आतंक का 'सौदा'
बाजवा ने कहा था कि पाकिस्तानी फौज भारत से लड़ने के काबिल नहीं है
पाक के पास सैन्य दस्तों के परिवहन के लिए डीजल नहीं है
पाकिस्तान के मशहूर पत्रकार हामिद मीर ने पूर्व सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा के बारे में जो 'खुलासे' किए हैं, उससे कई लोगों को आश्चर्य हो सकता है। हामिद मीर के मुताबिक, जहां कोर कमांडरों की कॉन्फ्रेंस होती है, वहां बैठकर बाजवा ने कहा था कि 'पाकिस्तानी फौज भारत से लड़ने के काबिल नहीं है, इसलिए सुलह कर लेते हैं ... क्योंकि टैंक चलने के काबिल नहीं हैं ... सैन्य दस्तों के परिवहन के लिए डीजल नहीं है ...।'
यह तब की बात है, जब बाजवा ही पाक के सर्वेसर्वा थे। उस समय इस पड़ोसी देश की आर्थिक स्थिति इतनी खराब नहीं थी। तब बाजवा हामिद मीर समेत प्रमुख पत्रकारों के सामने यह स्वीकार कर रहे थे कि पाकिस्तान युद्ध बर्दाश्त नहीं कर सकता। पिछले एक साल में पाक की अर्थव्यवस्था तबाह हो चुकी है। उसका विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो गया है। ऐसे में युद्ध लड़ना उसके लिए बिल्कुल असंभव है।निस्संदेह बाजवा भारत-विरोधी मानसिकता से ग्रस्त हैं। वे अपने कार्यकाल में आतंकवाद को बढ़ावा देते रहे हैं, लेकिन वे पाकिस्तान की आर्थिक व सैन्य क्षमता बेहतर जानते हैं। मौजूदा हालात में कुछ सैन्य पोस्ट पर एक रात 'ठीक-ठाक' गोलाबारी का खर्च करोड़ों रुपए में होता है। अगर कोई देश संपूर्ण युद्ध की घोषणा कर दे तो उस पर भारी-भरकम खर्चा आता है।
सैन्य दस्तों को एक जगह से दूसरी जगह भेजने, टैंकों को रवाना करने, लड़ाकू विमानों की उड़ान आदि के लिए भरपूर मात्रा में ईंधन चाहिए। इसके लिए या तो पहले से पर्याप्त भंडार हो या अंतरराष्ट्रीय बाजार से ईंधन खरीदा जाए। उसका भुगतान डॉलर में करना होता है।
उसके बाद गोला-बारूद पर हर घंटे के हिसाब से भारी खर्चा आता है। फौज को आपूर्ति नियमित होती रहे, इसके लिए अतिरिक्त सामग्री चाहिए। जब युद्ध होता है तो सैनिक घायल होते हैं, उनकी जान भी जाती है। उनके उपचार का खर्च और परिजन को मुआवजा आदि देना होता है।
पाकिस्तान आज इस स्थिति में बिल्कुल नहीं है कि एक दिन भी युद्ध लड़ सके। उसके कुछ अति-उत्साही नेता यह कहते रहते हैं कि उनके पास 'जज्बा' है, लेकिन आज के युद्ध कोरे जज्बे से नहीं लड़े जा सकते। अगर सैनिक की बंदूक खाली हो, टैंक के पुर्जे न हों, गोला-बारूद पर्याप्त न हो और ईंधन खरीदने के लिए डॉलर न हों तो यह जज्बा किसी काम नहीं आता।
पाकिस्तान के वर्तमान सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर भी इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि उनका देश युद्ध लड़ने की स्थिति में बिल्कुल नहीं है। इसलिए वे आतंकवादी तैयार कर भारत की ओर भेजते रहते हैं। इस पर ज्यादा रुपए भी खर्च नहीं होते। बस, किसी भी कट्टरपंथी का भारत-विरोध के नाम पर ब्रेनवॉश कर दें और बंदूक थमाकर एलओसी की ओर धकेल दें। फिर उसके साथ जो होगा, वह खुद भुगते।
ऐसे ज्यादातर आतंकवादियों को एलओसी पर भारतीय सेना मार गिराती है। ये आतंकवादी जिनके उकसावे पर बंदूक उठा लेते हैं, वे उनका शव उठाने भी नहीं आते। कुल मिलाकर आतंक का यह 'सौदा' पाकिस्तानी फौज को ज्यादा महंगा नहीं पड़ता, क्योंकि आतंकवादी के मारे जाने के बाद उसके परिवार को न तो कोई मुआवजा दिया जाता है, न कोई सरकारी सुविधा और न पेंशन।
अगर भारत की जवाबी कार्रवाई में कोई पाकिस्तानी सैनिक मारा जाता है तो वह उस देश के खजाने पर बहुत भारी पड़ता है। इसलिए बाजवा ने कोई बड़ा रहस्योद्घाटन नहीं किया, लेकिन हामिद मीर ने उनके बयान को सार्वजनिक कर अपनी ही फौज की उस कृत्रिम छवि पर चोट जरूर कर दी, जिसकी कई लोग कल्पना भी नहीं कर सकते थे।
एक आम पाकिस्तानी इस बात को जितनी जल्दी समझ ले, उतना ही बेहतर है, क्योंकि आज उनके देश की जो दुर्गति हो रही है, उसके लिए उनकी फौज और आतंकवादी जिम्मेदार हैं।