ग़ैर-ज़रूरी दख़ल
कहा भी गया है कि 'अति' से हमेशा दूर रहना चाहिए
तकनीक का ग़ैर-ज़रूरी दख़ल समाधान नहीं, कई समस्याएं लेकर आता है
एक किशोर जब भी पढ़ाई या कामकाज से ऊब जाता, तुरंत मोबाइल फोन देखने में व्यस्त हो जाता। उसके बाद उसे पता ही नहीं चलता कि उसने कितना समय ऐसी सामग्री देखने में लगा दिया, जिसकी उसके लिए कोई उपयोगिता नहीं थी।
आसान शब्दों में कहें तो समय बर्बाद कर दिया। उसके पिता ने इन गतिविधियों पर गौर किया तो उसे अपने पास बैठाकर समझाया कि मोबाइल फोन के ग़ैर-ज़रूरी इस्तेमाल के क्या नुकसान होते हैं। वे उसे करीब आधा घंटे तक यह सब बताते रहे। लड़का हां में हां मिलाता रहा। उसके बाद पिता ने जैसे ही अपनी वाणी को विराम दिया, लड़के ने दोबारा मोबाइल फोन ऑन कर लिया और उसमें खो गया!यह छोटा-सा उदाहरण है, लेकिन आज कई घरों की हकीकत भी है। निस्संदेह मोबाइल फोन और इंटरनेट आधुनिक विज्ञान के बहुत बड़े वरदान हैं, जिन्होंने हमारे कई काम आसान कर दिए हैं। इनकी बदौलत कई सुविधाएं आई हैं, लेकिन हर चीज़ की एक सीमा होनी चाहिए।
कहा भी गया है कि 'अति' से हमेशा दूर रहना चाहिए। आज कई लोगों की यह स्थिति है कि थोड़ा-सा समय मिला तो मोबाइल फोन में खो गए। विद्यार्थी ने एक घंटे तक पढ़ाई की। उसके बाद अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लाइक्स चेक करने लगा। फिर पता चला कि बातों ही बातों में तीन घंटे खप गए!
शाम को या छुट्टी के दिन परिवार के साथ समय बिताना था, लेकिन अब हर हाथ में मोबाइल है, सबकी दुनिया न्यारी-न्यारी हो गई। दुनिया के क्या हालचाल हैं, यह सबको पता है, लेकिन परिवार और पड़ोसी के हालचाल पूछे महीनों हो जाते हैं।
सिर्फ भारत में यह स्थिति है, ऐसा नहीं है। कई देशों में लोग मोबाइल फोन के अत्यधिक और अनियंत्रित उपयोग से परेशान हैं। हाल में सिंगापुर मैनेजमेंट विश्वविद्यालय ने एक शोध किया, जिसका निष्कर्ष था कि जो लोग बार-बार स्मार्टफोन चेक करते हैं, उनके दिमाग पर इसका गहरा असर होता है। यहां तक कि इससे उनमें समस्या के समाधान की क्षमता कम होने लगती है।
प्राय: ऐसे लोग समाधान तलाशने की जगह यह सोचकर अनदेखी कर जाते हैं कि जो होगा, बाद में देखा जाएगा। वे बातचीत के दौरान शब्द भी भूलने लगते हैं। चूंकि उनका दिमाग किसी वेबसाइट या वीडियो के शब्दों को ग्रहण करते जाने का इतना अधिक अभ्यस्त हो जाता है कि उनकी अपनी अभिव्यक्ति की क्षमता कमजोर होने लगती है।
प्राय: लंबे समय तक मोबाइल फोन का उपयोग करने या थोड़ी-थोड़ी अवधि में उपयोग करने को (प्रभाव की दृष्टि से) अलग-अलग मान लिया जाता है, लेकिन वैज्ञानिकों ने पाया कि ऐसा नहीं है, दोनों ही हानिकारक होते हैं। ब्रिटिश जर्नल ऑफ साइकोलॉजी में छपे इस शोध का सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि बार-बार मोबाइल फोन का उपयोग किसी समस्या के समाधान का रवैया किस हद तक कमजोर करता है। उदाहरण के लिए, अगर किसी व्यक्ति के बगीचे में कुछ पौधे मुर्झा गए हैं, बच्चों का पढ़ाई में प्रदर्शन ठीक नहीं है, बाथरूम में नल खराब हो गई है, खुद का वजन बढ़ रहा है और स्वास्थ्य संबंधी हल्की समस्याएं होने लगी हैं तो वह व्यक्ति यह इच्छाशक्ति जुटाने में टालमटोल कर जाएगा कि पौधों को अच्छी खाद देनी है, बच्चों की पढ़ाई पर नजर रखनी है, बाथरूम की नल ठीक करनी है और हर सुबह व्यायाम करना है।
हालांकि वह पहले से जानता है कि किसी समस्या का उचित समाधान क्या होना चाहिए, लेकिन वह (आदत के कारण) उसकी ओर पर्याप्त ध्यान देने में खुद को समर्थ नहीं पाएगा। इससे मन में भटकाव पैदा होता है, एकाग्रता भी घटती है। कालांतर में अन्य समस्याएं पैदा होने लगती हैं। इसलिए मोबाइल फोन का उतना ही उपयोग करें, जितना जरूरी हो। तकनीक का ग़ैर-ज़रूरी दख़ल समाधान नहीं, कई समस्याएं लेकर आता है।