गिलगित में आक्रोश

सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि बहुत बड़ी तादाद में लोग पाकिस्तान को खुलकर कोस रहे हैं

गिलगित में आक्रोश

पाक ने उद्योग के नाम पर सिर्फ आतंकवाद को परवान चढ़ाया

साल 1947 में जो सब्ज़-बाग़ दिखाकर जिन्ना ने पाकिस्तान बनाया था, उसकी पोल पूरी तरह खुल चुकी है। अब आतंकवाद, महंगाई, राजनीतिक अस्थिरता, सैन्य तानाशाही और असंतोष ही इस पड़ोसी मुल्क का मुक़द्दर बन चुके हैं। इन दिनों वहां गिलगित-बाल्टिस्तान में जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। स्थानीय मीडिया पर उनके प्रसारण को लेकर पाबंदी है। 

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अलबत्ता सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि बहुत बड़ी तादाद में लोग पाकिस्तान को खुलकर कोस रहे हैं। बात यहां तक आ पहुंची है कि वे लद्दाख के साथ मिलाए जाने की मांग कर रहे हैं। इन लोगों का दुर्भाग्य है कि इन्हें ऐसे शासक मिले, जो भारत-विरोध और हिंदू-विरोध के नाम पर इनके मन में ज़हर भरते रहे और अपनी तिजोरियों का आकार बढ़ाते रहे। किसी भी सरकार ने न तो उद्योग-धंधों की परवाह की और न ही पर्यटन को विकसित करने की ओर ध्यान दिया, जिसकी वहां बहुत संभावनाएं थीं। उद्योग के नाम पर सिर्फ आतंकवाद को परवान चढ़ाया। जहां आए दिन बम फूटेंगे, वहां कौन निवेश करेगा और कौन पर्यटन के लिए आएगा? सबको अपनी सलामती चाहिए। 

आज इन सबका खामियाजा आम पाकिस्तानी भुगत रहा है। मुल्कभर में आटे की भारी कमी हो चुकी है। सरकारी मदद के नाम पर जो सस्ता आटा दिया जा रहा है, उसके लिए लोग कड़ाके की सर्दी में सुबह तीन बजे से ही कतारों में लगना शुरू हो जाते हैं। इस कोशिश में भगदड़, मारपीट तक हो रही है। कुछ लोग जान भी गंवा चुके हैं। बड़े परिवारों के लिए यह आटा नाकाफी है। 

ग्वादर इलाके में हालात बिगड़ते जा रहे हैं। 'हक दो तहरीक' की शक्ल में लोगों का गुस्सा फूटना स्वाभाविक है। इंटरनेट, बिजली आपूर्ति बंद की जा रही है। बाजार भी बंद हो रहे हैं। सुरक्षा बलों के साथ झड़पें बढ़ती जा रही हैं। सैकड़ों लोग गिरफ्तार हो चुके हैं। बीच-बीच में आतंकवादी धमाके कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा देते हैं। लोगों को यह डर सता रहा है कि बुरी तरह कर्ज में डूबी पाक सरकार कहीं उनका इलाका चीन को न बेच दे! अगर ऐसा हुआ तो उनका हाल उससे भी बदतर हो सकता है, जो ईस्ट इंडिया कंपनी के आने के बाद हुआ था।

पाक का खजाना खाली है। जब हालात बहुत ज्यादा बिगड़ जाते हैं तो उधार के डॉलर का कुछ सहारा मिल जाता है। हाल में सऊदी अरब जैसे देशों की ओर से कुछ आश्वासन जरूर मिले, लेकिन पुख्ता मदद किसी ने नहीं की, जिससे यहां आर्थिक भूचाल आना तय है। कराची, लाहौर, इस्लामाबाद जैसे शहरों में तो स्थिति यह है कि रात 8 बजे ही सभी बाजार, शॉपिंग मॉल, होटल और रेस्तरां बंद होने लगे हैं। 

दरअसल सरकार ने इस संबंध में आदेश दिया है, क्योंकि पाक में बिजली संकट गहरा गया है। बड़े शहरों में कई-कई घंटे बिजली कटौती हो रही है। गांवों और कस्बों में इससे भी बुरा हाल है। पाक सरकार अपने दफ्तरों में बिजली की बचत के लिए 20 प्रतिशत सरकारी कर्मचारियों को हफ्ते में दो दिन वर्क फ्रॉम होम पर विचार कर रही है। जो उपकरण बिजली की काफी खपत करते हैं, उन्हें दफ्तरों से हटाया जा रहा है। 

वास्तव में पाकिस्तान अपनी बदहाली के लिए खुद जिम्मेदार है। अपने अस्तित्व में आने के साथ ही इसने भारत को नुकसान पहुंचाने के जिन मंसूबों पर काम शुरू कर दिया था, उनका फल अब इसकी ओर लौटकर आ रहा है। निस्संदेह भारत माता को खंडित करने का परिणाम भुगतना ही होगा। जम्मू-कश्मीर में फौज भेजकर बड़े इलाके पर अवैध कब्जे के बाद इसने साल 1965, 1971, 1999 के युद्ध और आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए अरबों डॉलर फूंक दिए। अगर यही राशि वह अपने विकास और नागरिकों की भलाई पर खर्च करता तो उसे आज दर-दर हाथ नहीं फैलाना पड़ता, वह खुशहाल मुल्क होता। निस्संदेह उसे खुशहाली में बहुत बड़ा सहयोग भारत से मिलता। 

भारत ने तमाम चुनौतियों के बावजूद खुद को मजबूत किया। वह अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, मालदीव समेत कितने ही देशों को सहायता दे चुका है। भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई कोरोनारोधी वैक्सीन ने कई दर्जन देशों का जीवन बचाया है, जिनमें पाक भी एक है। अगर यह पड़ोसी मुल्क आतंकवाद से तौबा कर ले, भारत-विरोध एवं हिंदू-विरोध छोड़ दे, नफरती ज़िद और जुनून से बाज़ आ जाए तो अब भी उसके बचने की संभावना है। अन्यथा भविष्य में उसके टुकड़े होना तय है।

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