कांग्रेस पर मोदी का वार- जितना कीचड़ उछालोगे, उतना ही कमल खिलेगा

राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर जवाब देते हुए मोदी का संबोधन

कांग्रेस पर मोदी का वार- जितना कीचड़ उछालोगे, उतना ही कमल खिलेगा

दिन-रात खुद को खपाना पड़ेगा तो खपाएंगे, लेकिन देश की आशाओं को चोट नहीं पहुंचने देंगे

नई दिल्ली/दक्षिण भारत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर जवाब देते हुए कांग्रेस पर जमकर शब्दप्रहार किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि बीते दशकों में अनेक बुद्धिजीवियों ने इस सदन से देश को दिशा दी है, देश का मार्गदर्शन किया है। इस सदन में जो भी बात होती है, उसे देश बहुत गंभीरता से सुनता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोगों का व्यवहार और वाणी न केवल सदन, बल्कि देश को निराश करने वाले हैं। 

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प्रधानमंत्री ने कहा कि 60 साल कांग्रेस के परिवार ने गड्ढे ही गड्ढे कर दिए थे। हो सकता है कि उनका इरादा न हो, लेकिन उन्होंने किए। जब वो गड्ढे खोद रहे थे, छह दशक बर्बाद कर चुके थे, तब दुनिया के छोटे-छोटे देश भी सफलता के शिखरों को छू रहे थे।

प्रधानमंत्री ने कहा कि लोग समस्याओं का सामना कर रहे थे, लेकिन उनकी प्राथमिकताएं अलग थीं और इसलिए, क्योंकि उन्होंने कभी भी समस्याओं का स्थायी समाधान खोजने की कोशिश नहीं की। हमने पानी की समस्या को हल करने के तरीके खोजे। जल संरक्षण और जल सिंचाई जैसे हर पहलू पर ध्यान दिया। हमने लोगों को 'कैच द रेन' अभियान से जोड़ा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने बैंकों का एकीकरण इस इरादे से किया था कि गरीबों को बैंकों का अधिकार मिले, लेकिन इस देश के आधे से अधिक लोग बैंक के दरवाजे तक नहीं पहुंच पाए थे। हमने स्थायी हल निकालते हुए जन-धन बैंक खाते खोले। इसके जरिए देश के गांव तक प्रगति को ले जाने का काम हुआ है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि हमने बैंकों को प्रेरित किया और उन्हें ऑनबोर्ड किया। पिछले नौ सालों में 48 करोड़ जन-धन बैंक खाते खोले गए हैं। खरगेजी ध्यान दें कि कर्नाटक में 1.70 करोड़ जन धन बैंक खाते खोले गए हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि जन-धन, आधार और मोबाइल ... यह वो त्रिशक्ति है, जिससे पिछले कुछ वर्षों में 27 लाख करोड़ रुपए डीबीटी के माध्यम से सीधा हितधारकों के खातों में गए हैं। इससे 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक रुपया, जो किसी इको-सिस्टम के हाथों में जा सकता था, वो बच गया। अब जिनको यह पैसा नहीं मिल पाया, उनका चिल्लाना स्वाभाविक है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि विकास की गति क्या है, नीयत क्या है, दिशा क्या है, परिणाम क्या है ... यह बहुत मायने रखता है। हम जनता की प्राथमिकताओं और आवश्यकताओं के आधार पर मेहनत कर रहे हैं। दिन-रात खुद को खपाना पड़ेगा तो खपाएंगे, लेकिन देश की आशाओं को चोट नहीं पहुंचने देंगे।

तमाम दिक्कतों के बावजूद हमने 32 करोड़ से ज्यादा परिवारों को गैस कनेक्शन दिए। आजादी से लेकर 2014 तक केवल 14 करोड़ एलपीजी कनेक्शन दिए गए। कनेक्शन के लिए लोग सांसद के पास अनुशंसा के लिए जाते थे। हालांकि, हमने हर घर को एलपीजी कनेक्शन देने का फैसला किया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आधुनिक भारत के निर्माण के लिए आधारभूत संरचना, स्केल और स्पीड का महत्त्व हम समझते हैं। जब देश के नागरिकों का विश्वास बनता है तो वो लाखों-करोड़ों लोगों के सामर्थ्य में बदल जाता है। हमने लोगों को उनके भाग्य पर नहीं छोड़ा। हमने देश का आने वाला कल उज्ज्वल बनाने का रास्ता अपनाया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि 

कीचड़ उसके पास था, मेरे पास गुलाल, 
जो भी जिसके पास था, उसने दिया उछाल।

जितना कीचड़ उछालोगे, कमल उतना ही खिलेगा।

हम एक ऐसी कार्य संस्कृति को लेकर आए हैं, जो देश में मेरा-तेरा, अपना-पराया जैसे सभी भेदों को मिटाने वाली है। यह तुष्टीकरण की आशंकाओं को समाप्त कर देता है। हर योजना के जो लाभार्थी हैं, उन तक इसका शत-प्रतिशत लाभ कैसे पहुंचे हम इसे सुनिश्चित कर रहे हैं। अगर सच्ची पंथ निरपेक्षता है तो यही है और हमारी सरकार इस राह पर निरंतर आगे बढ़ रही है। 

प्रधानमंत्री ने कहा कि हम देश को विकास का एक ऐसा मॉडल दे रहे हैं, जिसमें हित धारकों को उसके सभी अधिकार मिलें। देश बार-बार कांग्रेस को नकार रहा है, लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस अपनी साजिशों से बाज नहीं आ रही है। जनता न केवल उनको देख रही है, बल्कि सजा भी दे रही है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर कांग्रेस ने आदिवासियों के कल्याण के प्रति समर्पण भाव से काम किया होता तो हमको इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती। यह अटलजी की ही सरकार थी, जिसमें पहली बार आदिवासियों के लिए अलग मंत्रालय बना था।

प्रधानमंत्री ने कहा कि देश की आजादी की लड़ाई में हमारे आदिवासियों का योगदान स्वर्णिम पृष्ठों से भरा हुआ है। लेकिन दशकों तक हमारे आदिवासी विकास से वंचित रहे और विश्वास का सेतु तो कभी बन ही नहीं पाया। आदिवासियों की भावनाओं से खेलने के बजाय, इन्होंने कुछ काम किया होता तो हमको इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती।

हमने आदिवासी बच्चों के लिए 500 नए एकलव्य स्कूल स्वीकृत किए हैं। साल 2014 से पहले आदिवासी परिवारों को 14 लाख जमीन के पट्टे दिए गए थे, जबकि हमने बीते कुछ वर्षों में ही 7 लाख से अधिक पट्टे दिए हैं। 

इस देश में कृषि की सच्ची ताकत छोटे किसानों में है, लेकिन ये किसान उपेक्षित थे। इनकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं था, हमारी सरकार ने छोटे किसानों पर ध्यान केंद्रित किया। इनकी राजनीति, अर्थ नीति और समाज नीति वोटबैंक के आधार पर ही चलती थी, लेकिन हमने रेहड़ी-ठेले पटरी वालों की चिंता की।

पीएम-स्वनिधि और पीएम-विकास योजना के जरिए हमने समाज के एक बड़े वर्ग का सामर्थ्य बढ़ाने का काम किया है। मोटे अनाज की खेती करने वाले किसानों को हमने विशेष स्थान दिया। हमने यूएन को मिलेट्स ईयर के लिए लिखा। जैसे 'श्री फल' का महात्म्य है, वैसे ही 'श्री अन्न' का महात्म्य है। इससे मेरे छोटे किसान को बहुत लाभ मिलने वाला है।

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