'मन की बात' में क्या बोले प्रधानमंत्री मोदी?
'मन की बात' कार्यक्रम की 103वीं कड़ी में देशवासियों के साथ अपने विचार साझा किए
प्रधानमंत्री ने कहा कि बारिश का यही समय पौधे लगाने और ‘जल संरक्षण’ के लिए भी उतना ही जरूरी होता है
नई दिल्ली/दक्षिण भारत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को 'मन की बात' कार्यक्रम की 103वीं कड़ी में देशवासियों के साथ अपने विचार साझा किए। इस दौरान उन्होंने कहा कि बीते कुछ दिन प्राकृतिक आपदाओं के कारण चिंता और परेशानी से भरे रहे हैं। यमुना समेत कई नदियों में बाढ़ से कई इलाकों में लोगों को तकलीफ उठानी पड़ी है। पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन की घटनाएं भी हुई हैं। इसी दौरान देश के पश्चिमी हिस्से में, कुछ समय पूर्व गुजरात के इलाकों में, बिपरजॉय चक्रवात भी आया। लेकिन इन आपदाओं के बीच हम सब देशवासियों ने फिर दिखाया है कि सामूहिक प्रयास की ताकत क्या होती है। स्थानीय लोगों, एनडीआरएफ के जवानों, स्थानीय प्रशासन के लोगों ने, दिन-रात लगाकर ऐसी आपदाओं का मुकाबला किया है। किसी भी आपदा से निपटने में सामर्थ्य और संसाधनों की भूमिका बड़ी होती है, लेकिन इसके साथ ही हमारी संवेदनशीलता और एक-दूसरे का हाथ थामने की भावना, उतनी ही अहम होती है। सर्वजन हिताय की यही भावना भारत की पहचान भी है और भारत की ताकत भी है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि बारिश का यही समय पौधे लगाने और ‘जल संरक्षण’ के लिए भी उतना ही जरूरी होता है। आजादी के ‘अमृत महोत्सव’ के दौरान बने 60 हजार से ज्यादा अमृत सरोवरों में भी रौनक बढ़ गई है। अभी 50 हजार से ज्यादा अमृत सरोवरों को बनाने का काम चल भी रहा है। हमारे देशवासी पूरी जागरूकता और जिम्मेदारी के साथ ‘जल संरक्षण’ के लिए नए-नए प्रयास कर रहे हैं। आपको याद होगा, कुछ समय पहले मैं मप्र के शहडोल गया था। वहां मेरी मुलाकात पकरिया गांव के आदिवासी भाई-बहनों से हुई थी। वहीं पर मेरी उनसे प्रकृति और पानी को बचाने के लिए भी चर्चा हुई थी। अभी मुझे पता चला है कि पकरिया गांव के आदिवासी भाई-बहनों ने इसे लेकर काम भी शुरू कर दिया है। यहां, प्रशासन की मदद से, लोगों ने, करीब सौ कुओं को जल पुनर्भरण प्रणाली में बदल दिया है। बारिश का पानी अब इन कुओं में जाता है और कुओं से ये पानी, जमीन के अंदर चला जाता है। इससे इलाके में भू-जल स्तर भी धीरे-धीरे सुधरेगा। अब सभी गांव वालों ने पूरे क्षेत्र के करीब-करीब 800 कुएं को रिचार्ज के लिए उपयोग में लाने का लक्ष्य बनाया है। ऐसी ही एक उत्साहवर्धक खबर उप्र से आई है। कुछ दिन पहले, उत्तर प्रदेश में एक दिन में, 30 करोड़ पौधे लगाने का रिकॉर्ड बनाया गया है। इस अभियान की शुरुआत राज्य सरकार ने की, उसे पूरा वहां के लोगों ने किया। ऐसे प्रयास जन-भागीदारी के साथ-साथ जन-जागरण के भी बड़े उदाहरण हैं। मैं चाहूंगा कि हम सब भी पेड़ लगाने और पानी बचाने के इन प्रयासों का हिस्सा बनें।प्रधानमंत्री ने कहा कि इस समय ‘सावन’ का पवित्र महीना चल रहा है। सदाशिव महादेव की साधना-आराधना के साथ ही ‘सावन’ हरियाली और खुशियों से जुड़ा होता है। इसीलिए, ‘सावन’ का आध्यात्मिक के साथ ही सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्व रहा है। सावन के झूले, सावन की मेहंदी, सावन के उत्सव - यानी ‘सावन’ का मतलब ही आनंद और उल्लास होता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारी इस आस्था और इन परम्पराओं का एक पक्ष और भी है। हमारे ये पर्व और परम्पराएं हमें गतिशील बनाते हैं। सावन में शिव आराधना के लिए कितने ही भक्त कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं। ‘सावन’ की वजह से इन दिनों 12 ज्योतिर्लिंगों में भी खूब श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। आपको’ ये जानकार