेतृत्व' को देते हैं। चुनाव हारे तो ईवीएम खराब, चुनाव जीते तो ईवीएम सही! 

इसलिए पूरी संभावना है कि आरईवीएम का विरोध होगा। इसे लोकतंत्र के लिए 'खतरा' बताया जाएगा। अब चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि वह इसमें पारदर्शिता लाए और एक-एक सवाल का जवाब सार्वजनिक कर दे। उसने इसके प्रदर्शन के लिए राजनीतिक दलों को आमंत्रित किया है, जो उचित ही है। राजनीतिक दलों को इसकी पूरी प्रक्रिया का अध्ययन करना चाहिए। अगर कहीं कोई खामी नजर आए तो उस पर सवाल भी उठाना चाहिए, ताकि उसमें सुधार किया जा सके। 

भारतीय लोकतंत्र ने आजादी के बाद संसाधनों के अभाव का वह दौर भी देखा है, जब चुनाव प्रक्रिया इतनी परिष्कृत नहीं थी। आज मतदाता ईवीएम का बटन दबाकर सरकार चुन रहा है, एक-एक सीट के आंकड़े अपने मोबाइल फोन पर देख रहा है। निस्संदेह आरईवीएम आज की जरूरत है। यह लोकतंत्र को और पुष्पित, पल्लवित और समृद्ध करेगी।

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