बोया पेड़ बबूल का तो ...
पाकिस्तान के पाले हुए आतंकवादियों ने उसकी ही फौज की पोस्ट पर धावा बोलते हुए चार जवानों को ढेर कर दिया
पिछले महीने बलोचिस्तान के झोब और सुई इलाकों में मुठभेड़ की अलग-अलग घटनाओं में पाक फौज के 12 जवान ढेर हो गए थे
अगर कोई इस मंशा के साथ सांप पालता है कि वह उसके पड़ोसियों को डसेगा तो उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि एक दिन वह खुद भी उसका शिकार होगा। पाकिस्तान ने दशकों पहले जो आतंकवादी शिविर लगाए, कट्टरता का पाठ पढ़ाकर जहरीली पौध तैयार की, उसकी खतरनाक फसल इन दिनों खूब गुल खिला रही है। ऐसा होना ही था। उसके खैबर पख्तूनख्वा के चित्राल जिले में जो घमासान मचा है, हाल के वर्षों में उसकी कोई मिसाल नहीं मिलती।
पाकिस्तान के पाले हुए आतंकवादियों ने उसकी ही फौज की पोस्ट पर धावा बोलते हुए चार जवानों को ढेर कर दिया, लेकिन आईएसपीआर के प्रवक्ता हकीकत बताने से कतरा रहे हैं। उधर, स्थानीय लोगों ने सोशल मीडिया पर बताया कि टीटीपी के आतंकवादियों ने चित्राल के कई गांवों पर कब्जा कर लिया है!कुछ लोगों ने तो यहां तक दावा किया कि जहां-जहां आतंकवादियों ने कब्जा किया, पुलिस और सुरक्षा बलों के जवान वहां से नौ-दो ग्यारह हो गए। अगर सच में ऐसा हुआ है तो यह पाकिस्तान सरकार, फौज और आईएसआई के लिए बहुत शर्मनाक है। क्या आप इतने बड़े-बड़े दावों के बावजूद अपने देश की संप्रभुता की रक्षा नहीं कर सकते?
टीटीपी की ओर से यह पहला हमला नहीं है। पिछले साल नवंबर में इसके द्वारा पाक सरकार के साथ संघर्ष विराम समाप्त किए जाने के बाद हाल के महीनों में, विशेष रूप से खैबर पख्तूनख्वा और बलोचिस्तान में आतंकवादी गतिविधियों में तेजी से उछाल आया है। इसका सबसे ज्यादा कहर फौज पर बरस रहा है।
22 अगस्त को दक्षिण वज़ीरिस्तान जिले में गोलीबारी में पाकिस्तान के छह जवान ढेर हो गए थे। इसी तरह पिछले महीने बलोचिस्तान के झोब और सुई इलाकों में मुठभेड़ की अलग-अलग घटनाओं में पाक फौज के 12 जवान ढेर हो गए थे। सत्य है, बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय!
पाकिस्तान सरकार, फौज और आईएसआई चित्राल जिले के गांवों पर टीटीपी के कब्जे को लेकर कुछ भी स्पष्ट कहने से बच रही हैं। अगर वे यह कहेंगी कि आतंकवादियों ने छोटे या बड़े भूभाग पर कब्जा कर लिया था तो लोगों का उन पर रहा-सहा विश्वास भी जाता रहेगा। अगर वे यह कहेंगी कि कोई कब्जा नहीं हुआ तो स्थानीय लोग सोशल मीडिया पर पोल खोल देंगे। लिहाजा चुप्पी साधे रखना ही बेहतर समझा।
टीटीपी के इस हमले के गहरे मायने हैं। पाकिस्तान की सरकार और फौज भले ही अफगानिस्तान के साथ लगती सीमा को मान्यता दें, लेकिन तालिबान इसे नहीं मानता। उसकी ओर से पहले भी कहा जा चुका है कि वह खैबर पख्तूनख्वा को अफगानिस्तान में मिलाना चाहता है। इसी कोशिश में वर्ष 2009 में स्वात के एक बड़े हिस्से पर तालिबान का कब्जा हो गया था। खबरें तो ये थीं कि तालिबान के आतंकवादी इस्लामाबाद से सिर्फ 100 किमी की दूरी पर थे। वे देर-सबेर वहां पहुंचने की कोशिश जरूर करेंगे।
जब अगस्त 2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा किया था तो सबसे ज्यादा खुशियां पाकिस्तान में मनाई जा रही थीं। उसके टीवी स्टूडियो में बैठकर कथित बुद्धिजीवी यह दावा करने लगे थे कि अब कश्मीर की ओर कूच किया जाएगा ... तालिबान के लड़ाके हमारे लिए लड़ेंगे। उसके बाद जो घटनाएं हुईं, उससे उक्त 'बुद्धिजीवी' पूरी तरह ग़लत साबित हुए। तालिबान ने पाकिस्तान पर खूब हमले किए। सरहदी इलाकों में गोलीबारी, बम धमाकों की घटनाएं बढ़ गई हैं।
थक-हारकर आईएसपीआर को अब यह कहना पड़ रहा है कि अफगान सरकार से उम्मीद की गई थी कि वह पाकिस्तान के खिलाफ आतंकवादी कृत्यों को बढ़ावा देनेवाली गतिविधियों के लिए अपनी धरती का इस्तेमाल नहीं होने देगी। इस बयान से पाक की हताशा झलकती है। अगर उसने अपनी जमीन पर आतंकवादी नहीं पाले होते और दहशत की दुकान नहीं खोली होती तो आज उसे ये दिन नहीं देखने पड़ते।
खैर, अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत! रावलपिंडी के जनरल उस फसल का आनंद लें, जिसकी खेती में उन्होंने अपने पूर्ववर्तियों के साथ मिलकर नफरत की खाद खूब छिड़की थी।