भी अच्छा लगेगा कि बनारस पहुंचने वाले लोगों की संख्या भी रिकॉर्ड तोड़ रही है। अब काशी में हर साल 10 करोड़ से भी ज्यादा पर्यटक पहुंच रहे हैं। अयोध्या, मथुरा, उज्जैन जैसे तीर्थों पर आने वाले श्रद्दालुओं की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। इससे लाखों गरीबों को रोजगार मिल रहा है, उनका जीवन-यापन हो रहा है। ये सब, हमारे सांस्कृतिक जन-जागरण का परिणाम है। इसके दर्शन के लिए, अब तो पूरी दुनिया से लोग हमारे तीर्थों में आ रहे हैं। मुझे ऐसे ही दो अमेरिकन दोस्तों के बारे में पता चला है जो कैलिफोर्निया से यहां अमरनाथ यात्रा करने आए थे। इन विदेशी मेहमानों ने अमरनाथ यात्रा से जुड़े स्वामी विवेकानंद के अनुभवों के बारे में कहीं सुना था। उससे उन्हें इतनी प्रेरणा मिली कि ये खुद भी अमरनाथ यात्रा करने आ गए। ये इसे भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद मानते हैं। यही भारत की खासियत है कि सबको अपनाता है, सबको कुछ न कुछ देता है। ऐसे ही एक फ्रेंच मूल की महिला हैं शारलोट शोपा। बीते दिनों जब मैं फ्रांस गया था तो इनसे मेरी मुलाकात हुई थी। शारलोट शोपा एक योगाभ्यासकर्ता हैं, योग शिक्षिका हैं, और उनकी उम्र, 100 साल से भी ज्यादा है। वो शताब्दी पार कर चुकी हैं। वो पिछले 40 साल से योगाभ्यास कर रही हैं। वो अपने स्वास्थ्य और 100 साल की इस आयु का श्रेय योग को ही देती हैं। वो दुनिया में भारत के योग विज्ञान और इसकी ताकत का एक प्रमुख चेहरा बन गई हैं। इन से हर किसी को सीखना चाहिए। हम न केवल अपनी विरासत को अंगीकार करें, बल्कि उसे जिम्मेदारी से साथ विश्व के सामने प्रस्तुत भी करें। और मुझे खुशी है कि ऐसा ही एक प्रयास इन दिनों उज्जैन में चल रहा है। यहां देशभर के 18 चित्रकार, पुराणों पर आधारित आकर्षक चित्रकथाएं बना रहे हैं। ये चित्र, बूंदी शैली, नाथद्वारा शैली, पहाड़ी शैली और अपभ्रंश शैली जैसी कई विशिष्ट शैलियों में बनेंगे। इन्हें उज्जैन के त्रिवेणी संग्रहालय में प्रदर्शित किया जाएगा, यानी कुछ समय बाद जब आप उज्जैन जाएंगे, तो महाकाल महालोक के साथ-साथ एक और दिव्य स्थान के आप दर्शन कर सकेंगे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि उज्जैन में बन रही इन चित्रों की बात करते हुए मुझे एक और अनोखी पेंटिंग की याद आ गई है। ये पेंटिंग राजकोट के एक आर्टिस्ट प्रभात सिंग मोडभाई बरहाट ने बनाई थी। ये पेंटिंग छत्रपति वीर शिवाजी महाराज के जीवन के एक प्रसंग पर आधारित थी। आर्टिस्ट प्रभात भाई ने दर्शाया था कि छत्रपति शिवाजी महाराज राज्याभिषेक के बाद अपनी कुलदेवी ‘तुलजा माता’ के दर्शन करने जा रहे थे, तो उस समय क्या माहौल था। अपनी परम्पराओं, अपनी धरोहरों को जीवंत रखने के लिए हमें उन्हें सहेजना होता है, उन्हें जीना होता है, उन्हें अगली पीढ़ी को सिखाना होता है। मुझे खुशी है कि आज इस दिशा में अनेकों प्रयास हो रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि कई बार जब हम पारिस्थितिकी, वनस्पति, जीव, जैव विविधता जैसे शब्द सुनते हैं, तो कुछ लोगों को लगता है कि ये तो विशेष विषय है, इनसे जुड़े विशेषज्ञों के विषय हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। अगर हम वाकई प्रकृति प्रेम करते हैं, तो हम अपने छोटे-छोटे प्रयासों से भी बहुत कुछ कर सकते हैं। तमिलनाडु में वाडावल्ली के एक साथी हैं, सुरेश राघवन। उन्हें पेंटिंग का शौक है। आप जानते हैं, पेंटिंग कला और कैनवास से जुड़ा काम है, लेकिन राघवन ने तय किया कि वो अपनी पेंटिंग के जरिए पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं की जानकारी को संरक्षित करेंगे। वो अलग-अलग फ्लोरा और फोना की पेंटिंग बनाकर उनसे जुड़ी जानकारी का प्रलेखन करते हैं। वो अब तक दर्जनों ऐसी चिड़ियाओं की, पशुओं की, ऑर्किड्स की पेंटिंग बना चुके