इतिहास रचेगा चंद्रयान-3
धुएं का गुबार छोड़ते हुए रॉकेट आकाश की ओर रवाना हुआ तो आस-पास का इलाका जयघोष से गूंज उठा
आज देश की सुरक्षा में अंतरिक्ष विज्ञान की भूमिका बहुत बढ़ गई है
ऐतिहासिक क्षण ... चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण हो गया। हमारे वैज्ञानिकों को बधाई, समस्त देशवासियों को बधाई! चंद्रयान-3 अपनी मंजिल की ओर बढ़ता जा रहा है। सबको इसके इतिहास रचने की उम्मीद है। यह ‘चंद्र मिशन’ साल 2019 के ‘चंद्रयान-2’ का अनुवर्ती मिशन है। इसका लक्ष्य चंद्रमा की सतह पर लैंडर की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करना है।
जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एलवीएम3-एम4 रॉकेट के जरिए इसका प्रक्षेपण किया तो पूरा देश उत्सुकता से देख रहा था। श्रीहरिकोटा स्थित प्रक्षेपण स्थल से कुछ दूरी पर बड़ी संख्या में लोग हाथों में तिरंगा थामे उस खास पल का इंतजार कर रहे थे। 25.30 घंटे की उलटी गिनती के बाद जब दोपहर 2.35 बजे धुएं का गुबार छोड़ते हुए रॉकेट आकाश की ओर रवाना हुआ तो आस-पास का इलाका जयघोष से गूंज उठा।लोग सोशल मीडिया पर खुशियां मना रहे थे, इसरो के वैज्ञानिकों की प्रेरक कहानियां साझा कर रहे थे। निस्संदेह यह मिशन भविष्य में विभिन्न प्रकार की वैज्ञानिक खोज करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, लेकिन उससे पहले यह देशवासियों को विज्ञान और अनुसंधान के लिए बहुत प्रेरणा दे चुका है। खासतौर से किशोर और युवा अवस्था के विद्यार्थी इससे बहुत प्रेरित हैं।
अब तक उनके 'सुपर हीरो' फिल्मी अभिनेता थे, लेकिन अब वे वैज्ञानिकों में अपने आदर्श ढूंढ़ रहे हैं, उनका अनुसरण करना चाहते हैं, उन जैसा बनना चाहते हैं। सोशल मीडिया पर एक बालक के वीडियो ने कई लोगों का ध्यान आकर्षित किया, जिसमें वह कह रहा था कि अभी तक उसे नहीं पता था कि जीवन में क्या करना है ... जब उसने इसरो वैज्ञानिकों की टीम को देखा तो उसे अपना लक्ष्य मिल गया। अब वह वैज्ञानिक बनना चाहता है, देश के लिए अंतरिक्ष में नई खोज करना चाहता है।
निस्संदेह इन्हीं बच्चों में से भविष्य के वैज्ञानिक बनेंगे और जब वे अपने कार्यकाल में किसी मिशन में सफलता पाएंगे तो वहां चंद्रयान-3 का जिक्र भी जरूर होगा, जिसने उन्हें वैज्ञानिक बनने का सपना दिखाया था।
चंद्रयान-3 की पूरी टीम की इस बात को लेकर तो तारीफ होनी ही चाहिए कि उसने कड़ी मेहनत से मिशन की तैयारी की, प्रक्षेपण किया, फिर सॉफ्ट लैंडिंग करवाएगी, लेकिन उसके साथ-साथ इस बात की भी तारीफ होनी चाहिए कि जितने बजट में यह पूरा कार्य हो रहा है, उतने में तो आजकल बॉलीवुड की एक ठीक-ठाक फिल्म बनती है!
निश्चित रूप से हमारे वैज्ञानिकों ने (तुलनात्मक रूप से) कम संसाधनों के बावजूद बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की है। ‘चंद्रयान-2’ मिशन के दौरान आखिरी लम्हों में लैंडर ‘विक्रम’ पथ विचलन के कारण ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ नहीं करवा सका था। इस बार इसरो टीम ने उन तमाम पहलुओं को ध्यान में रखते हुए पर्याप्त तकनीकी उपाय किए हैं, जिससे सॉफ्ट लैंडिंग की ज्यादा संभावनाएं हैं। इसके बाद भारत अमेरिका, चीन और रूस जैसे देशों की श्रेणी में शामिल हो जाएगा, जो यह कारनामा कर चुके हैं।
इस बीच कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि धरती पर गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी, कुपोषण ... जैसी कितनी ही समस्याएं हैं, पहले उनका समाधान होना चाहिए, फिर अंतरिक्ष के बारे में सोचना चाहिए', तो उन्हें मालूम होना चाहिए कि अंतरिक्ष विज्ञान भी धरती पर मौजूद कई समस्याओं का समाधान करता है। आज अंतरिक्ष में भारत के उपग्रह मौसम की सूचना देने से लेकर डिजिटलीकरण को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। इससे कितनी सुविधाएं हुई हैं, कितने लोगों का जीवन बचाया गया है!
यह न भूलें कि आज देश की सुरक्षा में अंतरिक्ष विज्ञान की भूमिका बहुत बढ़ गई है। फिर चाहे सरहदों की निगरानी हो, सर्जिकल स्ट्राइक हो या एयर स्ट्राइक हो, इन कार्यों में अंतरिक्ष विज्ञान और उससे संबंधित अनुसंधान की बहुत जरूरत होती है।
भविष्य में धरती की तरह अंतरिक्ष में भी चुनौतियां बढ़ने वाली हैं। अगर हम इस क्षेत्र की उपेक्षा करेंगे तो बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है, इसलिए देश की सुरक्षा, स्वाभिमान और देशवासियों के कल्याण के लिए अंतरिक्ष विज्ञान में अनुसंधान को अवश्य बढ़ावा मिलना चाहिए।