एलएसी का सम्मान

चीन जानता है कि वह भारत से आमने-सामने की जंग नहीं लड़ सकता है

एलएसी का सम्मान

भारत को चीन की उद्दंडता का जवाब खूब सख्ती से देते रहना चाहिए

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से इतर बातचीत के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर ‘अनसुलझे’ मुद्दों के संबंध में भारत की चिंताओं से अवगत कराकर स्पष्ट कर दिया है कि अगर सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति की स्थापना करनी है तो इसके लिए दोनों ओर से प्रयास जरूरी हैं। 

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भारत तो सदैव शांति का समर्थक रहा है। जब पीएलए की ओर से जून 2020 में गलवान झड़प हुई, उसके बाद भारत के रुख में काफी सख्ती आई, लेकिन उसने शांति के लिए दरवाजे बंद नहीं किए। प्रधानमंत्री ने उचित ही कहा है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति बनाए रखना और एलएसी का सम्मान भारत-चीन संबंधों को सामान्य बनाने के लिए आवश्यक है। 

प्राय: चीन ऊपर से यह दिखावा करता है कि वह शांति कायम रखने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन अपने कृत्यों से जाहिर कर देता है कि उसकी नीयत में खोट है। अगर एलएसी पर तनाव घटाने की कोशिश में वहां से (दोनों तरफ) सैनिकों की वापसी होती है तो निश्चित रूप से इससे दोनों देशों के संबंधों को सामान्य बनाने में मदद मिलेगी, लेकिन पूर्व के अनुभव यही कहते हैं कि चीन ने ऐसी पहल का इस्तेमाल बाद में धोखा देने के लिए किया। लिहाजा भारत को सदैव सतर्क रहना होगा। 

निस्संदेह सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति एवं सामंजस्य बनाए रखना जरूरी है। इसके साथ ही एलएसी का सम्मान होना चाहिए। यहां समस्या चीन की ओर से है। जब कभी ऐसा लगता है कि द्विपक्षीय वार्ता के बाद अब तनाव कम हो गया, उसके कुछ ही दिनों बाद खबर आती है कि किसी अन्य स्थान पर पीएलए के जवानों ने घुसपैठ की कोशिश की है। जब वे तवांग सेक्टर में आए तो भारतीय जवानों ने उनका खूब 'स्वागत-सत्कार' किया था, जिसके बाद वे भागने को मजबूर हुए थे।

इन सबकी रिपोर्टें शी जिनपिंग तक जाती हैं। उनका विश्लेषण किया जाता है। भारतीय सेना की सख्ती देखकर चीन के तेवर भी नरम पड़े हैं। उसके राष्ट्रपति अब इस बात पर जोर दे रहे हैं कि चीन-भारत संबंधों में सुधार साझा हितों को पूरा करता है और यह क्षेत्र एवं दुनिया में शांति और स्थिरता लाने में सहायक होगा। 

नई दिल्ली में चीनी दूतावास द्वारा जारी किए गए बयान के इन शब्दों पर गौर कीजिए- ‘दोनों पक्षों को अपने द्विपक्षीय संबंधों के समग्र हितों को ध्यान में रखना चाहिए और सीमा मुद्दे को उचित तरीके से सुलझाना चाहिए, ताकि सीमा क्षेत्र में शांति की संयुक्त रूप से रक्षा की जा सके।’ 

चीन ने बयान तो बहुत सुंदर दिया है, अब जरूरत इस बात की है कि वह अपने शब्दों पर अमल करे। ऐसे बयान तो उसकी ओर से पूर्व में भी बहुत दिए गए हैं, लेकिन बात जब धरातल पर ऐसा कर दिखाने की आती है तो वहां ड्रैगन गायब हो जाता है। ऐसे में सवाल है- क्या इस बार चीन अपने शब्दों पर कायम रहेगा? 

हालांकि इसकी संभावना कम ही है, लेकिन रिपोर्टों के मुताबिक, एलएसी पर तनाव के बाद चीन को काफी नुकसान हो रहा है। पीएलए के जवान इतनी ऊंचाई पर तैनात रहने के अभ्यस्त नहीं हैं। गलवान भिड़ंत के बाद उसने इससे लगते इलाके में अपने जवानों की संख्या बढ़ाई थी। विभिन्न रिपोर्टों में कहा गया है कि चीन को बहुत जल्द अपने जवानों की बदली करनी पड़ रही है। मैदानी इलाकों से आए पीएलए के जवानों को यहां सर्दियों के मौसम में कई दिक्कतें होने लगती हैं, जिसके बाद उन्हें निचले इलाकों में ले जाया जाता है। 

चीन जानता है कि वह भारत से आमने-सामने की जंग नहीं लड़ सकता है। अगर जंग हुई तो उसका महाशक्ति बनने का सपना ध्वस्त हो जाएगा, लेकिन वह अपनी धौंस भी जमाए रखना चाहता है। इसलिए बीच-बीच में एलएसी पर तनाव बढ़ाता रहता है। 

भारत को उसकी उद्दंडता का जवाब खूब सख्ती से देते रहना चाहिए। साथ ही अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर तेजी से शक्ति-संपन्न बनना चाहिए। चीन शांति और मैत्री की नहीं, बल्कि शक्ति की भाषा समझता है। जैसे-जैसे भारत शक्ति-संपन्न बनता जाएगा, चीन के स्वर बदलते जाएंगे।

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