भूख और भारत
भूख और भारत
विकासशील देशों में कृषि के विकास के लिए जरूरी खाद्य एवं कृषि संगठन यानी एफएओ की स्थापना संयुक्त राष्ट्रसंघ ने १६ अक्टूबर १९४५ को की थी। यह बदलती तकनीक, जैसे कृषि, पर्यावरण, पोषक तत्व और खाद्य सुरक्षा के बारे में जानकारियां देता है। अब इसे विडंबना ही कहा जा सकता है कि सुर्खियां बटोर रहा है हाल में ही जारी हुआ ग्लोबल हंगर इंडेक्स यानी जीएचआई। वहीं, दुनिया सपना देख रही है भूखमुक्त विश्व का। जीएचआई दुनिया के विभिन्न देशों में खान-पान की स्थिति का विस्तृत ब्यौरा देता है और हर वर्ष वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर भुखमरी का आकलन करता है। जीएचआई में भारत इस वर्ष नीचे गिरकर १०३वें स्थान पर आ पहुंचा है। इस सूची में कुल ११९ देश हैं। यकीनन साल-दर-साल इस इंडेक्स पर भारत की रैंकिंग में आ रही गिरावट चिंताजनक है। राजनीति से इतर यह राजनीति का मुद्दा जरूर बन गया है क्योंकि सरकार के सत्ता संभालते समय जहां यह ५५वें स्थान पर था, वहीं २०१५ में ८०वें, २०१६ में ९७वें और २०१७ में १००वें स्थान पर जा पहुंचा। इस बार तो यह तीन सी़ढी और नीचे लु़ढक गया। बेशक भूख अब भी दुनिया की एक ब़डी समस्या है। यह बात स्वीकारने में किसी को झिझक नहीं होनी चाहिए कि भारत में भूख की दशा आज भी सुधरी नहीं है। यहां हालत बदतर है। हम चाहें तरक्की और विज्ञान की कितनी भी बात कर लें लेकिन भूख के आंक़डे हमें चौंकाते भी हैं और सोचने को मजबूर भी करते हैं। केवल उपलब्ध आंक़डों का ही विश्लेषण करें तो स्थिति की भयावहता और भी परेशान कर देती है।दुनिया भर में जहां करीब ५० लाख बच्चे कुपोषण के कारण जान गंवा रहे हैं, वहीं गरीब देशों में ४० प्रतिशत बच्चे कमजोर शरीर और दिमाग के साथ ब़डे होते हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ की एक रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के ८५ करो़ड ३० लाख लोग भुखमरी के शिकार हैं। अकेले भारत में ऐसे लोगों की तादाद लगभग २० करो़ड हो चुकी है। वहीं, एफएओ की एक रिपोर्ट बताती है कि रोजाना भारतीय २४४ करो़ड यानी वर्ष में करीब ८९ हजार रुपए से अधिक राशि का भोजन बेवजह खराब कर देते हैं। इतनी राशि से २० करो़ड से कहीं अधिक लोगों के पेट भरे जा सकते हैं। इसके लिए न तो सामाजिक चेतना जगाई जा रही है और न ही कोई सरकारी कार्यक्रम और योजना है। इसका मतलब यह हुआ कि भारत की आबादी का लगभग पांचवां हिस्सा भूखा सोने को मजबूर होता है। यह हालत शर्मनाक है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स के आंक़डों को सच मानें तो हमारे देश में रोजाना तीन हजार बच्चे भूख से मर जाते हैं। वहीं, देश में पांच वर्ष से कम उम्र के ३८ प्रतिशत बच्चे सही पोषण के अभाव में जीने को मजबूर हैं। इसके चलते उनके मानसिक और शारीरिक विकास, उनकी प़ढाई-लिखाई और उनका बौद्धिक विकास प्रभावित होता है। भूख के इन आंक़डों के नजरिए से भारत की स्थिति नेपाल और बांग्लादेश जैसे प़डोसियों से भी बदतर है। इस बार बेलारूस हंगर इंडेक्स में शीर्ष पर है तो चीन २५वें, श्रीलंका ६७वें, म्यांमार ६८वें, बांग्लादेश ८६वें और नेपाल ७२वें पायदान पर हैं। तसल्ली के लिए कह सकते हैं कि पाकिस्तान हमसे नीचे १०६वें स्थान पर है लेकिन इस इंडेक्स पर भारत का पाकिस्तान से कभी मुकाबला नहीं हो सके, यह सुनिश्चित करना भारतीय राष्ट्रीय गर्व के लिए बेहद जरूरी है। यहां महत्वपूर्ण यह भी है कि यह आंक़डे ऐसे समय आए हैं, जिस समय देश गरीबी और भुखमरी को दूर कर विकासशील से विकसित देशों की कतार में शामिल होने के लिए जोर-शोर से कोशिश कर रहा है।