गौरव का स्थान

डोभाल का नाम उन लोगों में शुमार है, जो नपे-तुले शब्द बोलते हैं, लेकिन उनके मायने गहरे होते हैं

गौरव का स्थान

भारत ने अफगानिस्तान, इराक समेत कई इस्लामी देशों को मुश्किल वक्त में सहायता भी पहुंचाई है

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल का इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में एक कार्यक्रम में यह कहना अत्यंत प्रासंगिक है कि भारत उन संस्कृतियों और धर्मों का मिलन केंद्र रहा है, जो सदियों से सद्भाव के साथ सह-अस्तित्व में हैं तथा देश में धार्मिक समूहों के बीच इस्लाम का अनूठा और महत्त्वपूर्ण गौरव का स्थान है। 

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डोभाल का नाम उन लोगों में शुमार है, जो नपे-तुले शब्द बोलते हैं, लेकिन उनके मायने गहरे होते हैं। जब उन्होंने यह टिप्पणी की, तब भारत दौरे पर आए ‘मुस्लिम वर्ल्ड लीग’ के महासचिव शेख डॉ. मोहम्मद बिन अब्दुल करीम अल-इस्सा भी मौजूद थे। उन्होंने अल-इस्सा की प्रशंसा करते हुए भारत और सऊदी अरब के बीच उत्कृष्ट संबंधों को सराहा। 

डोभाल के ही शब्दों में- ‘हमारे नेता भविष्य के लिए एक समान दृष्टिकोण साझा करते हैं और एक-दूसरे के साथ निकटता से बातचीत कर रहे हैं।’ 

वास्तव में भारत की यह नीति रही है कि सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध हों। जब नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने थे तो इस बात को लेकर खूब दुष्प्रचार किया गया कि अब इस्लामी देशों के साथ भारत के संबंधों में कड़वाहट आ सकती है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। अगर पाकिस्तान को छोड़ दें, जिसके साथ पहले भी मधुर संबंध नहीं थे, तो लगभग सभी इस्लामी देशों के साथ भारत के संबंध और मधुर हुए हैं। 

यूएई, बहरीन, सऊदी अरब, मालदीव आदि ने तो मोदी को विशिष्ट सम्मान दिए हैं। हाल में मिस्र ने भी उनका भव्य स्वागत करते हुए 'ऑर्डर ऑफ द नील' से सम्मानित किया। आगामी लोकसभा चुनाव तक कुछ और इस्लामी देश उन्हें इसी तरह विशिष्ट सम्मान से विभूषित करें तो इसमें आश्चर्य की बात नहीं होगी। 

इन इस्लामी देशों में कई तो ऐसे हैं, जहां रोजगार के सिलसिले में बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं। वे उन देशों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। साथ ही हमारे विदेशी मुद्रा भंडार को समृद्ध व शक्तिशाली बना रहे हैं।

भारत ने अफगानिस्तान, इराक समेत कई इस्लामी देशों को मुश्किल वक्त में सहायता भी पहुंचाई है। इन सभी देशों में भारतीय भाषाओं, फिल्मों, पकवानों, पहनावे को बहुत पसंद किया जाता है। इन देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों को और मधुर बनाना इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि इन दिनों सोशल मीडिया पर भारत के बारे में बहुत दुष्प्रचार किया जा रहा है। कुछ ताकतें इस साजिश में लगी हैं कि भारत में इस्लामी देशों से आने वाले निवेश को रोका जाए। 

वे कश्मीर के संबंध में बहुत भ्रम फैला रही हैं। इंटरनेट पर ऐसी सामग्री की भरमार है, जिसमें ये झूठे दावे किए जा रहे हैं कि कश्मीर में चौबीसों घंटे कर्फ्यू लगा रहता है, वहां किसी को धार्मिक स्वतंत्रता नहीं है, हर घर के सामने भारतीय सैनिक खड़े हैं ...! ज

बकि सच्चाई यह है कि ऐसी कोई स्थिति नहीं है। आज जम्मू-कश्मीर शांति और प्रगति के पथ पर आगे बढ़ता जा रहा है। वहां इस्लामी देशों से निवेश आ रहा है। सऊदी, यूएई जैसे समृद्ध इस्लामी देशों में स्थित कंपनियों में शीर्ष पदों पर भारतीय बैठे हैं। वहां वे बहुत प्रभावशाली भूमिका में हैं। इन देशों के साथ मधुर संबंधों का लाभ कर्मचारियों के परिवारों और समग्र अर्थव्यवस्था को मिल रहा है। वहां भारतीय कर्मचारियों को काफी प्रतिभाशाली, मेहनती और ईमानदार माना जाता है। जबकि पाकिस्तानियों के मामले में स्थिति ठीक उलट है। 

उनकी शिक्षा में गुणवत्ता का अभाव होता है, इसलिए प्राय: उन्हें शीर्ष पदों पर नियुक्त नहीं किया जाता। वहां गंभीर अपराधों के कारण जेल और अदालतों के चक्कर लगाने वाले पाकिस्तानियों की भरमार है। उनके आतंकी गतिविधियों में लिप्त रहने की भी आशंका रहती है। 

पाक को अलग-थलग करने के लिए भी जरूरी है कि भारत तथा इस्लामी देशों के बीच संबंध और मधुर हों। डोभाल ने अपने उक्त भाषण में इस्लामिक सहयोग संगठन (जिसकी धमकी पाक अक्सर देता रहता है) को भी स्पष्ट कह दिया कि भारत की मुस्लिम आबादी उसके 33 से अधिक सदस्य देशों की संयुक्त आबादी के लगभग बराबर है!

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