तथ्यों से परे
भारत आतंकवादियों के खिलाफ कोई कदम उठाता है, तो डंके की चोट पर घोषणा करता है
पाकिस्तान अतीत में ऐसे 'सबूत' गढ़ता रहा है, जो अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में नहीं टिके थे
एक ब्रिटिश अखबार द्वारा अपनी रिपोर्ट में यह दावा किया जाना कि 'हाल में पाकिस्तान में आतंकवादियों की हत्याओं का जो सिलसिला देखने को मिला, उसके पीछे भारत का हाथ है', तथ्यों से परे है। ऐसा प्रतीत होता है कि जिन लोगों ने यह रिपोर्ट लिखी, वे न तो भारतीय सैन्य परंपराओं से परिचित हैं और न ही भारतीय खुफिया एजेंसियों की कार्यप्रणाली के संबंध में कोई जानकारी रखते हैं। अगर भारत, पाकिस्तान में रहने वाले आतंकवादियों के खिलाफ कोई कदम उठाता है, तो डंके की चोट पर उसकी घोषणा करता है। भारत ने साल 2019 में बालाकोट में एयरस्ट्राइक की, तो बाद में उसकी जानकारी दुनिया को दी। साल 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक की, तो उसकी पूरी जिम्मेदारी लेते हुए प्रेसवार्ता की। भारत साल 1999 के कारगिल युद्ध और साल 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में शामिल हुआ तो उनमें अपनी भूमिका को पूरी तरह स्वीकारा। पाकिस्तान में जिन लोगों को कथित तौर पर मार गिराने का दावा किया गया है, उससे एक बात पर तो मुहर लग जाती है कि यह पड़ोसी देश आतंकवादियों का गढ़ है। वे लोग, वह भी इतनी बड़ी तादाद में पाकिस्तान में क्या कर रहे थे? उनका पेशा क्या था? क्या वे कोई आम आदमी थे? उनका पूरा रिकॉर्ड सामने है। वे आतंकवाद के पैरोकार थे। भारत लंबे अरसे से पाकिस्तान को चिट्ठियां भेजकर मांग करता रहा है कि उन पर मुकदमा चलाया जाए, उन्हें सज़ा दी जाए। इसके बावजूद वे पाकिस्तान में आजाद घूम रहे थे। अगर भारत को ऐसे तत्त्वों को खुफिया तौर पर 'सज़ा' देनी होती तो बहुत पहले दे देता। भारत ने बड़े-बड़े सैन्य अभियानों में अपनी ताकत का लोहा मनवाया है। क्या पाकिस्तान में ऐसे आतंकवादियों का खात्मा करना उसके लिए मुश्किल था?
ये आतंकवादी इतने वर्षों तक ज़िंदा रहे और कई आतंकवादी तो अब भी ज़िंदा है, यह इस बात का सबूत है कि भारतीय एजेंसियां विदेशों में ऐसी कार्रवाइयां नहीं करतीं, जैसा कि आरोप लगाया जा रहा है। जो आतंकवादी वहां मारे जा रहे हैं, उनका अपने कर्मफल के कारण यह अंजाम हो रहा है। उन्होंने आतंक का सबक सीखकर भारत को नुकसान पहुंचाने की कोशिश तो की ही, वे पाकिस्तान में भी धौंस जमाने से बाज़ नहीं आते। आतंकवादी संगठनों में गुटबाजी हावी है। बहुत बार ऐसा होता है, जब एक ही संगठन के लोग बाद में अलग-अलग संगठनों में चले जाते हैं। वे विचारधारा के नाम पर आपस में ही खून-खराबा करते रहते हैं। पाकिस्तान और अफगानिस्तान, दोनों देशों में ऐसा देखने को मिलता है। आपसी प्रतिद्वंद्विता, चंदे की कमाई, अपनी दहशत फैलाने, खुद को ज्यादा कट्टर और खूंखार दिखाने के लिए आतंकवादी संगठन आपस में ही लड़ते-भिड़ते रहते हैं। पाकिस्तान का विदेश कार्यालय जिन 'गैर-न्यायिक' हत्याओं के नेटवर्क की बात कह रहा है, उसे सबसे पहले तो इस बात का जवाब देना चाहिए कि जो लोग ऐसे हमलों में मारे गए, वे कौन थे? क्या पाकिस्तान यह बताने का कष्ट करेगा कि इनके हाथ कितने मासूम लोगों के खून से रंगे हुए थे? स्पष्ट है कि इस बात का वह जवाब नहीं देगा, क्योंकि इससे खुद ही फंस जाएगा। अगर भारत ने ऐसी कार्रवाई करने की ठान ली होती तो आज पाकिस्तान में आतंकवादियों के आका यूं खुलेआम दनदना रहे नहीं होते। वे या तो परलोक पहुंच चुके होते या किसी कोठरी में भीगी बिल्ली बनकर छुपे बैठे होते। उक्त रिपोर्ट में धन के लेन-देन के लिए दुबई का जिक्र किया गया है, लेकिन जिन दस्तावेजों की बात की जा रही है, वे तो कंप्यूटर की मदद से कोई भी बना सकता है। एआई के दौर में ऐसे फर्जी सबूत गढ़ना चुटकियों का काम है। पाकिस्तान अतीत में ऐसे 'सबूत' गढ़ता रहा है, जो अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में नहीं टिके थे। पाक से उसकी आम जनता का भरोसा उठ चुका है। अगर उसके पाले हुए आतंकवादी इसी तरह मारे जाते रहे तो उनका भरोसा भी जल्द उठ जाएगा!