जीवन है अनमोल

सी विजय कुमार ने ऐसा खौफनाक कदम क्यों उठाया? 

जीवन है अनमोल

कहा जा रहा है कि विजय 'अवसाद' से जूझ रहे थे

तमिलनाडु में पुलिस उपमहानिरीक्षक (डीआईजी) के पद पर तैनात रहे भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के एक अधिकारी द्वारा खुद को गोली मारकर कथित तौर पर आत्महत्या करने की घटना दु:खद एवं चिंताजनक है। कड़ी मेहनत और प्रतिभा के बूते कठिन परीक्षा उत्तीर्ण कर अधिकारी बनने और डीआईजी के पद तक पहुंचने के बावजूद सी विजय कुमार ने ऐसा खौफनाक कदम क्यों उठाया? 

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आईपीएस के साल 2009 बैच के अधिकारी की उम्र मात्र 45 वर्ष थी। वरिष्ठ अधिकारी उनकी तारीफ करते थे। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजीपी) कानून-व्यवस्था ए अरुण ने तो यह भी कहा कि 'विजय जहां तैनात रहे, वहां पुरस्कार पाते रहे।' पुलिस सेवा एक ऐसा पेशा है, जो बहुत चुनौतीपूर्ण है। शांति व्यवस्था बनाए रखने, अपराधियों पर शिकंजा कसने ... जैसे कार्यों के लिए संबंधित अधिकारी व कर्मचारी का तन और मन, दोनों से मजबूत होना जरूरी है। अगर इनमें से कहीं भी कमजोर पड़े तो उसका असर कर्तव्यों के निर्वहन पर दिखाई देने लगता है। 

कहा जा रहा है कि विजय 'अवसाद' से जूझ रहे थे। उनका पिछले कुछ वर्षों से अवसाद का इलाज चल रहा था, लेकिन वे ऐसा कदम उठा लेंगे, इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। पुलिस के अनुसार, विजय ने चार दिन पहले मानसिक दबाव को लेकर डॉक्टर से परामर्श लिया था और उन्हें अलग-अलग दवाएं दी गई थीं। वे अपनी मौत से पहले बृहस्पतिवार रात को पत्नी और बेटी के साथ एक जन्मदिन पार्टी में शामिल हुए थे और शुक्रवार सुबह उनकी दिनचर्या बिल्कुल सामान्य थी।

जांच में यह खुलासा हुआ है कि उनका कोई पारिवारिक विवाद नहीं था और न ही काम का कोई बोझ था। उन्हें ओसीडी (ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर) आधारित अवसाद बताया जा रहा है। यह पहला मामला नहीं है, जब पुलिस सेवा के किसी वरिष्ठ अधिकारी ने ऐसा कदम उठाया। इसी साल जून में लखनऊ में एक सेवानिवृत्त डीजी ने 73 साल की उम्र में लाइसेंसी रिवाॅल्वर से खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी। वे 1975 बैच के आईपीएस अफसर थे। उनके कमरे से एक सुसाइड नोट बरामद हुआ, जिसमें डिप्रेशन होने की बात लिखी थी। वे जिंदादिली की मिसाल दिया करते थे, लेकिन खुद जिंदगी से हार गए। 

इससे पहले तिरुचेंनगोड़े की तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक विष्णु प्रिया ने साल 2015 में नमक्कल जिले में स्थित अपने आवास पर कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी। आईएएस व आईपीएस सेवाओं के कई अधिकारियों के ऐसे मामले सामने आ चुके हैं। आखिर क्या वजह है कि इतने अध्ययन और प्रशिक्षण के बाद दूसरों के लिए मिसाल बनने वाले कुछ अधिकारी अपनी ज़िंदगी के मसले सुलझाने में इतने बेबस हो जाते हैं? अगर उच्चाधिकारी इतने मानसिक दबाव और समस्याओं का सामना कर रहे हैं तो कांस्टेबल स्तर के कर्मचारियों की क्या स्थिति होगी? उनमें भी आत्महत्याओं के मामले सामने आते हैं, लेकिन अधिक चर्चा नहीं होती। 

निस्संदेह अधिकारी/कर्मचारी किसी भी स्तर का हो, सबका जीवन अनमोल है। जब कभी ऐसी घटना होती है तो यह संकेत मिलता है कि जिन लोगों पर समाज की सुरक्षा का बड़ा दायित्व है, उन्हें मानसिक रूप से और सशक्त बनाने की जरूरत है। आज तनाव, अवसाद और विभिन्न मानसिक समस्याओं का जाल बढ़ता जा रहा है। 

यह वक्त की ज़रूरत है कि शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित सुविधाएं आसानी से मुहैया कराई जाएं। प्राय: ऐसा होता है कि लोगों के मन में कोई 'बात' घर कर जाती है। वे उसे आसानी से कह नहीं पाते। धीरे-धीरे वह बड़ी समस्या बन जाती है, जिसका नतीजा दु:खद भी हो सकता है। समय रहते इस ओर पर्याप्त ध्यान दिया जाए। इस विषय पर खुलकर बात की जाए। समस्या का समाधान तलाशा जाए, ताकि कोई 'विजय' अपना जीवन न हारे।

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