राब्ता – थोड़ी कन्फ्यूज़्ड सी
राब्ता – थोड़ी कन्फ्यूज़्ड सी
दिनेश विजान इस फिल्म से निर्देशक भी बन गये हैं। इससे पहले उन्हांेने ‘कॉकटेल‘ ,‘लव आज कल‘, ‘बीयिंग साइरस‘,आदि कई फिल्मों को बतौर निर्माता प्रस्तुत किया था। बतौर निर्देशक ‘़राब्ता‘ उनकी पहली प्रस्तुति है। अपनी पहली फिल्म के लिए उन्होंने पुनर्जन्म का विषय चुना है। इस फिल्म में पहली बार सुशांत सिंह और कृति सेनोन की जो़डी पर्दे पर देखने को मिलेगी। चूँकि दिनेश फिल्म के निर्माता निर्देशक दोनों हैं, लिहाजा फिल्म का भरपूर प्रचार प्रसार भी किया गया है।कहानी ः शिव (सुशांत सिंह) बुडापेस्ट में इनवेस्टमेंट बँकर है। दिल फेंक नौजवान है और ल़डकियां पटाना उसका बायें हाथ का खेल है। उसकी मुलाकात सायरा (कृति) से होती है। पहली ऩजर में ही शिव सायरा की तरफ आकर्षित हो जाता है। शुरुआत में वो उसे ़ज्यादा महत्व नहीं देती पर बहुत जल्दी ही वो भी उसे चाहने लगती है। बचपन में एक कार एक्सिडेंट में सायरा के मां बाप चल बसे थे। इस दुर्घटना को अब तक भूल नहीं पाई है। साथ ही उसे पानी में डूबने का भयावह सपना हर रात आता है। दरअसल इस सपने का संबंध उसके और शिव के पिछले जनम से है। फिलहाल इस िं़जदगी में उनके लिए अभिशाप बनकर आता है ़जाकिर मर्चेंट (जिम सर्भ) जो कि एक बेहद पैसेवाला शराब का व्यापारी है। वो हर हाल में सायरा को पाना चाहता है। शिव, सायरा और जाकिर-तीनों का संबंध ८०० वर्ष पूर्व की एक कहानी से है। इतने सालों बाद इनका पुनर्जनम हुआ है पर पुरानी बातें आज भी उनका पीछा नहीं छो़डती। या ऐसा समझें की कुछ पुराना बाकी रह गया था और उस कहानी को पूरा करने के लिए तीनों का पुनर्जन्म हुआ है। अब इस जनम में क्या वो पुरानी कहानी को पूर्ण कर पाते हैं, यही है ़राब्ता का स़फर।निर्देशन ः इस फिल्म के माध्यम से दिनेश ने कुछ नया प्रस्तुत किया हो, ऐसा नहीं लगता। पुनर्जन्म वाली कहानी से कितने दर्शक अपने आप को जो़ड पाएँगे, कहना मुश्किल है। क्युन्कि पूर्वार्ध की कहानी बिल्कुल आजकल के टीनेजर्स और युवाओं को मद्देऩजर रखकर ि़फल्माई गई है और ये दर्शक वर्ग पुनर्जन्म वाली बात कितना पचा पाएगा, ये सवालिया है। और जो दर्शक पुनर्जन्म की कहानी को रिलेट कर पाएँगे, वो पूर्वार्ध से रिलेट नहीं कर पाएँगे। इस हिसाब से फिल्म थो़डी कन्फ्यू़ज्ड सी है। पुरानी कहानी में पात्रों की पोशाक यूनानी योधाओं से प्रेरित है पर उनकी बोलचाल और वेशभूषा प्राचीन भारत की प्रतीत होती है। कई दृश्यों में तारतम्य नहीं है। सायरा के बचपन के हादसे का फिल्म की कहानी से विशेष जु़डाव नहीं है। शिव के लेडी किलर वाले किरदार हिन्दी फिल्मों में हीरो कहलाते हैं पर असल जिंदगी में ऐसे ल़डकों को ही रोमीयो कहते हैं और उन्हें कोई सभ्य समाज या परिवार कतई पसंद नहीं करता।अभिनय सुशांत सिंह पूर्वार्ध में जबरदस्त लगे हैं। उनका कॉन्फिडेन्स देखते ही बनता है। पुनर्जन्म के योद्धा वाले दृश्य में भी वो प्रभावित करते हैं पर वो कहानी थो़डी ढंग से बयान नहीं हो पाती। उनका प्यार जताने और प्यार करने का अंदा़ज प्रभावी है। कृति सेनोन खूबसूरत लगती हैं पर उनके अभिनय में वो सक्षमता नहीं। या उनका किरदार कमजोर लिखा गया है। बहरहाल वो प्रभाव छो़डने में नाकामयाब रहती हैं। जिम सर्भ सिहरन पैदा करने में कामयाब होते हैं। ‘नीरजा‘ में भी वो डर पैदा कर पाए थे और इस फिल्म भी वो सफल होते हैं। वरुण शर्मा के हिस्से ़ज्यादा दृश्य नहीं हैं पर वो अपना काम अच्छी तरह करते हैं।संगीत ः फिल्म का संगीत कर्ण प्रिय है। टाइटल गाना पहले ही का़फी हिट है। सिनेमोटोग्राफी ः फिल्म का छायांकन मार्टिन प्रेइसस ने किया है और उन्होंने लाजवाब काम किया है। कुल मिलकर रोमांटिक फिल्मों के शौकीन इंटर्वल से पहले की फिल्म पसंद कर पाएँगे पर पुनर्जन्म वाला हिस्सा सबको शायद समझ या पसंद ना आए।