नक्सलवाद पर करारा प्रहार
नक्सलवाद पर करारा प्रहार
२४ अप्रैल २०१७ को जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि नक्सली हमले में देश के २५ जवानों की शहादत को व्यर्थ नहीं जाने देंगे, तो देशवासियों के जेहन में सेना द्वारा २०१६ में की गई सर्जिकल स्ट्राइक की यादें ताजा हो गई थीं। लेकिन नक्सलियों का कोई एक ठिकाना नहीं होने, सुरक्षा कारणों से उनका लगातार अपनी जगह बदलते रहने और सुरक्षा बलों के मुकाबले उन्हें स्थानीय नागरिकों का अधिक सहयोग मिलने, जैसी वजहों के बावजूद ठीक एक साल बाद २२ अप्रैल २०१८, को जब महाराष्ट्र के ग़ढचिरौली क्षेत्र में पुलिस के सी-६० कमांडो की कारवाई में ३७ नक्सली मारे जाते हैं तो यह समझना आवश्यक है कि यह कोई छोटी घटना नहीं है, यह वाकई में एक ब़डी कामयाबी है। इन नक्सलियों में से एक श्रीकांत पर २० लाख और एक नक्सली सांईनाथ पर १२ लाख रुपए का इनाम था। इन सबके बीच नक्सलियों का आत्मसमर्पण एक उम्मीद की किरण लेकर आया है कि धीरे धीरे ही सही लेकिन अब इन नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सक्रिय नक्सलियों का नक्सलवाद से मोहभंग हो रहा है। गृह मंत्रालय द्वारा जारी आंक़डों में कहा गया है कि सरकार की नीतियों के कारण ११ राज्यों के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की संख्या १२६ से घटकर ९० रह गई है और अत्यधिक प्रभावित जिलों की संख्या भी ३६ से कम होकर ३० रह गई है। सरकार के अनुसार भौगोलिक दृष्टि से भी नक्सली हिंसा के क्षेत्र में कमी आई है। जहां वर्ष २०१३ में यह ७६ जिलों में फैला था वहीं २०१७ में यह केवल ५८ जिलों तक सिमट कर रह गया है। देश में नक्सलवाद की समस्या और इसकी ज़डें कितनी गहरी थीं, यह समझने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का एक बयान महत्वपूर्ण है, जिसमें उन्होंने इसे देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे ब़डी चुनौती की संज्ञा दी थी। उनका यह बयान व्यर्थ भी नहीं था। अगर पिछले दस सालों के घटनाक्रम पर नजर डालें तो वर्ष २००७ में नक्सलियों ने छत्तीसग़ढ के बीजापुर जिले में ५५ जवानों को शहीद कर दिया था। वर्ष २००८ में ओि़डशा के नयाग़ढ में नक्सली हमले में १४ पुलिसकर्मी और एक नागरिक की मौत हो गई थी। वर्ष २०१० में इन्होंने त्रिवेणी एक्सप्रेस और कोलकाता मुम्बई मेल को निशाना बनाया था जिसमें कम से कम १५० यात्री मारे गए। उसी साल छत्तीसग़ढ के दंतेवा़डा में अब तक के सबसे बर्बर नक्सली हमले में २ पुलिसकर्मी और सीआरपीएफ के ७४ जवान शहीद हो गए थे। वर्ष २०१३ में छत्तीसग़ढ के सुकमा जिले की दरभा घाटी में नक्सली हमले में कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा और छत्तीसग़ढ कांग्रेस प्रमुख नंद कुमार पटेल सहित २७ लोगों की मौत हुई थी। सिलसिला काफी लंबा है। लेकिन अप्रैल २०१७ में जब सुकमा में नक्सलियों ने घात लगाकर खाना खाते सुरक्षा बलों को निशाना बनाया तो सरकार ने नक्सलियों को मुंहतो़ड जवाब देने का फैसला लिया और आरपार की ल़डाई की रणनीति बनाई, जिसमें इसकी ज़ड पर प्रहार किया। इसके तहत न सिर्फ शीर्ष स्तर पर कमांडो फोर्स और उनके मुखबिर तंत्र को मजबूत किया गया, बल्कि नक्सल प्रभावित इलाकों में स़डक, स्कूल एवं अस्पताल निर्माण, मोबाइल टावर्स, अलग अलग क्षेत्रों में पुलिस स्टेशनों का निर्माण, सभी सुरक्षा बलों का आपसी तालमेल सुनिश्चित किया गया।