पाक में फिर 1970?

फौज और पुलिस के कर्मचारी पीएमएलएन के उम्मीदवारों के नाम पर ठप्पा लगाकर मतपत्र पेटी में डाल रहे थे!

पाक में फिर 1970?

पीटीआई समर्थित कई उम्मीदवार पहले ‘जीत’ रहे थे, लेकिन बाद में उनके ‘वोट’ चोरी कर लिए गए!

पाकिस्तान में आम चुनावों के नतीजे साल 1970 के चुनावों की याद दिलाते हैं, जिन्होंने इस पड़ोसी देश के विभाजन की नींव तैयार कर दी थी। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को जेल में डालने और कई मामलों में सजा दिलाने से जनता द्वारा उन्हें सहानुभूति मिली है। चूंकि पाक में मतपत्रों से चुनाव होता है, इसलिए मतगणना में काफी समय लगता है, लेकिन अब तक जो नतीजे आए हैं, वे इस देश के लिए खतरनाक संकेत दे रहे हैं। इसके मद्देनजर भारत को सतर्क रहना होगा, क्योंकि पाक में सियासी उथल-पुथल का कुछ असर यहां भी हो सकता है। पाक में साल 1970 के आम चुनावों में शेख मुजीबुर्रहमान की अवामी लीग याह्या खान और भुट्टो की लाख कोशिशों के बावजूद बहुत मजबूती से उभरी थी, लेकिन उन दोनों ने उन्हें सत्ता सौंपने से इन्कार कर दिया था। उसके नतीजे में पूर्वी पाकिस्तान में विद्रोह छिड़ा और बाद में भारत को हस्तक्षेप करना पड़ा था। इस बार इमरान खान को दबाने में फौज ने कोई कसर नहीं छोड़ी। जीएचक्यू ने पीएमएलएन और पीपीपी का खुलकर साथ दिया। इसके बावजूद पाकिस्तानी मीडिया यह लिखने को मजबूर है कि ‘लगातार आ रहे नतीजों के बीच पीटीआई समर्थित उम्मीदवारों ने उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन किया है।’ पाक फौज ने इमरान को रोकने के लिए पूरा जोर लगा दिया था। उन पर ताबड़तोड़ मामले दर्ज कर अदालतों के जरिए वर्षों तक जेल में रहने का इंतजाम करवा दिया। चुनावों में धांधली भी की। पीटीआई समर्थित ऐसे कई उम्मीदवार मतगणना केंद्रों से वीडियो साझा कर रहे हैं, जो पहले ‘जीत’ रहे थे, लेकिन बाद में उनके ‘वोट’ चोरी कर लिए गए। कुछ वीडियो ऐसे भी सामने आए हैं, जिनमें पीटीआई समर्थकों ने दावा किया कि मतदान के फौरन बाद पेटियां बदल दी गईं!

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एक जगह तो इस बात को लेकर बवाल हो गया कि फौज और पुलिस के कर्मचारी पीएमएलएन के उम्मीदवारों के नाम पर ठप्पा लगाकर मतपत्र पेटी में डाल रहे थे। कहीं इस बात पर हंगामा हो गया कि लोग वोट डालने गए तो उन्हें पता चला कि कोई ‘और’ व्यक्ति पहले ही उनके वोट डाल गया। निश्चित रूप से पाक फौज और आईएसआई पूरी कोशिश कर रही हैं कि इमरान के सितारे गर्दिश में चले जाएं, वे अपना जनाधार खो दें और नवाज शरीफ सत्ता में वापसी करें। हर बार की तरह पाकिस्तान के ये आम चुनाव भी रक्तरंजित रहे। कहीं सुरक्षा बलों पर हमले हुए, तो कहीं आम मतदाताओं को निशाना बनाने की घटना में दर्जनों जानें गईं। मतगणना के दिन शांगला में पुलिसकर्मियों और पीटीआई समर्थकों में खूनी झड़पें हुईं, जिनमें कम-से-कम तीन लोगों की मौतें हुई हैं। वास्तव में ये झड़पें आम लोगों में फौज और प्रशासन के प्रति गहरे आक्रोश को दर्शाती हैं। इमरान ने सत्ता में रहते हुए भले ही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर दिया था, लेकिन वे अपनी जुझारू छवि बनाने में कामयाब रहे। उन्होंने अमेरिका-विरोधी रुख अपनाया था, रूस जाकर एक तरह से यूक्रेन पर उसके हमले का समर्थन कर दिया था। उसके बाद फौज से भिड़ंत मोल ले ली थी। इससे पीटीआई समर्थकों के अलावा आम लोगों के मन में भी यह धारणा बलवती हो गई कि भ्रष्ट व क्रूर फौजी जनरलों की आंखों में आंखें डालकर बात करने का हौसला सिर्फ इमरान खान रखते हैं। फौज इमरान की लोकप्रियता से परिचित है, इसलिए वह फूंक-फूंककर कदम रख रही है। वह पीटीआई समर्थित विजयी उम्मीदवारों को पीएमएलएन के पाले में लाकर सरकार बनवा सकती है, क्योंकि उन्होंने चुनाव चिह्न छिन जाने से बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ा था। यह बहुत खतरनाक दांव हो सकता है, जिसके बाद पीटीआई समर्थक एक बार फिर सड़कों पर उतर सकते हैं। पाक में दोबारा ‘नौ मई’ की घटना हो सकती है। अभी इमरान जेल में हैं। बिना ‘नेतृत्व’ के भीड़ सड़कों पर उतरी तो फौज के लिए उसे रोकना मुश्किल होगा। पूर्वी पाकिस्तान (मौजूदा बांग्लादेश) में 1971 में विद्रोह के बेकाबू होने की एक बड़ी वजह शेख मुजीबुर्रहमान का जेल में होना भी था।

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