हैं, जो विलुप्त होने के कगार पर हैं। कला के जरिए प्रकृति की सेवा करने का ये उदाहरण वाकई अद्भुत है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने भोजपत्र की दुर्लभ प्रजातियों को संरक्षित करने के लिए भी अभियान शुरू किया है। जिन क्षेत्रों को कभी देश का आखिरी छोर माना गया था, उन्हें अब, देश का प्रथम गांव मानकर विकास हो रहा है। ये प्रयास अपनी परंपरा और संस्कृति को संजोने के साथ आर्थिक तरक्की का भी जरिया बन रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के 75 साल पूरे होने के अवसर पर हम सभी पूरे उत्साह से ‘अमृत महोत्सव’ मना रहे हैं। ‘अमृत महोत्सव’ के दौरान देश में करीब-करीब दो लाख कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है। ये कार्यक्रम एक से बढ़कर एक रंगों से सजे थे, विविधता से भरे थे। इन आयोजनों की एक खूबसूरती ये भी रही कि इनमें रिकॉर्ड संख्या में युवाओं ने हिस्सा लिया। इस दौरान हमारे युवाओं को देश की महान विभूतियों के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला। पहले कुछ महीनों की ही बात करें, तो जन-भागीदारी से जुड़े कई दिलचस्प कार्यक्रम देखने को मिले। ऐसा ही एक कार्यक्रम था – दिव्यांग लेखकों के लिए राइटर्स मीट’ का आयोजन। इसमें रिकॉर्ड संख्या में लोगों की सहभागिता देखी गई। वहीं, आंध्र प्रदेश के तिरुपति में ‘राष्ट्रीय संस्कृत सम्मलेन’ का आयोजन हुआ। हम सभी जानते हैं कि हमारे इतिहास में किलों का, फोर्ट्स का कितना महत्व रहा है। इसी को दर्शाने वाला एक अभियान ‘किले और कहानियां' भी लोगों को खूब पसंद आय।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज जब देश में चारों तरफ ‘अमृत महोत्सव’ की गूंज है, 15 अगस्त पास ही है तो देश में एक और बड़े अभियान की शुरुआत होने जा रही है। शहीद वीर-वीरांगनाओं को सम्मान देने के लिए ‘मेरी माटी मेरा देश’ अभियान शुरू होगा। इसके तहत देश-भर में हमारे अमर बलिदानियों की स्मृति में अनेक कार्यक्रम आयोजित होंगे। इन विभूतियों की स्मृति में देश की लाखों ग्राम पंचायतों, में, विशेष शिलालेख भी स्थापित किए जाएंगे। इस अभियान के तहत देश-भर में ‘अमृत कलश यात्रा’ भी निकाली जाएगी। देश के गांव-गांव से, कोने-कोने से 7500 कलशों में मिट्टी लेकर यह ‘अमृत कलश यात्रा’ देश की राजधानी दिल्ली पहुंचेगी। यह यात्रा अपने साथ देश के अलग-अलग हिस्सों से पौधे लेकर भी आएगी। 7500 कलश में आई माटी और पौधों से मिलाकर फिर राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के समीप ‘अमृत वाटिका’ का निर्माण किया जाएगा। यह ‘अमृत वाटिका’, ‘एक भारत-श्रेठ भारत का’ भी बहुत ही भव्य प्रतीक बनेगी। मैंने पिछले साल लाल किले से अगले 25 वर्षों के अमृतकाल के लिए ‘पंच प्राण’ की बात की थी। ‘मेरी माटी मेरा देश’ अभियान में हिस्सा लेकर हम इन ‘पंच प्राणों’ को पूरा करने की शपथ भी लेंगे। आप सभी, देश की पवित्र मिट्टी को हाथ में लेकर शपथ लेते हुए अपनी सेल्फी को yuva.gov.in पर जरूर अपलोड करें। पिछले वर्ष स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर ‘हर घर तिरंगा अभियान’ के लिए जैसे पूरा देश एक साथ आया था, वैसे ही हमें इस बार भी फिर से हर घर तिरंगा फहराना है और इस परंपरा को लगातार आगे बढ़ाना है। इन प्रयासों से हमें अपने कर्तव्यों का बोध होगा, देश की आजादी के लिए दिए गए असंख्य बलिदानों का बोध होगा, आजादी के मूल्य का ऐहसास होगा। इसलिए, हर देशवासी को, इन प्रयासों से जरूर जुड़ना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने कहा कि देश की आजादी के लिए मर-मिटने वालों को हमेशा याद रखना है। हमें, उनके सपनों को सच करने के लिए दिन-रात मेहनत करनी है और ‘मन की बात’ देशवासियों की इसी मेहनत को, उनके सामूहिक प्रयासों को सामने लाने का ही एक माध्यम है।